प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
अमेरिका में जीका का पहला मामला सामने आया है। अमेरिका के टेक्सास में जीका वायरस से पीड़ित एक मरीज मिला है। अमेरिका के एक शीर्ष स्वास्थ्य अधिकारी ने जीका विषाणु के यौन संबंधों के कारण संक्रमण की पुष्टि की है, जिसके कारण शिशुओं में मस्तिष्क-विकार के बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले इस बीमारी के तेजी से फैलने की आशंका प्रबल हो गई है।
(बढ़ रहा जीका वायरस का खौफ, ऑस्ट्रेलिया में दो नए मामले सामने आए)
हैदराबाद की कंपनी का वैक्सीन तैयार करने का दावा
उधर, जीका वायरस के खिलाफ भारत में एक वैक्सीन तैयार कर लिया गया है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन ने जीका वायरस इंफेक्शन के चलते इसे इमरजेंसी करार दिया है और दुनियाभर में इसके लिए वैक्सीन की खोज हो रही है। हैदराबाद की एक बायोटेक कंपनी ने जीका वायरस के खिलाफ एक वैक्सीन बना लिया है जबकि दूसरी बड़ी कंपनियां अभी रिसर्च का पहला कदम उठाने में मुश्किलों का सामना कर रही हैं। यहां के डॉक्टरों ने दुनिया की पहली ऐसी वैक्सीन तैयार की है, जो ज़ीका वायरस के खिलाफ लड़ेगी। असल में उन्होंने ऐसी दो वैक्सीन तैयार की हैं।
ट्रायल में लग सकता है लंबा वक्त
ज़ीका वायरस को बाहर से मंगाकर हैदराबाद की इस जानी-मानी कंपनी ने दो वैक्सीन तैयार की हैं। लेकिन उसका किसी जानवर या इंसान पर ट्रायल करना लंबा वक्त ले सकता है। कंपनी के प्रमुख कृष्णा इला भारतीय सरकार का समर्थन चाहते हैं और इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ने इस काम में मदद का हाथ बढ़ाया है।
पीएम मोदी से दखल चाहती है कंपनी
अगर सब कुछ ठीक रहा तो कंपनी चार महीने में वैक्सीन के 10 लाख डोज़ बना सकती है। 10 करोड़ डॉलर की इस कंपनी के चीफ़ कृष्णा इला का कहना है कि भारत को इसका इस्तेमाल उन देशों की मदद में करना चाहिए, जिन्हें इस वैक्सीन की सख्त ज़रूरत है और इसके लिए वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दखल चाहते हैं।
विशेषज्ञ कर रहे हैं इस खोज की तारीफ
विशेषज्ञ इस कोशिश की तारीफ़ कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने समय से पहले एक ऐसे रोग के लिए वैक्सीन की खोज की है, जो आज दुनियाभर में महामारी का रूप ले चुका है।
जीका के लक्षण
इस बीमारी का इतिहास
(बढ़ रहा जीका वायरस का खौफ, ऑस्ट्रेलिया में दो नए मामले सामने आए)
हैदराबाद की कंपनी का वैक्सीन तैयार करने का दावा
उधर, जीका वायरस के खिलाफ भारत में एक वैक्सीन तैयार कर लिया गया है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन ने जीका वायरस इंफेक्शन के चलते इसे इमरजेंसी करार दिया है और दुनियाभर में इसके लिए वैक्सीन की खोज हो रही है। हैदराबाद की एक बायोटेक कंपनी ने जीका वायरस के खिलाफ एक वैक्सीन बना लिया है जबकि दूसरी बड़ी कंपनियां अभी रिसर्च का पहला कदम उठाने में मुश्किलों का सामना कर रही हैं। यहां के डॉक्टरों ने दुनिया की पहली ऐसी वैक्सीन तैयार की है, जो ज़ीका वायरस के खिलाफ लड़ेगी। असल में उन्होंने ऐसी दो वैक्सीन तैयार की हैं।
ट्रायल में लग सकता है लंबा वक्त
ज़ीका वायरस को बाहर से मंगाकर हैदराबाद की इस जानी-मानी कंपनी ने दो वैक्सीन तैयार की हैं। लेकिन उसका किसी जानवर या इंसान पर ट्रायल करना लंबा वक्त ले सकता है। कंपनी के प्रमुख कृष्णा इला भारतीय सरकार का समर्थन चाहते हैं और इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ने इस काम में मदद का हाथ बढ़ाया है।
पीएम मोदी से दखल चाहती है कंपनी
अगर सब कुछ ठीक रहा तो कंपनी चार महीने में वैक्सीन के 10 लाख डोज़ बना सकती है। 10 करोड़ डॉलर की इस कंपनी के चीफ़ कृष्णा इला का कहना है कि भारत को इसका इस्तेमाल उन देशों की मदद में करना चाहिए, जिन्हें इस वैक्सीन की सख्त ज़रूरत है और इसके लिए वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दखल चाहते हैं।
विशेषज्ञ कर रहे हैं इस खोज की तारीफ
विशेषज्ञ इस कोशिश की तारीफ़ कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने समय से पहले एक ऐसे रोग के लिए वैक्सीन की खोज की है, जो आज दुनियाभर में महामारी का रूप ले चुका है।
जीका के लक्षण
- बच्चों और बड़ों में इसके लक्षण लगभग एक ही जैसे होते हैं
- जैसे बुखार, शरीर में दर्द, आंखों में सूजन, जोड़ों का दर्द और शरीर पर रैशेस यानी चकत्ते
- कुछ लोगों में इसके लक्षण नहीं भी दिखते
- कुछ बड़े ही कम मामलों में यह बीमारी नर्वस सिस्टम को ऐसे डिसऑर्डर में बदल सकती है, जिससे पैरलिसिस भी हो सकता है
- इस बीमारी से सबसे ज़्यादा ख़तरा गर्भवती महिलाओं को है, क्योंकि इसके वायरस से नवजात शिशुओं को माइक्रोसिफ़ेली होने का ख़तरा है।
- इसमें बच्चों के मस्तिष्क का पूरा विकास नहीं हो पाता और उनका सिर सामान्य से छोटा रह जाता है
इस बीमारी का इतिहास
- 1947 में यूगांडा के ज़ीका के जंगलों में बंदरों में यह वायरस पाया गया। इसी से इस वायरस का नाम ज़ीका पड़ा।
- 1954 में पहले इंसान के अंदर ये वायरस देखा गया। इसके बाद कई दशक तक ये इंसानी आबादी के लिए बड़े ख़तरे के तौर पर सामने नहीं आया और यही वजह रही कि वैज्ञानिक समुदाय ने इसकी ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया।
- 2007 में माइक्रोनेशिया के एक द्वीप याप में इस वायरस ने बड़ी तेज़ी से पैर पसारे और फिर यह वायरस कैरीबियाई देशों और लेटिन अमेरिका के देशों में फैल गया।
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