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Iran Isreal War: ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर बदलती रही है भारत की रणनीति, कब किया था विरोध

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर इस समय इजरायल उस पर हमले कर रहा है. इस लड़ाई में अमेरिका भी शामिल हो गया है. इन दोनों देशों का कहना है कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है. आइए जानते हैं कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर कैसा रहा है इस पर भारत का रुख.

Iran Isreal War: ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर बदलती रही है भारत की रणनीति, कब किया था विरोध
नई दिल्ली:

इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव बढ़ता जा रहा है. रविवार को अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु प्रतिष्ठानों पर बम बरसाए. अमेरिका की इस कार्रवाई से विश्व युद्ध का भी खतरा पैदा हो गया है. दुनिया के कई देशों ने अमेरिका की इस कार्रवाई की आलोचना की है. इजरायल और अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम को दुनिया के लिए खतरा बता रहे हैं. हालांकि ईरान का परमाणु कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) की निगरानी में चल रहा है. ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर भारत की भी नजर रही है. लेकिन इसको लेकर भारत का स्टैंड बदलता रहा है. 

ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर भारत की नीति

इजरायल-ईरान के तनाव में भारत के लिए संतुलन बनाना आसान नहीं है. लेकिन भारत ने संतुलन बनाने की कोशिश की है. एक तरफ ईरान से उसके सदियों पुराने सांस्कृतिक-व्यापारिक संबंध हैं तो इजरायल के साथ रणनीतिक संबंध हैं. ऐसे में किसी एक देश का पक्ष लेना भारत के लिए परेशानी पैदा करने वाला कदम हो सकता है. ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर भारत का स्टैंड बदलता रहा है. साल 2005 में यह पाया गया कि ईरान परमाणु कार्यक्रम में सुरक्षा उपायों को लेकर हुए एनपीटी सेफगार्ड का पालन नहीं कर रहा है. इसके बाद आईएईए में 24 सितंबर 2005 को एक प्रस्ताव (GOV/2005/77)लाया गया. इसमें भारत ने 21 देशों के साथ मतदान किया था. ईरान का विरोध करने वालों में भारत के अलावा अमेरिका और पश्चिम के देश शामिल थे. वहीं गुटनिरपेक्ष आंदोलन के बहुत से देश मतदान के दौरान गैरहाजिर रहे थे.

ईरान परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty) पर दस्तखत किए हैं. इस वजह से उसके पास अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं और दायित्वों के मुताबिक परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को विकसित करने का कानूनी अधिकार है. इसके साथ ही उसका यह दायित्व भी है कि वह आईएईए के तहत अपने परमाणु कार्यक्रम पर स्वेच्छापूर्वक स्वीकार किए गए सुरक्षा उपायों का ध्यान रखे. 

भारत ने 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया था.

भारत ने 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया था.

जिस समय ईरान के खिलाफ यह प्रस्ताव लाया गया था, उस समय देश में कांग्रेस के नेतृत्व वासी यूपीए की सरकार थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिका के साथ परमाणु समझौता करने के लिए आगे बढ़ रहे थे. भारत यह समझौता अपने नागरिक परमाणु कार्यक्रम के लिए कर रहा था. इसलिए खुद को अनुशासित दिखाने के लिए भारत ने ईरान के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया था. हालांकि, प्रस्ताव को तत्काल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को नहीं भेजा गया था. भारत उन देशों में शामिल था, जिन्होंने पश्चिमी देशों से इस मुद्दे को आईएईए में ही रखने की अपील की थी. 

भारत-अमेरिका का परमाणु समझौता

प्रस्ताव (GOV/2005/77) के बाद चार फरवरी, 2006 को भारत फिर अमेरिका के साथ खड़ा नजर आया था. उस समय आईएईए के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने ईरान की ओर से सुरक्षा उपायों का अनुपालन न करने पर मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भेजने के लिए मतदान किया था. 

अमेरिका के साथ भारत ने 2008 में परमाणु समझौता किया था.इससे पहले ईरान के परमाणु कार्यक्रम में एनपीटी सेफगार्ड के अनुपालन का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को भेज दिया गया. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने 2010 से ईरान पर कई आर्थिक पाबंदियां लगा दी थीं. उन्हें इस बात का संदेह था कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम का इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने के लिए कर रहा है. इसके बाद 2015 में, ईरान और अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस, जर्मनी और ब्रिटेन (सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देश) कई दौर की बातचीत के बाद संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) पर सहमत हुए थे. इस समझौते में ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने और अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण की इजाजत देने पर सहमत हुआ था. इसके बदले में उस पर लगी पाबंदियों को हटा लिया गया था. डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका 2018 में इससे अलग हो गया था.

भारत का शक्ति संतुलन

इस दौरान भारत को ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर किसी तरह का रुख अपनाने की कोई जरूरत नहीं पड़ी. लेकिन अमेरिका के अलग होने के बाद ईरान का परमाणु कार्यक्रम एक बार फिर जांच के दायरे में आ गया. इसके परिणाम स्वरूप भारत को ईरान से तेल आयात बंद करना पड़ा.लेकिन ईरान में भारत की चाबहार बंदरगाह परियोजना चलती रही. जून 2024 में अमेरिका आईएईए में ईरान के खिलाफ एक प्रस्ताव लेकर आया. इसका मकसद ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगाने की थी, लेकिन भारत इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में अनुपस्थित रहा. भारत के अलावा 15 अन्य देशों ने मतदान के दौरान गैरहाजिर रहना चुना था.लेकिन 35 में से 19 देशों के प्रस्ताव के पक्ष में वोट कर देने से प्रस्ताव पास हो गया था. इस मतदान के दौरान भी भारत ने अपने सांस्कृतिक-व्यापारिक दोस्त ईरान और रणनीतिक दोस्त इजरायल के बीच संतुलन बनाने का रास्ता चुना था. 

इसके बाद सितंबर 2024 में आईएईए में ईरान के खिलाफ लाए गए एक प्रस्ताव के विरोध में भी भारत ने गैर हाजिर रहने का विकल्प चुना था. दरअसल आईएईए ने एक रिपोर्ट में कहा था कि ईरान यूरोनियम के संवर्धन को बढ़ा रहा है. इस रिपोर्ट के आधार पर E3 के नाम से मशहूर फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी ने अमेरिका के सहयोग से यह प्रस्ताव लाया था.वहीं इसी महीने आईएईए में लाए गए एक और प्रस्ताव पर हुए मतदान के दौरान भी भारत गैर हाजिर रहा था. दरअसल भारत गैर हाजिर रहकर यह संदेश देता है कि ईरान के पास अपनी नागरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु कार्यक्रम चलाने का अधिकार है. 

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