अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका के अलग होने की घोषणा की.
वाशिंगटन:
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 196 पक्षों वाले पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने की घोषणा की है. व्हाइट हाउस के रोज गार्डन से प्रसारित अपने कॉन्फ्रेंस में उन्होंने इसकी घोषणा की. ट्रंप ने 2016 में राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार के दौरान इसकी घोषणा की थी. इस फैसले के साथ अमेरिका ग्लोबल वार्मिंग से मुकाबले में अंतरराष्ट्रीय प्रयासों से अलग हो गया.
ट्रंप ने व्हाइट हाउस के रोज गार्डन में कहा, ‘‘हमारे नागरिकों के संरक्षण के अपने गंभीर कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते से हट जाएगा. हम उससे हट रहे हैं और फिर से बातचीत शुरू करेंगे.’’ ट्रंप ने कहा कि वह चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन को लेकर पेरिस समझौते में अमेरिकी हितों के लिए एक उचित समझौता हो.
डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि "अच्छा विवेक एक ऐसे सौदा का समर्थन नहीं करता जो अमेरिका को सज़ा देता हो." भारत और चीन के उदाहरण देते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि अमेरिका को दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित देशों को सशक्त बनाने के लिए नरम पड़ना होगा.
ट्रंप ने कहा कि "चीन में सैकड़ों अतिरिक्त कोयला खदानों के लिए अनुमति दी जाएगी. भारत को कोयले के उत्पादन को दोगुना करने की अनुमति दी जाएगी." उन्होंने कहा कि "भारत अरबों और अरबों और अरबों डॉलर की विदेशी सहायता प्राप्त करने पर अपनी सहभागिता करता है."
ट्रम्प ने अमेरिका के तेल और कोयला उद्योगों को मजबूत करने के लिए राष्ट्रपति बनने के 100 दिनों के भीतर पेरिस सौमझौते को "रद्द" करने की शपथ अपने प्रचार अभियान के दौरान ली थी.
अमेरिका चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन करने वाला देश है. पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने का फैसला लेने के बाद अमेरिका उन मात्र दो देशों सीरिया और निकारागुआ की श्रेणी में शामिल हो गया है जो कि पेरिस जलवायु समझौते में सहभागी नहीं हैं.
ट्रंप का फैसला पेरिस समझौते पर व्यापक प्रभाव डालेगा, जो गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए बड़े प्रदूषक देशों की प्रतिबद्धता पर काफी निर्भर है. वैज्ञानिकों ने गैसों के उत्सर्जन को समुद्र के स्तर में वृद्धि, सूखे और अधिक लगातार हिंसक तूफानों के लिए जिम्मेदार ठहराया है.
सन 2015 में पेरिस समझौते में करीब 200 देशों ने सहमति जताई थी. इसके तहत जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसों के उत्सर्जन को घटाना लक्ष्य है. समझौते के तहत अमेरिका ने 2025 तक 2005 के स्तर से अपने उत्सर्जन को 26 से 28 प्रतिशत कम करने का वादा किया है.
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्रंप की निंदा करते हुए एक बयान में कहा कि अमेरिका समझौते का पालन न कर भविष्य की पीढ़ियों के भविष्य का नुकसान करेगा. उधर, यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष जीन क्लाउडे जंकेर ने भी ट्रंप के कदम को एक ‘‘गंभीर गलत फैसला’’ करार दिया.
(इनपुट एजेंसियों से)
ट्रंप ने व्हाइट हाउस के रोज गार्डन में कहा, ‘‘हमारे नागरिकों के संरक्षण के अपने गंभीर कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते से हट जाएगा. हम उससे हट रहे हैं और फिर से बातचीत शुरू करेंगे.’’ ट्रंप ने कहा कि वह चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन को लेकर पेरिस समझौते में अमेरिकी हितों के लिए एक उचित समझौता हो.
डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि "अच्छा विवेक एक ऐसे सौदा का समर्थन नहीं करता जो अमेरिका को सज़ा देता हो." भारत और चीन के उदाहरण देते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि अमेरिका को दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित देशों को सशक्त बनाने के लिए नरम पड़ना होगा.
ट्रंप ने कहा कि "चीन में सैकड़ों अतिरिक्त कोयला खदानों के लिए अनुमति दी जाएगी. भारत को कोयले के उत्पादन को दोगुना करने की अनुमति दी जाएगी." उन्होंने कहा कि "भारत अरबों और अरबों और अरबों डॉलर की विदेशी सहायता प्राप्त करने पर अपनी सहभागिता करता है."
ट्रम्प ने अमेरिका के तेल और कोयला उद्योगों को मजबूत करने के लिए राष्ट्रपति बनने के 100 दिनों के भीतर पेरिस सौमझौते को "रद्द" करने की शपथ अपने प्रचार अभियान के दौरान ली थी.
अमेरिका चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन करने वाला देश है. पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने का फैसला लेने के बाद अमेरिका उन मात्र दो देशों सीरिया और निकारागुआ की श्रेणी में शामिल हो गया है जो कि पेरिस जलवायु समझौते में सहभागी नहीं हैं.
ट्रंप का फैसला पेरिस समझौते पर व्यापक प्रभाव डालेगा, जो गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए बड़े प्रदूषक देशों की प्रतिबद्धता पर काफी निर्भर है. वैज्ञानिकों ने गैसों के उत्सर्जन को समुद्र के स्तर में वृद्धि, सूखे और अधिक लगातार हिंसक तूफानों के लिए जिम्मेदार ठहराया है.
सन 2015 में पेरिस समझौते में करीब 200 देशों ने सहमति जताई थी. इसके तहत जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसों के उत्सर्जन को घटाना लक्ष्य है. समझौते के तहत अमेरिका ने 2025 तक 2005 के स्तर से अपने उत्सर्जन को 26 से 28 प्रतिशत कम करने का वादा किया है.
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्रंप की निंदा करते हुए एक बयान में कहा कि अमेरिका समझौते का पालन न कर भविष्य की पीढ़ियों के भविष्य का नुकसान करेगा. उधर, यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष जीन क्लाउडे जंकेर ने भी ट्रंप के कदम को एक ‘‘गंभीर गलत फैसला’’ करार दिया.
(इनपुट एजेंसियों से)
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