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Explainer : आयरन डोम मतलब इजरायल का 'सुरक्षा कवच', जानिए कैसे करता है ये काम?

इजरायल के आयरन डोम (Israel's Iron Dome) की चर्चा आज दुनियाभर में हो रही है. सभी जानते हैं कि यह वह सुरक्षा कवच है जो दुश्मनों से इजरायल की रक्षा करता है. लेकिन यह सिस्टम काम कैसे करता है, यहां समझिए.

Explainer : आयरन डोम मतलब इजरायल का 'सुरक्षा कवच', जानिए कैसे करता है ये काम?
इजरायल का आयरन डोम सिस्टम कैसे काम करता है.
दिल्ली:

ईरान ने मंगलवार रात जब इजरायल पर ताबड़तोड़ 180 मिसाइलें दागीं (Iran Israel Attack) तो वह आयरन डोम ही था, जिसने इजरायल की रक्षा करते हुए उनको हवा में ही खत्म कर दिया. सिर्फ कुछ मिसाइलें ही यहूदी देश के इस सुरक्षा कवच को भेद पाईं, जिसकी वजह से मामूली का नुकसान ही हुआ. इस हमले के बीच सबसे ज्यादा चर्चा आयरन डोम (Iron Dome)  मतलब इजरायल के उस सुरक्षा कवच की हो रही है, जो दुश्मनों के हर एक वार से उसकी रक्षा करता है. ये आयरन डोम आखिर काम कैसे करता है, जानिए.

इजरायल का सुरक्षा कवच यानी कि आयरन डोम परत बाई परत सामने आने वाली मिसाइलों को खत्म कर देता है. इसमें तीन ऑब्जेक्ट्स होते हैं. 

  •  डिटेक्शन और ट्रैकिंग रडार
  •  कंट्रोल सेंटर 
  •  मिसाइल फायरिंग यूनिट
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डिटेक्शन और ट्रैकिंग रडार कैसे करता है काम?

दुश्मन की तरफ से जैसे ही कोई मिसाइल इजरायल की तरफ आती है, ये इसे ट्रैक करता है कि ये मिसाइलें कैसे और कहा से आ रही हैं. मतलब इसका काम मिसाइल और रॉकेट को ट्रैक करना है.

कंट्रोल सेंटर कैसे करता है काम?

कंट्रोल सेंटर इत बात को बताता है कि इसका इंपैक्ट क्या होगा. ये कैलकुलेट करता है कि ये मिसाइल किस इलाके में गिरेगी. जब इसे लगता है कि मिसाइल ऐसी जगह पर गिरने वाली है, जहां पर बसावट नहीं है और लोग नहीं रहते हैं, तो यह आगे सिग्नल नहीं भेजता है. जो मिसाइलें रिहायशी इलाकों में गिरने वाली होती हैं, ये सिर्फ उन्हीं के लिए सिग्नल आगे भेजता है.

मिसाइल फायरिंग यूनिट का काम जानिए

जैसे ही कंट्रोल सेंटर सिग्नल भेजता है तो मिसाइल फायरिंग यूनिट एक्टिव हो जाता है. इंटरसेप्ट करने के लिए यहां से ही मिसाइल फायर होती है और दुश्मन की तरह से आ रही मिसाइल और रॉकेट को हवा में ही खत्म कर देती है. इसका इतना नाम इसलिए भी है, क्यों कि इसका सक्सेस रेट 97-98 प्रतिशत है. इसका रेंज 4 से करीब 70 किमी की मिसाइल को डिटेक्ट करना है. इतनी दूर से आ रही मिसाइल और रडार को यह डिटेक्ट कर लेता है.

कब आया आयरन डोम को बनाने का आइडिया

इसे बनाने का आइडिया साल 2006 में आया था, जब लेबनान की तरफ से इजरायल पर 4 हजार मिसाइलें दागी गई थीं, जिनमें 44 इजरायली नागरिक मारे गए थे. इसके बाद काम शुरू हुआ और आयरन डोम का ये पूरा सिस्टम बनाया गया.  ये सिस्टम काफी महंगा है. इसकेलिए पहले इजरायल ने पैसे दिए.

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इतना महंगा आयरन डोम सिस्टम

दुश्मनों से इजरायल की रक्षा करने वाले इस आयरन डोम इसकी कीमत करीब 50 मिलियन डॉलर की थी. ये बहुत ही महंगा है. पहले इजरायल ने पैसे दिए. इसके बाद से अमेरिका लगातार मदद कर रहा है. साल 2011 में इसे बीशिबा इलाके में लगाया गया. 2014 तक इसने करीब 1200 रॉकेट नाकाम किए. 2024 तक  इसने कितना ही बड़ा काम किया है. पूरे इजरायल की सुरक्षा की तीन से चार लेयर्स हैं, उनमें ये सबसे अहम है. आयरन डोम बेहद शानदार काम करता है, इसीलिए इसका नाम बहुत ज्यादा है.

आयरन डोम सबकी चाहत, इसकी तकनीक जानिए

इसकी तकनीक इतनी नई है कि दुनिया के कई देश चाहते हैं कि ये सिस्टम उनके पास भी हो. ताकि इसका इस्तेमाल वह अपनी सुरक्षा के लिए कर सकें. आयरन डोम सिस्टम इजरायल का सबसे जबरदस्त इनोवेशन है. हमास, लेबनान या ईरान जैसा कोई भी दुश्मन जब उस पर कोई भी मिसाइल या रॉकेट दागता है तो आयरन डोम का डिटेक्शन और ट्रैकिंग रडार उसे पहले डिटेक्ट करता है, कंट्रोल सेंटर यह बताता है कि मिसाइलें कहां पर जा रही हैं फिर मिसाइल फायरिंग यूनिट फायरिंग कर आसमान में ही इन जानलेवा मिसाइलों का खात्मा कर देता है.

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