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Maldives Independence Day: मालदीव को 77 साल की गुलामी से कैसे मिली आजादी, कौन था इस संग्राम का नायक?

Independence of Maldives: 6 दशक पहले की वो तारीख- 26 जुलाई 1965, मालदीव के लिए वही महत्‍व रखता है, जो हमारे लिए 15 अगस्‍त 1947. यानी आजादी का दिन. आजादी, लंबी गुलामी से. आजादी, अंग्रेजों के प्रभुत्‍व से.

Maldives Independence Day: मालदीव को 77 साल की गुलामी से कैसे मिली आजादी, कौन था इस संग्राम का नायक?
  • मालदीव 26 जुलाई 1965 को अंग्रेजों से आजाद होकर एक संपूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र बना था, 1968 में पूर्ण गणतंत्र.
  • स्वतंत्रता संधि के बाद मालदीव ने संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता प्राप्त की और भारत ने सबसे पहले इसे मान्यता दी.
  • स्वतंत्रता के बाद मालदीव ने आर्थिक आत्मनिर्भरता की चुनौती का सामना किया. इसने पर्यटन क्षेत्र में सफलता पाई.
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Maldives Independence Day: समंदर के बीच बसे करीब 1,200 द्वीपों वाला देश. नीला समंदर और चटक धूप से से चमकते सफेद रेतों वाला देश. मालदीव की कहानी, केवल इसकी खूबसूरती तक सीमित नहीं, बल्कि लंबे संघर्ष, एकता और रणनीतिक सूझबूझ की भी कहानी है. 6 दशक पहले की वो तारीख- 26 जुलाई 1965, मालदीव के लिए वही महत्‍व रखता है, जो हमारे लिए 15 अगस्‍त 1947. यानी आजादी का दिन. आजादी, लंबी गुलामी से. आजादी, अंग्रेजों के प्रभुत्‍व से.

आज मालदीव अपना स्‍वतंत्रता दिवस मना रहा है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बतौर मुख्‍य अतिथि पहुंचे हैं. दोनों देशों के बीच रिश्‍तों में नई गर्मजोशी देखी जा रही है. इस सुअवसर पर हम आपको मालदीव की आजादी की कहानी बता रहे हैं. 

एक दस्‍तखत और बागडोर अंग्रेजों के हाथों में 

मालदीव की गुलामी की कहानी शुरू होती है 1887 से, जब सुल्तान मोहम्मद मुइनुद्दीन II ने ब्रिटिश गवर्नर हैमिल्टन-गॉर्डन के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किए. इसके बाद मालदीव ब्रिटिश प्रोटेक्ट्रेट बन गया. आंतरिक प्रशासन तो उनके पास रहा, लेकिन विदेश नीति और रक्षा की बागडोर ब्रिटेन के हाथ में चली गई. उस दौर में भारतीय बोहरा व्यापारी मालदीव की अर्थव्यवस्था पर हावी थे. उनके खिलाफ स्थानीय लोगों का गुस्सा भड़का तो ब्रिटिश हस्तक्षेप बढ़ा. ब्रिटेन ने आर्थिक सुरक्षा और सेना की रक्षा के बदले मालदीव पर दबदबा कायम कर लिया.

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पांडिचेरी यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल स्‍टडीज डिपार्टमेंट की रिसर्चर नुपुर प्रिया अपने एक आलेख में बताती हैं, '1886 में सुल्तान को हटाया गया और अथिरीगी घराने के समर्थन से मोहम्मद मुइनुद्दीन III को गद्दी पर बैठाया गया, जिनका झुकाव अंग्रेजों की ओर था. ये एक तरह से रणनीतिक समझौता था, जिसमें मालदीव ने सीधे उपनिवेश बनने की बजाय एक 'सुरक्षित उपनिवेश' का दर्जा अपनाया. लेकिन जैसा कि अंग्रेज दूसरे देशों के साथ भी करते आ रहे थे, यहां भी वही किया. अंग्रेजों की मौजूदगी लगातार बढ़ती गई. उन्होंने द्वीप पर सैन्य अड्डे भी बना लिए.

...और फिर हुई नायक 'नासिर' की एंट्री

1958 में महज 31 साल की उम्र में इब्राहिम नासिर देश के प्रधानमंत्री बने. उन्होंने मालदीव की औद्योगिक क्षमता को आकार देना शुरू किया. लेकिन 1960 के दशक में दो ऐसे बड़े घटनाक्रम हुए, जिसने काफी कुछ बदल दिया- 

  • दक्षिणी हिस्से में विद्रोह को बेरहमी से कुचला गया, जिससे सरकार की आलोचना हुई.
  • बोहरा व्यापारियों को राजधानी माले से निष्कासित कर दिया गया, जिनकी पकड़ अर्थव्यवस्था पर थी.

इतिहासकार शातिर बताते हैं, ये वो पल था, जब मालदीव ने साबित किया कि अब वो पूर्ण स्वतंत्रता के लिए तैयार है.

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स्वतंत्रता संधि और नया युग

26 जुलाई 1965 को इब्राहिम नासिर और ब्रिटिश प्रतिनिधि माइकल वॉकर के बीच संधि पर हस्ताक्षर हुए. ये संधि कोलंबो (श्रीलंका) में ब्रिटिश हाई कमिश्नर के घर पर हुई. इसके साथ ही मालदीव को रक्षा और विदेश नीति पर पूर्ण नियंत्रण मिला और वो एक संपूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र बन गया. दो महीने के भीतर मालदीव ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की सदस्यता हासिल की. 

1965 में मालदीव को ब्रिटिश सत्ता से आजादी मिलने के बाद सबसे पहले भारत ने ही मान्‍यता दी और राजनयिक संबंध स्‍थापित किए. 1968 में हुए जनमत संग्रह में 81% लोगों ने गणराज्य बनने के पक्ष में वोट दिया. इसी के साथ 853 साल पुरानी राजशाही खत्म हुई और इब्राहिम नासिर पहले राष्ट्रपति बने.

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आजादी के बाद की चुनौतियां

स्वतंत्रता के बाद मालदीव को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना पड़ा. मछली और नारियल जैसे सीमित उत्पादों पर निर्भरता को तोड़ना आसान नहीं था. राजनीतिक रूप से देश में स्थिरता की कमी, नेतृत्व में बदलाव और प्रशासनिक अनुभव की कमी ने विकास में बाधा डाली. लेकिन इसके बावजूद, मालदीव ने अपने पर्यटन क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर स्थापित कर लिया और आज दुनिया के प्रमुख ट्रैवल डेस्टिनेशंस में से एक है.  

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