पाकिस्तान में इमरान खान ही अगले कुछ और दिनों तक प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहेंगे. पाकिस्तान के अखबार डॉन ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति डॉ आरिफ अल्वी के हवाले से यह जानकारी दी है. इसके अनुसार राष्ट्रपति दफ्तर की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार पाकिस्तानी संविधान के आर्टिकल 224-A(4) के हिसाब से पाकिस्तान में कार्यवाहक प्रधानमंत्री के चुनाव तक प्रधानमंत्री के पद पर इमरान खान बने रहेंगे. पाकिस्तान का आर्टिकल 224(A) कार्यवाहक प्रधानमंत्री की नियुक्ति के बारे में है जब सदन के नेता और विपक्ष के नेता किसी एक नाम पर सहमत ना हों.
ऐसे में 224(A) कहता है- "प्रधानमंत्री पद और मुख्यमंत्री पद संभाल रहे नेता पद पर बने रहेंगे जब तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री और कार्यवाहक मुख्यमंत्री की नियुक्ति नहीं हो जाती, जैसा भी मामला हो."
Mr. Imran Ahmad Khan Niazi, shall continue as Prime Minister till the appointment of caretaker Prime Minister under Article 224 A (4) of the Constitution of the Islamic Republic of Pakistan.
— The President of Pakistan (@PresOfPakistan) April 3, 2022
इससे पहले दिन में, मंत्रीमंडल सचिवालय ने एक अधिसूचना जारी की थी. जिसमें कहा गया था कि "इमरान खान तुरंत प्रभाव से प्रधानमंत्री दफ्तर का कार्यभार संभालना बंद करें."
Imran Khan is no more prime minister if Pakistan. pic.twitter.com/DkwM4JlQP8
— Hamid Mir (@HamidMirPAK) April 3, 2022
इससे पहले पाकिस्तान नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी ने रविवार को पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को देश के संविधान के अनुच्छेद 5 का विरोधाभास बताते हुए खारिज कर दिया था. इसके अलावा, पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने इमरान खान के प्रस्ताव पर नेशनल असेंबली को भंग कर दिया था. इमरान खान के खिलाफ वोट को विदेशी साजिश का हिस्सा बताया गया था.
पाकिस्तान (Pakistan) की मीडिया ने देश में नेशनल असेंबली (National Assembly) के विघटन की आलोचना करते हुए कहा है कि रविवार को जो कुछ भी हुआ, खासकर अविश्वास प्रस्ताव से निपटने के लिए किए गए प्रयास, संसदीय कार्यवाही को नियंत्रित करने वाले सभी नियमों का उल्लंघन करता है.
सोमवार को प्रकाशित एक संपादकीय में 'डॉन' अखबार ने कहा है, "इमरान खान एक सच्चे खिलाड़ी की तरह राजनीतिक खेल खेल सकते थे और अभी भी हार से मजबूत होकर उबर सकते थे लेकिन इसके बजाय, उन्होंने देश को एक संवैधानिक संकट में डाल दिया. राष्ट्रपति भी बुद्धिमानी से कार्य करने में विफल रहे. पूरी प्रक्रिया की संवैधानिकता को देखने के बजाय, उन्होंने इमरान खान के वफादार के रूप में काम किया और अपने पक्षपात के साथ अपने कार्यालय को बदनाम किया."
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