नई दिल्ली:
जम्मू और कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी जेकेएलएफ के संस्थापक अमानुल्लाह खान का पाकिस्तान के रावलपिंडी में देहांत हो गया है। वे 82 वर्ष के थे। रिपोर्ट के अनुसार अमानुल्लाह पिछले एक साल से सीने की बीमारी से परेशान थे।
रावलपिंडी के लियाकत बाग में बुधवार को अंतिम संस्कार किया जाएगा। गिलगिट के अस्तोर इलाके में अमानुल्लाह का जन्म 24 अगस्त 1934 में हुआ था।
1965 में कश्मीर प्लेबीसाइट फ्रंट के सचिव के तौर पर उनका चयन हुआ था। 1976 में अमानुल्लाह खान इंग्लैंड करए थे और मई 1977 में जेकेएलएफ की स्थापना की थी। अमानुल्लाह खान के पीछे उनकी एक बेटी अस्मा रह गई हैं।
हमारे संवाददाता नजीर मसूदी के अनुसार अलगावादी नेता के रूप में अमानुल्लाह खान की छवि बनी, जो कश्मीर के दोनों भाग को आजाद करवाना की बात करते रहे। 70 के दशक में पाकिस्तान ने उन्हें भारतीय एजेंट करार दिया और कार्रवाई करते हुए जेल में डाल दिया। वे 15 महीने वहां जेल में रहे। बताया जाता है कि कश्मीर की आजादी के लिए मकबूल बट के साथ जेकेएलफ की स्थापना की थी।
पाकिस्तान में रहते हुए लंबे समय तक आंदोलन चलाने के बाद जब कामयाबी मिलती दिखी नहीं तो उन्हें पाकिस्तान की नीयत पर भी शक हुआ। वे हमेशा कश्मीरियत की बात करते रहे। उनका ख्वाब था कश्मीर को एक आजाद मुल्क बनाना। भारत और पाकिस्तान दोनों ओर से उन्हें इसके आसार नहीं दिख रहे थे।
उनके पूरे जीवन में खास बात यह रही कि पीओके में रहकर पाकिस्तान के खिलाफ आवाज उठाई और कश्मीरियत की बात की।
पीओके में रहकर मूवमेंट चलाते रहे। और आजादी की बात करते रहे। उन्होंने जेकेएलएफ की कश्मीर में मिलिटेंसी को सपोर्ट किया। पाकिस्तान में पाकिस्तान का विरोध करने की वजह से पाकिस्तान ने उनका साथ छोड़ दिया। इस वजह से पाकिस्तान में उनका असर कम होता गया और फिर लश्कर और हिजबुल ने उनकी जगह ले ली।
रावलपिंडी के लियाकत बाग में बुधवार को अंतिम संस्कार किया जाएगा। गिलगिट के अस्तोर इलाके में अमानुल्लाह का जन्म 24 अगस्त 1934 में हुआ था।
1965 में कश्मीर प्लेबीसाइट फ्रंट के सचिव के तौर पर उनका चयन हुआ था। 1976 में अमानुल्लाह खान इंग्लैंड करए थे और मई 1977 में जेकेएलएफ की स्थापना की थी। अमानुल्लाह खान के पीछे उनकी एक बेटी अस्मा रह गई हैं।
हमारे संवाददाता नजीर मसूदी के अनुसार अलगावादी नेता के रूप में अमानुल्लाह खान की छवि बनी, जो कश्मीर के दोनों भाग को आजाद करवाना की बात करते रहे। 70 के दशक में पाकिस्तान ने उन्हें भारतीय एजेंट करार दिया और कार्रवाई करते हुए जेल में डाल दिया। वे 15 महीने वहां जेल में रहे। बताया जाता है कि कश्मीर की आजादी के लिए मकबूल बट के साथ जेकेएलफ की स्थापना की थी।
पाकिस्तान में रहते हुए लंबे समय तक आंदोलन चलाने के बाद जब कामयाबी मिलती दिखी नहीं तो उन्हें पाकिस्तान की नीयत पर भी शक हुआ। वे हमेशा कश्मीरियत की बात करते रहे। उनका ख्वाब था कश्मीर को एक आजाद मुल्क बनाना। भारत और पाकिस्तान दोनों ओर से उन्हें इसके आसार नहीं दिख रहे थे।
उनके पूरे जीवन में खास बात यह रही कि पीओके में रहकर पाकिस्तान के खिलाफ आवाज उठाई और कश्मीरियत की बात की।
पीओके में रहकर मूवमेंट चलाते रहे। और आजादी की बात करते रहे। उन्होंने जेकेएलएफ की कश्मीर में मिलिटेंसी को सपोर्ट किया। पाकिस्तान में पाकिस्तान का विरोध करने की वजह से पाकिस्तान ने उनका साथ छोड़ दिया। इस वजह से पाकिस्तान में उनका असर कम होता गया और फिर लश्कर और हिजबुल ने उनकी जगह ले ली।
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