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This Article is From Apr 29, 2015

नेपाल भूकंप : दूर-दराज के इलाकों में राहत पहुंचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं राहतकर्मी

काठमांडू:
भूकंप से तबाह हुए नेपाल में मलबे के ढेर के नीचे जीवित लोगों के दबे होने की आशंका के बीच बचावकर्मी जी-जान से तलाश और बचावकार्यों में जुटे हुए हैं, जबकि सुदूर इलाकों में भारी बारिश के कारण मानवीय मदद के वैश्विक प्रयासों में बाधाएं आ रही हैं। इस भूकंप में अब तक पांच हजार से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं।

भूकंप के बाद राहत पहुंचाने के प्रयास जारी हैं, लेकिन अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि उन्हें देश में मदद प्राप्त करने और फिर उसे देश के सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले बेहद जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

भूकंप के केंद्र के आसपास के सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन के कारण बचाव एवं राहत दलों को बाधाएं पेश आईं।

सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि हेलीकॉप्टरों के जरिये टैंट, सूखा भोजन और दवाएं सुदूर गांवों में गिराए जा रहे हैं, लेकिन अलग-थलग पड़े कई इलाकों तक पहुंच पाना अभी तक मुमकिन नहीं हो सका है।

जब हेलीकॉप्टर जमीन पर उतरते हैं, तो अक्सर भोजन-पानी या वहां से खुद को निकालने की गुहार लगाने वाले गांववालों की भीड़ उन्हें घेर लेती है। नेपाल ने शनिवार को आए भूकंप के पीड़ितों के लिए तीन दिन के शोक की घोषणा की है।

बचावकर्मी गोरखा, धाडिंग, सिंधुपालचोक, कावरे और नुवाकोट समेत विभिन्न जिलों के उन गांवों में अब तक नहीं पहुंच पाए हैं, जो इस भूकंप में सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।

नेपाली दंगा पुलिस को भूकंप में जीवित बचे लोगों के गुस्से पर काबू पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।

भूकंप के कारण विस्थापित हुए लोगों को खुले आकाश के नीचे ही ठहरने के लिए विवश होना पड़ा, क्योंकि उनके मकान या तो टूट गए हैं या लगभग टूटने के कगार पर हैं। भारत समेत विभिन्न देशों के राहत दल राहत प्रयासों में सहयोग कर रहे हैं।

प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंचने के उनके प्रयासों के बावजूद प्रशासन के बीच समन्वय के अभाव के कारण राहत कार्यों में बाधाएं पैदा हो रही हैं। इसके अलावा खराब मौसम और भौगोलिक बाधाओं की वजह से समस्या और गहरा रही है।

भूकंप के कारण मरने वालों की आधिकारिक संख्या 5,057 बताई गई थी और प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने कहा कि यह संख्या 10 हजार तक पहुंच सकती है, लेकिन देश के देहात क्षेत्र में तबाही और मरने वालों की संख्या अभी तक पूरी तरह पता नहीं चल पाई है।

आठ हजार से ज्यादा लोग भूकंप के कारण घायल हुए हैं। जबकि संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि बीते 80 सालों में नेपाल में आए इस सबसे भीषण भूकंप में 80 लाख लोग प्रभावित हुए हैं।

कोइराला ने कल एक सर्वदलीय बैठक में कहा कि नेपाल को टैंट, पानी और भोजन की अत्यधिक जरूरत है। इस बैठक में उन्होंने नेताओं को उन प्रयासों की जानकारी दी, जो जरूरतमंदों तक विभिन्न चीजों की तत्काल आपूर्ति पहुंचाने के लिए किए जा रहे हैं। अब तक इस भूकंप में 15 भारतीय मारे जा चुके हैं।

कल मलबे के नीचे से जिन दो भारतीय डॉक्टरों के शव बरामद हुए हैं, उनकी पहचान दीपक कुमार थॉमर और इरशाद एएस के रूप में हुई है। भारतीय दूतावास इनके शवों को वापस घर भेजने के लिए जरूरी प्रबंध कर रहा है।

नेपाल में कई गांव अभी भी बचाव एवं राहत दलों का इंतजार कर रहे हैं, वहीं राजधानी काठमांडो में जीवन धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है। नगर निगम के कर्मचारियों ने आज सड़कों की सफाई शुरू कर दी।

नेपाल के प्रशासन के सामने अब भूकंप के बाद पैदा होने वाली चुनौतियां खड़ी हैं। इन चुनौतियों में बीमारियों का फैलाव और पुर्नवास का काम शामिल हैं।

बचाव दल अभी तक लामजुंग के सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों तक नहीं पहुंचे हैं। लामजुंग इस भूकंप का केंद्र था।

भारत के राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) दल काठमांडू घाटी में वैश्विक विरासत स्थलों पर भी काम कर रहे हैं।

भारतीय रक्षा दल गोरखा जिले जैसे सुदूर इलाकों में भी जा रहे हैं। भूकंप का केंद्र इसी जिले में था।

भारतीय राजदूत रंजीत राय ने कल कोइराला से मुलाकात की और उन्हें भारत द्वारा ‘ऑपरेशन मैत्री’ के तहत उपलब्ध कराई जा रही राहत एवं बचाव संबंधी मदद की जानकारी दी।

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