दुनिया में पहली बार लैब में विकसित किए गए खून (Lab-grown Blood) को लोगों को चढ़ाया गया. ब्रिटेन (UK) में हुए एक क्लिनिकल परीक्षण के तहत प्रयोगशाला में विकसित किए गए रक्त को लोगों में चढ़ाया गया. ब्रिटेन के शोधकर्ताओं ने यह जानकारी दी. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर बार खून चढ़ाया जाना उन लोगों पर निर्भर होता है जो रक्दान के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. इस रिसर्च का आखिरी लक्ष्य प्रयोग में लाए जा सकने वाले, विरेल ब्लड-ग्रुप वाले खून को विकसित करना है जो अक्सर मिलना मुश्किल होता है.
ये उन लोगों के लिए आवश्यक है जो सिकल सेल एनीमिया जैसी स्थितियों के लिए नियमित तौर पर खून चढ़ाए जाने पर निर्भर हैं. यदि खून के नमूने का सटीक मिलान नहीं होता है तो शरीर इसे अस्वीकार करना शुरू कर देता है और उपचार विफल हो जाता है. ऊतक-मिलान का यह स्तर प्रसिद्ध A, B, AB और O रक्त समूहों से अलग है.
ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एशले टोए ने कहा कि कुछ समूह ‘वास्तव में, दुर्लभ' हैं और ‘देश में केवल 10 लोग ही दान करने में सक्षम हो सकते हैं.' रिपोर्ट के मुताबिक पहली बार भारत में पहचान की गई ‘बॉम्बे' रक्त समूह की इस समय केवल तीन इकाइयाँ हैं. इसका पूरे ब्रिटेन में स्टॉक है.
इस रिसर्च प्रोजेक्ट को ब्रिस्टल, कैम्ब्रिज, लंदन और एनएचएस ब्लड एंड ट्रांसप्लांट की टीमें मिलकर अंजाम दे रही हैं. यह लाल रक्त कोशिकाओं पर केंद्रित है जो फेफड़ों से ऑक्सीजन को शरीर के बाकी हिस्सों में ले जाती है.
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