
भारत में अफगानिस्तान में शासन करने वाले तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर बवाल मचा हुआ है. मुत्ताकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला जर्नलिस्ट्स को एंट्री देने से मना कर दिया गया था. इसी फसाद के बीच एक ऐसी जर्नलिस्ट का जिक्र जरूरी हो जाता है जिसने ईरान के सुप्रीम लीडर रूहोल्लाह खुमैनी का इंटरव्यू किया था और वह भी बुर्का हटाकर. हम बात कर रहे हैं इटली की जर्नलिस्ट ओरियाना फलाची की जिन्होंने अपने करियर में दुनिया के उन नेताओं का इंटरव्यू किया जिनकी राजनीति आज तक चर्चा में है. कुछ तो दिलचस्प रहा होगा उस दौर में भी कि आज स्मार्ट फोन और इंटरनेट के समय में भी ओरियाना के बारे में लोग चर्चा करते हैं. आइए आपको बताते हैं कि खुमैनी के उस इंटरव्यू की खासियत के साथ ओरियाना के कुछ और इंट्रेस्टिंग इंटरव्यूज के बारे में.
फलाची और वह एक इंटरव्यू
यूं तो फलाची ने कई मशहूर ग्लोबल लीडर्स के इंटरव्यू किए लेकिन साल 1979 में हुआ उनका एक इंटरव्यू आज भी चर्चा में रहता है. फलाची जो अक्सर इस्लामिक नियमों और इसमें मौजूद बुर्का प्रथा के सख्त खिलाफ थीं, उन्होंने ईरान में हुई क्रांति से पहले सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खुमैनी का इंटरव्यू किया था. अटलांटिक वेबसाइट के अनुसार फलाची को इस इंटरव्यू से पहले एक चादर ओढ़ाकर भेजा गया था. इंटरव्यू के दौरान फलाची ने उनसे महिलाओं के अधिकारों से जुड़े सवाल पूछे. इन सवालों पर खुमैनी झुंझला गए.
उन्होंने गुस्से में फलाची से कहा, 'अगर आपको इस्लामिक पहनावे पसंद नहीं हैं या फिर आपको इनसे आपत्ति है तो आप इसे पहनने के लिए मजबूर नहीं हैं.' इसके बाद खुमैनी ने फलाची से कहा, 'चादर सिर्फ जवान और सम्मानित महिलाओं के लिए है.' बस फिर क्या था फालाची ने तुरंत अपनी चादर हटा दी और कहा, 'मैं अभी इस स्टुपिड, मध्ययुग दौर के कपड़े को उतार रही हूं.' हालांकि कहते तो यहां तक है कि यह पहला और आखिर इंटरव्यू था जब खुमैनी को थोड़ा सा मुस्कुराते हुए भी देखा गया था. फलाची ने जैसे ही चादर को 'स्टुपिड' कहा और हटाया तो खुमैनी थोड़ा सा मुस्कुराए थे.
फलाची पर हुई खूब बहस
इस घटना को आज तक पत्रकारिता के इतिहास में सत्ता के सामने बिना डरे सवाल पूछने के प्रतीक के तौर पर समझा जाता है. फलाची ने खुमैनी के साथ अपने मशहूर इंटरव्यू के बाद इस्लाम की खुलकर आलोचना करनी शुरू कर दी. खुमैनी के साथ हुई तीखी बहस के बाद फालाची ने कई आर्टिकल्स और किताबों में इस्लामिक सोसायटीज की नीतियों, विशेष तौर पर महिलाओं की स्थिति को लेकर, तीखे और विवादास्पद विचार व्यक्त किए. इसके बाद वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस का केंद्र बन गईं.
फालाची वियतनाम युद्ध के दौरान मैदान में मौजूद इकलौती इटैलियन जर्नलिस्ट थीं. साल 1967 से लेकर 1975 में युद्ध खत्म होने तक वह कई बार वियतनाम और इटली के बीच यात्रा करती रहीं. फालाची को अमेरिका की कई ऐतिहासिक घटनाओं की रिपोर्टिंग करने का भी मौका मिला जैसे 1967 में मार्टिन लूथर किंग की हत्या के बाद हुए डेट्रॉइट दंगे, और 1968 में रॉबर्ट एफ. कैनेडी की हत्या. दुनियाभर की यात्रा के दौरान उन्होंने लैंगिक असमानता से पैदा हुई सामाजिक विषमताओं को काफी करीब से देखा.
इस्लाम के खिलाफ फलाची
उनका मानना था कि अटलांटिक से लेकर हिंद महासागर तक फैली इस्लामी संस्कृति में महिलाएं, पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक प्रतिबंधित और असंतुष्ट थीं. उन्हें अपने सपनों व इच्छाओं को आजादी से पूरा तक करने की मंजूरी नहीं थी. फलाची को इस्लामी संस्कृति में महिलाओं की स्थिति पर घोर आपत्ति थी. उन्होंने अपनी असहमति जताते हुए लिखा, 'ये हिजाब वाली महिलाएं दुनिया की सबसे दुखी महिलाएं हैं. हिजाब वाली महिलाएं आसमान और अपने साथी को ऐसे देखती हैं जैसे कोई कैदी अपनी जेल की सलाखों से झांक रहा हो.'
फालाची की रिपोर्टिंग स्टाइल को कुछ लोगों ने इंटरोगेशन यानी पूछताछ जैसा बताया था. फलाची ने हेनरी किसिंजर जो रिचर्ड निक्सन की विदेश नीति के सलाहकार थे, पाकिस्तान के तानाशाह जुल्लिफकार अली भुट्टो, मोहम्मद रेजा पहलवी, फारस के अंतिम शाह और लीबिया के तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी तक का इंटरव्यू किया था. सन् 1929 में जन्मी फलाची साल 2006 में दुनिया को अलविदा कह गई थीं.
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