
अब से कुछ घंटे के बाद सार्क का काठमांडू डिक्लेरेशन जारी हो जाएगा, लेकिन इस बात को मानने में किसी को भी संकोच नहीं है कि भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में मौजूद तनाव सार्क के भूत, वर्तमान और भविष्य को काफी प्रभावित करेगा।
सो, देखना यह है कि क्या सार्क अब भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूद तनाव का बंधक ही बना रहेगा। शायद नहीं... इसका हल और रोडमैप भारत ने, विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ढूंढ निकाला है। बुधवार को सार्क में दिए अपने भाषण में उन्होंने साफ किया था, "रिश्ते मजबूत होंगे... सार्क के जरिये या उसके बाहर... हम सबके बीच, या हममें से कुछ के बीच..."
ये तीन ऐसे वाक्य हैं, जिनके बारे में जानकारों का मानना है कि अब सार्क का फोकस सभी को साथ लेकर चलने की तुलना में द्विपक्षीय समझौतों पर ज़्यादा रहेगा, विशेष रूप से भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का। मोदी सार्क सम्मेलन के दौरान सभी राष्ट्राध्यक्षों से मिले, लेकिन भारत-पाक रिश्तों में तनाव के चलते पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से मुलाकात करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी सार्क के जिन तीन महत्वपूर्ण प्रस्तावित समझौतों की घोषणा की, वे नेपाल के साथ बस सर्विस का समझौता, भूटान के साथ पॉवर के क्षेत्र में सहयोग का समझौता तथा बांग्लादेश और अफगानिस्तान के साथ आतंकवाद के खिलाफ समझौता था, जिसके तहत आने वाले समय में तीनों देश एक-दूसरे से सहयोग बढ़ाते रहेंगे।
उधर, प्रधानमंत्री ने वीज़ा और इंडस्ट्रियल कॉरिडोर मामलों में भी जो घोषणाएं कीं, यदि उनका महत्व अन्य देशों ने सही तरीके से समझा तो निकट भविष्य में ये घोषणाएं भारत के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध होंगी। सो, मोदी का विचार अब सार्क में भी उन देशों को साथ लेकर चलने का नज़र आता है, जो न केवल उनके पास हैं, बल्कि प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष, किसी भी रूप में भारत के खिलाफ नहीं हैं...
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