लाहौर:
सुप्रीम कोर्ट के दो जजों वाले संघीय समीक्षा बोर्ड ने पाकिस्तान की विभिन्न जेलों में ‘अवैध प्रवास’ के आरोपों में बंद चार भारतीय कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया है।
दिलबाग सिंह, सुनील और दो अन्य भारतीय अपनी सजा की अवधि पूरी कर चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद वे जेलों में बंद हैं।
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कल बोर्ड को सूचित किया था कि सरकार सजा की अवधि पूरी कर चुके कैदियों को वापस भेजे जाने के लिए कदम उठा रही है।
उन्होंने कहा, विदेशी कैदियों की रिहाई के लिए उनकी नागरिकता की पुष्टि किए जाने की जरूरत है और यह प्रक्रिया जारी है। इस बीच, लाहौर हाईकोर्ट के तीन जजों वाले प्रांतीय समीक्षा बोर्ड ने वर्ष 2009 में श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हमले में शामिल ‘मुख्य संदिग्ध’ की हिरासत अवधि को बढ़ाए जाने की पंजाब सरकार की अपील को नामंजूर कर दिया।
पुलिस ने कल जुबैर उर्फ नायक मोहम्मद को समीक्षा बोर्ड के समक्ष पेश किया था और उसकी हिरासत अवधि को एक माह के लिए बढ़ाए जाने की मांग की थी।
पुलिस का कहना था कि आरोपी की रिहाई से प्रांत में कानून व्यवस्था की स्थिति खतरे में पड़ सकती है। कैदी के वकील ने सरकार की अपील का विरोध करते हुए कहा कि उनके मुवक्किल पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं। दोनों पक्षों को सुनने के बाद बोर्ड ने आरोपी की हिरासत अवधि बढ़ाने की सरकार की अपील को नामंजूर कर दिया।
दिलबाग सिंह, सुनील और दो अन्य भारतीय अपनी सजा की अवधि पूरी कर चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद वे जेलों में बंद हैं।
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कल बोर्ड को सूचित किया था कि सरकार सजा की अवधि पूरी कर चुके कैदियों को वापस भेजे जाने के लिए कदम उठा रही है।
उन्होंने कहा, विदेशी कैदियों की रिहाई के लिए उनकी नागरिकता की पुष्टि किए जाने की जरूरत है और यह प्रक्रिया जारी है। इस बीच, लाहौर हाईकोर्ट के तीन जजों वाले प्रांतीय समीक्षा बोर्ड ने वर्ष 2009 में श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हमले में शामिल ‘मुख्य संदिग्ध’ की हिरासत अवधि को बढ़ाए जाने की पंजाब सरकार की अपील को नामंजूर कर दिया।
पुलिस ने कल जुबैर उर्फ नायक मोहम्मद को समीक्षा बोर्ड के समक्ष पेश किया था और उसकी हिरासत अवधि को एक माह के लिए बढ़ाए जाने की मांग की थी।
पुलिस का कहना था कि आरोपी की रिहाई से प्रांत में कानून व्यवस्था की स्थिति खतरे में पड़ सकती है। कैदी के वकील ने सरकार की अपील का विरोध करते हुए कहा कि उनके मुवक्किल पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं। दोनों पक्षों को सुनने के बाद बोर्ड ने आरोपी की हिरासत अवधि बढ़ाने की सरकार की अपील को नामंजूर कर दिया।
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