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This Article is From Oct 07, 2016

पेरिस समझौते के बाद जलवायु परिवर्तन पर नई डील, हवाई सफर महंगा होगा!

पेरिस समझौते के बाद जलवायु परिवर्तन पर नई डील, हवाई सफर महंगा होगा!
संधि के बाद महंगा हो जाएगा अंतर्राष्ट्रीय हवाई सफर. (प्रतीकात्मक फोटो)
नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन पर पेरिस डील हो जाने के बाद अब एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय समझौता हुआ है जो अंतर्राष्ट्रीय हवाई सफर करने वालों की जेब पर भारी पड़ सकता है. कनाडा के मॉन्ट्रियल में गुरुवार देर रात हुए समझौते पर अमेरिका, चीन और यूरोपियन यूनियन समेत 191 देशों ने दस्तखत कर दिए. भारत पर जल्द ही इसका हिस्सा बनने का दबाव है.

इस संधि को समझने के लिए आपको यह जानना होगा कि आखिर हवाई यात्रा से फैलने वाला कार्बन उत्सर्जन क्यों अलग है. दिल्ली से लंदन की उड़ान भरने वाला हवाई जहाज़ कई देशों की हवाई सरहदों को पार करता है और कार्बन छोड़ता जाता है. ऐसे ही दुनिया भर में एक देश से दूसरे देश की उड़ान भर रहे हवाई जहाज़ सरहद की परवाह किए बगैर कार्बन फैलाते हैं. यानी एक देश का हवाई जहाज कई दूसरे देशों की सीमाओं को प्रदूषित करता है. पिछले साल हुए पेरिस समझौते में इस तरह के कार्बन इमीशन को रोकने का प्रावधान नहीं है.

2021 से 2026 तक चलेगा पहला दौर
अब इस कार्बन उत्सर्जन की बढ़त को कम करने के लिए मॉन्ट्रियल में इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गेनाइज़ेशन ने एक संधि की है जिसके तहत 191 देशों ने दस्तखत किए हैं. इस संधि का पहला दौर 2021 से शुरू होगा जिसमें अमेरिका, चीन और यूरोपीय देशों समेत कुल 65 मुल्क सक्रिय कोशिश करेंगे ताकि उनके एविएशन सेक्टर के कार्बन उत्सर्जन काबू में रहें. 2021 से शुरु होने वाला पहला दौर 2026 तक चलेगा.

इस संधि को लागू करने के लिए जो रास्ते सुझाए जा रहे हैं उनमें हवाई जहाज के बेहतर इंजन बनाना, उम्दा क्वॉलिटी का हवाई ईंधन इस्तेमाल करना और कार्बन सोखने के लिए और अधिक जंगल लगाना शामिल है. इस संधि के तहत होने वाले खर्च का बोझ आपकी जेब पर भी पड़ेगा क्योंकि विदेशी दौरे का टिकट बुक करते वक्त आपको कार्बन टैक्स देना होगा. अगर ध्यान से देखें तो कई बार इंटरनेट पर विदेशी हवाई टिकट बुक करते वक्त आपको स्वेच्छा से एक कार्बन टैक्स देने का विकल्प सुझाया जाता है जिसे आप नकार सकते हैं. इस संधि के बाद वह टैक्स अनिवार्य हो जायेगा.  

अभी भारत और रूस संधि से दूर
हालांकि भारत और रूस ने अभी मांट्रियल में हुई इस संधि से खुद को दूर रखा है इसलिए तुरंत आपके हवाई टिकट महंगे नहीं होंगे लेकिन 2026 के बाद भारत को भी इस संधि को मानना ही होगा.

जलवायु परिवर्तन पर काम कर रही संस्था एक्शन ए़ड के अंतरराष्ट्रीय नीति निदेशक हरजीत सिंह कहते हैं, "अनुमान है कि अंतरिक्ष में एविएशन से हो रहे कार्बन उत्सर्जन को काबू में रखने के लिए 1.5 से 6.2 अरब डॉलर का खर्च आ सकता है. भारत एक ऐसा देश है जिसका हवाई सेक्टर अभी पूरी तरह से फला फूला नहीं है और आने वाले दिनों में वह काफी तेज़ी से बढ़ेगा. इसलिए भारत ने अभी इस संधि से खुद को दूर रखा है और वह विकसित देशों पर दबाव बना रहा है कि इस मुहिम में उनका रोल अधिक से अधिक हो"     

आज दुनिया में हो रहे कुल कार्बन उत्सर्जन में हवाई प्रदूषण का हिस्सा 2 प्रतिशत है लेकिन जानकारों के मुताबिक इसका असर दोगने से अधिक होगा, क्योंकि सामान्य उद्योगों और वाहनों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन के उलट यह कार्बन सीधा ऊंचे आसमान में जाता है और पर्यावरण की महत्वपूर्ण परतों को नुकसान पहुंचाने की अधिक मारक क्षमता रखता है.

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