अनिल दवे की फाइल तस्वीर
माराकेश:
धरती को गर्म होने से रोकने की मुहिम में पैसा ही सबसे बड़ी दिक्कत है. ये बात मोरक्को सम्मेलन में भी साफ दिख रही है. गरीब और विकासशील देश महंगी सौर और पवन ऊर्जा के लिए अमीर और विकसित देशों की ओर देख रहे हैं और अभी इसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है कि कितनी मदद मिल पाएगी.
भारत के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री अनिल दवे ने भी यहां सम्मेलन में दिए अपने भाषण में कहा, 'संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के तहत 2020 से पहले और उसके बाद दिए जाने वाले क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर विकासशील देशों में चिंता बनी हुई है.'
हालांकि महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए मंत्री दवे ने ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने में महंगी और कार्बन उत्सर्जन को बढ़ावा देने वाली लाइफ स्टाइल को त्यागने की बात कही, लेकिन बड़ी चिंता उस पैसे को लेकर बनी हुई है जो सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा जैसे साधनों के लिए ज़रूरी है.
पेरिस समझौते के तहत एक ग्रीन क्लाइमेट फंड बनना है, जिसकी मदद से हर साल गरीब और विकासशील देशों को 100 बिलियन डॉलर दिए जाने हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इस फंड में अभी नाममात्र का पैसा जमा हुआ है.
इस बात का डर भी है कि नए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप किसी भी तरह की माली मदद से इनकार कर सकते हैं जबकि 2020 तक अमेरिका को इस फंड में 3 बिलियन डॉलर जमा करने हैं.
भारत के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री अनिल दवे ने भी यहां सम्मेलन में दिए अपने भाषण में कहा, 'संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के तहत 2020 से पहले और उसके बाद दिए जाने वाले क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर विकासशील देशों में चिंता बनी हुई है.'
हालांकि महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए मंत्री दवे ने ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने में महंगी और कार्बन उत्सर्जन को बढ़ावा देने वाली लाइफ स्टाइल को त्यागने की बात कही, लेकिन बड़ी चिंता उस पैसे को लेकर बनी हुई है जो सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा जैसे साधनों के लिए ज़रूरी है.
पेरिस समझौते के तहत एक ग्रीन क्लाइमेट फंड बनना है, जिसकी मदद से हर साल गरीब और विकासशील देशों को 100 बिलियन डॉलर दिए जाने हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इस फंड में अभी नाममात्र का पैसा जमा हुआ है.
इस बात का डर भी है कि नए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप किसी भी तरह की माली मदद से इनकार कर सकते हैं जबकि 2020 तक अमेरिका को इस फंड में 3 बिलियन डॉलर जमा करने हैं.
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