
अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव की घड़ी नजदीक आती जा रही है और बराक ओबामा तथा उनके रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी के बीच कांटे की टक्कर को देखते हुए ‘पर्पल स्टेट्स’ पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं जो इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।
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अमेरिका का चुनावी इतिहास बताता है कि देश के 50 राज्यों और एक संघीय जिले में से अधिकतर घोषित रूप से डेमोकेट्रिक या रिपब्लिकन रुझान रखते हैं लेकिन कोलोराडो, फ्लोरिडा, ओहायो जैसे 13 राज्य ऐसे हैं जहां स्थिति कभी भी स्पष्ट नहीं रहती और यहां कोई भी उम्मीदवार बाजी मार सकता है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘सेंटर फॉर कैनेडियन, यूएस एंड लैटिन अमेरिकन स्ट्डीज’ की प्रमुख प्रोफेसर केपी विजयलक्ष्मी ने बताया कि इन्हीं 13 राज्यों को पर्पल स्टेट कहा जाता है। इन्हें ‘जंगी इलाका’ भी कहा जाता है जहां चुनाव मैदान में किस्मत आजमाने उतरे उम्मीदवारों का सबसे अधिक समय और सबसे अधिक धन खर्च होता है। इन राज्यों के पास कुल 161 वोट हैं और इन्हीं वोटों को पाने के लिए मुख्य दावेदारों को चुनाव प्रचार अभियान में दिन-रात एक करना पड़ता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति पद के चुनाव को समझने के लिए पहले थोड़ा उसकी प्रणाली और व्यवस्था में झांकना होगा। अमेरिका में राष्ट्रपति का फैसला इलेक्टोरल कॉलेज के आधार पर होता है। जनसंख्या के आधार पर हर राज्य को कुछ वोट दिए जाते हैं जिससे साफ जाहिर है कि अधिक आबादी वाले राज्यों के पास अधिक वोट होंगे।
वॉशिंगटन के पास आबादी के आधार पर 12 वोट हैं तो वहीं न्यूजर्सी के पास 14 तो वहीं मेन के पास मात्र चार वोट हैं। ये सभी डेमोक्रेट्स के गढ़ हैं। डेमोक्रेटिक गढ़ वाले उत्तर पूर्व और पश्चिमी राज्यों में 186 वोट हैं। इनमें अधिकतर शहरी इलाके आते हैं जहां जनसंख्या और इलेक्टोरल वोट ज्यादा हैं। इन्हें ब्ल्यू स्टेट्स कहा जाता है। देश का भावी राष्ट्रपति बनने के लिए चुनाव में कम से कम 270 वोट की जरूरत होगी।
दक्षिण और मध्य पश्चिमी राज्यों को रिपब्लिकन पार्टी का गढ़ कहा जाता है जहां अधिकतर ग्रामीण आबादी है और यहां इलेक्टोरल वोट कम हैं। इन राज्यों को रेड स्टेट्स कहा जाता है। इन राज्यों में कुल 191 वोट हैं।
प्रोफेसर विजयलक्ष्मी कहती हैं कि ‘पर्पल स्टेट्स’ को ‘स्विंग स्टेट्स’ भी कहा जाता है जहां चुनावी नतीजे सामने आने तक किसी भी उम्मीदवार को पता नहीं होता कि ऊंट किस करवट बैठेगा। यहीं उम्मीदवारों की असली अग्निपरीक्षा होती है और वे इन राज्यों में मतदाताओं को अपने पक्ष में मतदान को प्रेरित करने के लिए न केवल सर्वाधिक समय लगाते हैं बल्कि विज्ञापनों पर भी भारी खर्च करते हैं। वह कहती हैं, ‘इसलिए यह कहना सही होगा कि इन्हीं राज्यों के पास राष्ट्रपति पद के ताले की कुंजी होती है।’
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