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This Article is From Sep 01, 2022

मिखाइल एस. गोर्बाचेव के निधन पर दुनिया भर में शोक, सोवियत संघ-भारत संबंधों को बनाया था मजबूत

मास्को और नयी दिल्ली के बीच द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में सोवियत संघ के आखिरी नेता मिखाइल एस. गोर्बाचेव ने अहम भूमिका निभाई थी.

मिखाइल एस. गोर्बाचेव के निधन पर दुनिया भर में शोक, सोवियत संघ-भारत संबंधों को बनाया था मजबूत
रुस के राष्ट्रपति पुतिन ने बुधवार को गोर्बाचेव के रिश्तेदारों को टेलीग्राम के जरिए अपनी संवेदनाएं भेजीं
नई दिल्ली:

मास्को और नयी दिल्ली के बीच द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में सोवियत संघ के आखिरी नेता मिखाइल एस. गोर्बाचेव ने अहम भूमिका निभाई थी. हालांकि उनके सामाजिक और आर्थिक सुधारों के कारण सोवियत संघ का पतन हो गया.
गोर्बाचेव 1985 से 1991 में पतन तक सोवियत संघ के नेता थे. वह भारत तथा सोवियत संघ के बीच प्रगाढ़ रणनीतिक संबंधों के प्रबल समर्थक थे, खासकर रक्षा और आर्थिक क्षेत्रों में. उन्होंने 1986 और 1988 में भारत की यात्राएं की थीं.

वर्ष 1986 में गोर्बाचेव की पहली भारत यात्रा को क्षेत्रीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना गया था क्योंकि उस समय अमेरिका पाकिस्तान के करीब आ रहा था. वह 100 से अधिक सदस्यों वाले प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत की यात्रा पर आए थे. अपनी उस यात्रा के दौरान सोवियत नेता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ व्यापक बातचीत की थी और द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने का संकल्प जताते हुए परमाणु निरस्त्रीकरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई थी.

उनकी यह यात्रा ऐतिहासिक थी क्योंकि सोवियत संघ का शीर्ष पद ग्रहण करने के बाद गोर्बाचेव की किसी एशियाई देश की यह पहली यात्रा थी.दोनों नेताओं के वार्ता के बाद जारी 'दिल्ली घोषणापत्र' में सहयोग के व्यापक ढांचे का उल्लेख किया गया था. उनमें दीर्घकालिक वैश्विक शांति हासिल करना भी शामिल था. घोषणापत्र में परमाणु हथियार मुक्त और दुनिया में अहिंसा के लिए भारत और सोवियत संघ की प्रतिबद्धता का भी जिक्र किया था.

गांधी और गोर्बाचेव के बीच मित्रता और सौहार्द की भावना थी और यह तब शुरू हुआ था जब भारतीय नेता ने 1985 में मास्को की यात्रा की थी. गोर्बाचेव ने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा था, 'हम अपनी विदेश नीति में ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे भारतीय हितों को नुकसान पहुंचे.'

गोर्बाचेव के कार्यकाल में ही सोवियत संघ ने भारत को विभिन्न प्रमुख सैन्य साजोसामान की आपूर्ति की थी जिनमें टी -72 टैंक भी शामिल थे. गोर्बाचेव और उनकी पत्नी रायसा का यहां हवाई अड्डा पहुंचने पर हजारों लोगों ने स्वागत किया था. उनकी यात्रा के दौरान दिल्ली की सड़कों पर बड़ी संख्या में गोर्बाचेव और गांधी के पोस्टर लगाए गए थे.

गोर्बाचेव 1988 में दूसरी बार भारत आए और उन्होंने तथा राजीव गांधी ने 'दिल्ली घोषणा' के कार्यान्वयन की समीक्षा की एवं रक्षा, अंतरिक्ष और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को और आगे बढ़ाने पर जोर दिया. कांग्रेस नेता और पूर्व राजनयिक शशि थरूर ने कहा कि गोर्बाचेव को एक ऐसे व्यावहारिक नेता के रूप में याद किया जाएगा जिन्होंने 'सोवियत संघ को बदल दिया और उसे लोकतंत्र की ओर ले गए, लेकिन अन्य उन्हें सोवियत संघ के पतन के लिए जिम्मेदार ठहराएंगे.

दिवंगत सोवियत नेता को आकर्षक, मिलनसार और विनम्र बताते हुए थरूर ने ट्विटर पर कहा, 'मुझे दो बार मिखाइल गोर्बाचेव से मिलने का सौभाग्य मिला, दोनों बार इटली में छोटे सम्मेलनों में.' गोर्बाचेव के निधन पर विश्व के कई नेताओं ने शोक जताया और उनके योगदान की चर्चा की.

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