
- सुप्रीम कोर्ट ने मेधा पाटकर को मानहानि मामले में दोषी ठहराए जाने के फैसले में दखल नहीं दिया है
- सुप्रीम कोर्ट ने मेधा पाटकर पर लगे जुर्माने और प्रोबेशन की सजा को निरस्त कर दिया है
- दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए प्रोबेशन की शर्त में संशोधन किया है
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के खिलाफ मानहानि मामले में उन्हें राहत नहीं मिल पाई है. सुप्रीम कोर्ट ने मेधा पाटकर को दोषी करार दिए जाने के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मेधा पाटकर पर लगे जुर्माने को हटा दिया है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मेधा पाटकर पर लगी प्रोबेशन की सजा को भी निरस्त कर दिया है.
जस्टिस एम एम सुंदरेश और जस्टिए एन के सिंह की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की है. बता दें कि मेधा पाटकर ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती दी थी. दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना की तरफ से दाखिल मानहानि के मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को निचली अदालत और हाईकोर्ट ने दोषी ठहराया है.
हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा लेकिन हाईकोर्ट ने पाटकर को राहत देते हुए प्रोबेशन की उस शर्त में संशोधन कर दिया है जिसके तहत मेधा पाटकर को हर तीन महीने में ट्रायल कोर्ट में पेश होना पड़ता था. अब वह ऑनलाइन या फिर किसी वकील के माध्यम से अदालत में पेश हो सकती हैं.
यह मामला साल 2000 का है, तब वीके सक्सेना गुजरात के एक सामाजिक संगठन के अध्यक्ष थे. उसी समय मेधा पाटकर ने वीके सक्सेना पर मानहानिकारक आरोप लगाए थे. मजिस्ट्रेट कोर्ट ने 1 जुलाई 2024 को पाटकर को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 500 (मानहानि) के तहत दोषी करार देते हुए पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी और उन पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था. सेशन कोर्ट ने मेधा पाटकर को 25,000 रुपये का प्रोबेशन बॉन्ड भरने पर अच्छे आचरण के आधार पर रिहा कर दिया था और उन पर एक लाख रुपये का जुर्माना भरने की पूर्व शर्त भी लागू की थी.
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