कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप की मांग करने वाले पाकिस्तान को एकबार फिर अपने इस प्रयास में मुंह की खानी पड़ी है क्योंकि वैश्विक संस्था ने इस मुद्दे पर कोई भी नया जवाब देने के बजाय एक बार फिर यही दोहराया है कि इस विवाद का दीर्घकालिक हल निकालने के लिए भारत और पाकिस्तान को वार्ता के जरिये अपने मतभेद सुलझाने चाहिए।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के सलाहकार सरताज अजीज ने भारत के साथ सीमा पर हालिया तनाव के बारे में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की-मून को पत्र लिखकर संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप की मांग की थी। इस तरह पाकिस्तान ने कश्मीर के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की अपनी कोशिशों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया।
बान को लिखे पत्र में अजीज ने कहा कि पाकिस्तान का मानना है कि कश्मीर मुद्दे का शांतिपूर्ण हल निकालने के उद्देश्य को बढ़ावा देने में संयुक्तराष्ट्र और उसके ‘कार्यालय’ की एक अहम भूमिका है।
बान के उपप्रवक्ता फरहान हक से कल जब बान से हस्तक्षेप की अपील करने वाले इस पत्र और इस मुद्दे पर उनके नजरिए के बारे में पूछा गया तो उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि वे पिछले सप्ताह बान के प्रवक्ता द्वारा जारी किए गए बयान का संदर्भ देंगे। उस बयान में संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने भारत और पाकिस्तान से कहा था कि उन्हें कश्मीर में दीर्घकालिक शांति एवं स्थिरता कायम करने के लिए अपने सभी मतभेदों को वार्ता के जरिए सुलझाना चाहिए।
बयान में कहा गया, महासचिव 'भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर हाल में बढ़ी हिंसा को लेकर चिंतित हैं। उन्हें दोनों ओर हुई मौतों एवं नागरिकों के विस्थापन का अफसोस है।'
पिछले सप्ताह संयुक्तराष्ट्र महासभा में नियंत्रण रेखा की स्थिति के बारे में दोनों देशों के बीच झड़प हुई थी। भारत ने कहा था कि पाकिस्तान द्वारा संघर्षविराम का उल्लंघन किया जाना 'गहरे दुख का विषय' है। इसके चलते आठ लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।
भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उसके सशस्त्र बल 'उकसावे' का जवाब देने के लिए 'पूरी तरह तैयार' हैं।
भारत ने यह भी कहा था कि संबंधों को सामान्य करने के लिए सकारात्मक माहौल बनाने की जिम्मेदारी पाकिस्तान पर है।
दोनों देशों के बीच के इस विवादित क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र ने लंबे समय से अपनी संस्थागत मौजूदगी बनाए रखी है।
यूएन मिलिट्री ऑब्जर्वर ग्रुप इन इंडिया एंड पाकिस्तान (यूएनएमओजीआईपी) नियंत्रण रेखा पर एवं जम्मू-कश्मीर में दक्षिणी एशियाई पड़ोसियों के बीच की कार्यकारी सीमा पर होने वाले संघर्ष विराम उल्लंघनों पर नजर रखता है और इनकी रिपोर्ट तैयार करता है। इसके साथ ही यह उन परिवर्तनों की भी जानकारी देता है, जिनका नतीजा संघर्षविराम के उल्लंघन के रूप में सामने आ सकता है।
हालांकि भारत हमेशा से यह कहता रहा है कि यूएनएमओजीआईपी 'अपनी प्रासंगिकता खो चुका है' और इस मुद्दे पर 'उसकी कोई भूमिका नहीं है।'
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