एक अध्ययन में दावा किया गया है कि दो गज यानी करीब साढ़े छह फुट की शारीरिक दूरी वायरस ले जाने वाले वायुजनित एयरोसॉल के प्रसार को पर्याप्त रूप से रोकने के लिए काफी नहीं हो सकती. अध्ययन के परिणाम दर्शाते हैं कि शारीरिक दूरी सांस के माध्यम से अंदर लिए जाने वाले एयरोसॉलों (सूक्ष्म कणों) को रोकने के लिए काफी नहीं है और इसे मास्क पहनने तथा हवा के आने जाने की पर्याप्त व्यवस्था यानी वेंटिलेशन जैसी अन्य नियंत्रण रणनीतियों के साथ लागू किया जाना चाहिए.
शोधकर्ताओं ने तीन कारकों की जांच की : एक जगह पर हवादार मार्ग से मिलने वाली हवा की मात्रा और दर, विभिन्न वेंटिलेशन रणनीतियों से जुड़ी अंदरूनी जगहों पर वायु प्रवाह का स्वरूप और सांस लेने बनाम बात करने से निकलने वाले एयरोसॉल. उन्होंने ट्रेसर गैस आने-जाने की तुलना मानव श्वांस से निकलने वाले एक से दस माइक्रोमीटर के एयरोसॉल से भी की, जो आमतौर पर हवाबंद प्रणाली में लीक का परीक्षण करने के लिए प्रयोग की जाती है. इस रेंज के एयरोसॉल में सार्स-सीओवी-2 वायरस होते हैं जिसके कारण कोविड-19 होता है.
अध्ययन के लेखक एवं अमेरिका में पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में पीएचडी के विद्यार्थी जेन पेई ने कहा, “हमने इमारतों में संक्रमित लोगों से निकलने वाले वायरस से भरे कणों के हवाई माध्यम से फैलने का पता लगाने की कोशिश की.” पेई ने कहा, “हमने वायुवाहित वायरस को लेकर किसी अंदरूनी जगह में नियंत्रण रणनीतियों के तौर पर इमारतों में वेंटिलेशन और शारीरिक दूरी के प्रभाव को जांचा.”
अध्ययन से पता चलता है कि बिना मास्क पहने एक संक्रमित व्यक्ति के बात करने के दौरान उसकी सांस में वायरस से भरे कण दूसरे व्यक्ति के श्वांस क्षेत्र में तुरंत पहुंच सकते हैं, यहां तक कि दो गज की दूरी रखने पर भी. यह अध्ययन ‘सस्टनेबल सिटीज एंड सोसाइटी' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं