तमिलनाडु स्थित कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा घर (फाइल फोटो)
वियेना:
संवेदनशील परमाणु तकनीक के प्रसार पर नियंत्रण रखने वाले देशों के प्रमुख समूह न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत के प्रवेश का विरोध करने वालों का नेतृत्व चीन कर रहा है। यह जानकारी गुरुवार को राजनयिकों ने दी, जब विएना में भारत के दावे पर चर्चा के लिए एनएसजी की बैठक हुई।
48 देशों का एनएसजी आधुनिक परमाणु सामग्री तथा तकनीकों का व्यापार करता है, लेकिन ऐसी सामग्री की बिक्री पर रोक लगाता है, जिनकी मदद से परमाणु हथियार बनाए जा सकते हैं।
एक ही दिन पहले व्हाइट हाउस में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एनएसजी में भारत को स्थान दिए जाने का समर्थन किया था, लेकिन चीन ने फिर कहा है कि अगर भारत को एनएसजी में शामिल किया जाता है, तो पाकिस्तान को भी शामिल किया जाना चाहिए, जो चीन का करीबी सहयोगी देश है।
नाम न बताने की शर्त पर एक राजनयिक ने समाचार एजेंसी रॉयटर से कहा, "चीन सिर्फ अपने पक्ष को और मजबूत कर रहा है..."
पाकिस्तान के विदेशमंत्री के रूप में काम कर रहे सरताज अजीज कुछ समय से रूस और दक्षिण कोरिया जैसे एनएसजी सदस्य देशों से फोन पर बातचीत कर रहे हैं, और इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि इस मामले में 'भेदभावरहित रुख' अपनाया जाना चाहिए, जिसमें भारत और पाकिस्तान में भेद नहीं किया जाए।
वैसे, पाकिस्तान के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए उसे शामिल किया जाना बहुत-से सदस्य देशों को रास नहीं आएगा, क्योंकि पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले वैज्ञानिक ने ही कार्यक्रम से जुड़े रहस्य उत्तरी कोरिया और ईरान जैसे देशों को बेच दिए थे।
भारत की सदस्यता को लेकर भी फैसला 20 जून से पहले नहीं होगा, जब सियोल में एनएसजी की बैठक होनी है, लेकिन राजनयिकों के मुताबिक अमेरिका गतिरोध को खत्म करने के लिए दबाव डाल रहा है, और गुरुवार को विएना में बंद दरवाज़े के पीछे हुई बैठक के ज़रिये यही जानने की कोशिश की गई थी कि विरोध कितना मजबूत है।
समाचार एजेंसी रॉयटर ने एक खत के हवाले से बताया कि अमेरिकी विदेशमंत्री जॉन कैरी ने सदस्यों से पत्र लिखकर कहा है कि वे "एनएसजी में भारत के दाखिले को लेकर बने मतैक्य को नहीं रोकें..."
वैसे, राजनयिकों के अनुसार, चीन के अलावा भारत के एनएसजी में दाखिले का विरोध करने वाले देशों में न्यूज़ीलैंड, आयरलैंड, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रिया शामिल हैं।
हालांकि भारत को 2008 में अमेरिका के साथ हुए परमाणु करार की वजह से एनएसजी सदस्यता के ज्यादातर लाभ मिल रहे हैं, जबकि भारत ने परमाणु हथियार बनाए हैं और परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर भी नहीं किए हैं।
एनएसजी के ज्यादातर सदस्य देश किसी भी भारत जैसे एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले देशों को क्लब में शामिल किए जाने के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि अगर ऐसा किया जाता है तो वो सभी के लिए समान रूप से लागू हो ना कि अमेरिका के साथ भारत के सुदृढ़ होते रिश्तों को देखते हुए ऐसा किया जाए।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
48 देशों का एनएसजी आधुनिक परमाणु सामग्री तथा तकनीकों का व्यापार करता है, लेकिन ऐसी सामग्री की बिक्री पर रोक लगाता है, जिनकी मदद से परमाणु हथियार बनाए जा सकते हैं।
एक ही दिन पहले व्हाइट हाउस में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एनएसजी में भारत को स्थान दिए जाने का समर्थन किया था, लेकिन चीन ने फिर कहा है कि अगर भारत को एनएसजी में शामिल किया जाता है, तो पाकिस्तान को भी शामिल किया जाना चाहिए, जो चीन का करीबी सहयोगी देश है।
नाम न बताने की शर्त पर एक राजनयिक ने समाचार एजेंसी रॉयटर से कहा, "चीन सिर्फ अपने पक्ष को और मजबूत कर रहा है..."
पाकिस्तान के विदेशमंत्री के रूप में काम कर रहे सरताज अजीज कुछ समय से रूस और दक्षिण कोरिया जैसे एनएसजी सदस्य देशों से फोन पर बातचीत कर रहे हैं, और इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि इस मामले में 'भेदभावरहित रुख' अपनाया जाना चाहिए, जिसमें भारत और पाकिस्तान में भेद नहीं किया जाए।
वैसे, पाकिस्तान के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए उसे शामिल किया जाना बहुत-से सदस्य देशों को रास नहीं आएगा, क्योंकि पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले वैज्ञानिक ने ही कार्यक्रम से जुड़े रहस्य उत्तरी कोरिया और ईरान जैसे देशों को बेच दिए थे।
भारत की सदस्यता को लेकर भी फैसला 20 जून से पहले नहीं होगा, जब सियोल में एनएसजी की बैठक होनी है, लेकिन राजनयिकों के मुताबिक अमेरिका गतिरोध को खत्म करने के लिए दबाव डाल रहा है, और गुरुवार को विएना में बंद दरवाज़े के पीछे हुई बैठक के ज़रिये यही जानने की कोशिश की गई थी कि विरोध कितना मजबूत है।
समाचार एजेंसी रॉयटर ने एक खत के हवाले से बताया कि अमेरिकी विदेशमंत्री जॉन कैरी ने सदस्यों से पत्र लिखकर कहा है कि वे "एनएसजी में भारत के दाखिले को लेकर बने मतैक्य को नहीं रोकें..."
वैसे, राजनयिकों के अनुसार, चीन के अलावा भारत के एनएसजी में दाखिले का विरोध करने वाले देशों में न्यूज़ीलैंड, आयरलैंड, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रिया शामिल हैं।
हालांकि भारत को 2008 में अमेरिका के साथ हुए परमाणु करार की वजह से एनएसजी सदस्यता के ज्यादातर लाभ मिल रहे हैं, जबकि भारत ने परमाणु हथियार बनाए हैं और परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर भी नहीं किए हैं।
एनएसजी के ज्यादातर सदस्य देश किसी भी भारत जैसे एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले देशों को क्लब में शामिल किए जाने के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि अगर ऐसा किया जाता है तो वो सभी के लिए समान रूप से लागू हो ना कि अमेरिका के साथ भारत के सुदृढ़ होते रिश्तों को देखते हुए ऐसा किया जाए।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
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