रूस और यूक्रेन (Russia-Ukraine) के बीच हालात युद्ध (War) के मुहाने पर हैं. किसी भी युद्ध की स्तिथि में यूक्रेन के साथ खड़े होंगे अमेरिका (US) समेत सभी पश्चिमी देेश (Western Countries) और दूसरी तरफ होगा रूस (Russia). क्या यह केवल यूरोप (Europe) की समस्या है जिससे भारत (India) को अधिक चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है? क्या यूरोप से बहुत दूर होने के कारण रूस और यूक्रेन विवाद का भारत पर कोई असर नहीं पड़ेगा? JNU में कूटनीती और निशस्त्रीकरण के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह (Prof. Swaran Singh) ने बताया कि क्यों भारत को यह दुआ मांगनी चाहिए कि रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध टल जाए. उन्होंने बताए यूरोप और यूक्रेन पर रूस के हमले के भारत के लिए पांच बड़े खतरे क्या हो सकते हैं?
1. पहला ख़तरा- भारत की विदेशी नीति पर प्रभाव
यूक्रेन की तनाव की वजह से अगर बड़ी शक्तियों और पश्चिमी देशों का पूरा ध्यान यूरोप की तरफ मुड़ जाता है तो क्या होगा? 20वीं शताब्दी में शीत युद्ध के दौरान यूरोप पर ही सभी ताकतवर देशों का ध्यान लगा रहता था . वो सोवियत संघ से मुकाबला करने में जुटे हुए थे. फिर जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो लगा कि चीन नई चुनौती बन कर सामने आया है. चीन की चुनौति से निपटने के लिए इंडो-पैसेफिक नीति की बात हुई ताकि उभरती हुई चीन की चुनौती को सुलझा पाएं.
यूक्रेन तनाव की वजह से अगर फिर से सारा ध्यान यूरोप पर चला जाएगा तो फिर से चीन इस क्षेत्र में स्वतंत्र और स्वच्छंद हो जाएगा. हिंद प्रशांत सागर के क्षेत्र से लेकर जापान, फिलीपींस, वियतनाम, इंडोनेशिया, तक चीन को संभालना मुश्किल हो जाएगा. भारत तो पहले से ही चीन की आक्रामकता झेल रहा है. पिछले 10 सालों से पश्चिमी देश चीन पर अंकुश रखने का जो काम कर रहे हैं वो मेहनत बेकार चली जाएगी. यूक्रेन की तनाव की वजह से चीन पड़ौसी देशों में और तेजी से आक्रामकता दिखा सकता है.
2. दूसरा ख़तरा - भारत को आर्थिक नुकसान
रूस ऊर्जा का एक बड़ा स्त्रोत है. यूरोप की अर्थव्यवस्थाएं महामारी के बाद उबरने की कोशिश कर रही हैं. आज विकास के लिए ऊर्जा की बड़ी भूमिका. यूक्रेन संकट ना केवल यूरोप की अर्थव्यवस्था पर असर डालेगा, रूस की अर्थव्यवस्था पर असर डालेगा. भारत तो पहले ही अपनी तेल-गैस की ज़रूरतों का लगभग 90% आयात करता है. रूस-यूक्रेन संकट अगर बढ़ता है तो भारत के लिए तेल और गैस की क़ीमतें बहुत बढ़ सकती हैं. इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा.
3. तीसरा ख़तरा - भारत के सामने होगा चुनाव का संकट
रूस भी भारत का दोस्त है और अमेरिका भी भारत का दोस्त है. भारत की नीति है कि जितने देशों के साथ साझेदारी की जा सके, जितनी अधिक भागीदारी बनाई जा सकती हैं बनाई जाएं. अभी ही कुछ आवाज़ें अमेरिका की ओर से आनी शुरू हो गई हैं कि भारत को चुनाव करना होगा कि यूक्रेन-रूस विवाद में भारत किस पाले में खड़ा है. भारत पश्चिमी देशों के साथ खड़ा है या रूस की ओर. ये चुनाव भारत की विदेश नीति और संस्कृति में नहीं है. भारत के लिए मुश्किल चुनौती हो जाएगी.
4. चौथा ख़तरा- चीन के और नज़दीक हो सकता है रूस
रूस पहले ही चीन का अच्छा दोस्त है. रूस-यूक्रेन विवाद के मद्देनज़र अगर रूस को यह लगता है कि भारत का रुझान पश्चिमी देशों की ओर है तो इससे रूस चीन के और नज़दीक हो जाएगा. अगर चीन रूस को यह समझाने में कामयाब हो गया कि भारत पश्चिमी देशों के हितों को वरीयता दे रहा है यह रूस को चीन की ओर ज़्यादा धकेल देगा.
5. पांचवा ख़तरा- भारत के रक्षा क्षेत्र के लिए हो सकता है संकट
रूस भारत के रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा स्त्रोत है. रूस की हिस्सेदारी आयात से शोध तक पहुंच गई है. अब भारत और रूस मिल कर रक्षा उपकरण बनाते हैं. अगर रूस से भारत के संबंध बिगड़ते हैं तो भारत की रक्षा और सुरक्षा की स्तिथी से नुकसान होगा. इससे भारत की पिछले 70-75 सालों की मेहनत बेकार हो जाएगी.
ऐसे मे यही उम्मीद करना बेहतर है कि यूक्रेन और रूस का संकट बातचीत और कूटनीतिक तरीक़ों से हल हो जाए और भारत के सामने चुनाव का संकट पैदा ना हो. अगर ऐसा हुआ इसका असर भारत की विदेश नीति पर देर तक रहेगा.
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