
- पाकिस्तान और सऊदी अरब ने साझा रक्षा समझौता हस्ताक्षर किया है जिसमें एक देश पर हमला दोनों के खिलाफ माना जाए.
- भारत ने इस समझौते के प्रभावों का अध्ययन करने और राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता जताई है.
- आने वाले समय में अगर भारत ने पाकिस्तान में कार्रवाई की तो क्या सऊदी अरब उसकी मदद करेगा या नहीं, यह देखना होगा.
पाकिस्तान और सऊदी अरब ने औपचारिक रूप से एक साझा रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इसमें लिखा गया है कि किसी एक देश पर हुए हमले को 'दोनों देशों के खिलाफ हमला' माना जाएगा. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की रियाद यात्रा के दौरान सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मुलाकात के बाद इस साझा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. दोनों देशों ने 'स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट' नाम के इस समझौते पर एक संयुक्त बयान भी जारी किया है. इसके मुताबिक यह समझौता दोनों देशों के बीच दशकों पुरानी सुरक्षा साझेदारी को और मजबूत करता है. जाहिर है इस साझा समझौते का असर भारत पर भी पड़ सकता है.
इस बारे में भारत ने सधी हुई प्रतिक्रिया दी है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा है कि हम अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए इस समझौते से पड़ने वाले असर का अध्ययन करेंगे. उन्होंने कहा कि सरकार भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने और सभी क्षेत्रों में व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.
भारत के लिए समझौते के क्या मायने हैं?
भारत के लिए यह समझौता काफी मायने रखता है. भारत ने बार-बार कहा है कि ऑपरेशन सिन्दूर अभी खत्म नहीं हुआ है और अगर आतंकी संगठन फिर से पहलगाम जैसी हरकत करते हैं तो भारत दोबारा कार्रवाई कर सकता है. ऐसे में सवाल यह है कि किसी आतंकवादी हमले की सूरत में भारत ने पाकिस्तान के भीतर घुसकर कार्रवाई की तो क्या उसकी मदद के लिए सऊदी अरब साथ आएगा या फिर भारत से संबंधों की खातिर पहले की तरह कोई तटस्थ रवैया अपनाएगा? यह भी सही है कि सऊदी अरब के साथ तमाम खाड़ी देशों से भारत के संबध पहले से बेहतर हुए हैं, लेकिन पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच ताजा जुगलबंदी के कारण भारत को नये सिरे से सोचने की जरुरत है.
क्या किसी कूटनीति का हिस्सा?
पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब भारत ने पाकिस्तान पर हमला किया तो चीन और तुर्की ने पाकिस्तान की मदद की. यह जगजाहिर है कि चीन और तुर्की ने पाकिस्तान को हथियार दिए. पाकिस्तानी सेना के ज्यादातर हथियार चीन में बने हुए हैं. ऐसे में अब सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच रणनीतिक साझेदारी भारत के लिए चिंता की बात हो सकती है. पाकिस्तान के पीछे चीन जिस तरह से खड़ा होता है वैसे ही सऊदी अरब के पीछे अमेरिका का हाथ माना जाता है. ऐसे में क्या यह कदम भारत को दबाव में लाने के लिए किसी बड़ी कूटनीति का हिस्सा है? कहीं यह कोई सोची समझी रणनीति तो नहीं है कि भारत को घेरा जाए? क्या किसी आतंकी हमले के बाद भारत दोबारा पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करता है तो क्या उसकी मदद के लिये चीन और तुर्की के साथ सऊदी अरब भी आएगा?
क्या सोचते हैं रक्षा विशेषज्ञ
इस बारे में रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल अशोक कुमार ( रिटा.) ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के समय तुर्की और चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया था. अगर और देश इस अनौपचारिक गठबंधन का हिस्सा बनते हैं तो यह भारत के लिए स्वाभाविक तौर पर चिंता की बात है. उन्होंने कहा कि इस समझौते से पाकिस्तान सैन्य दृष्टि से लाभान्वित नहीं होगा, लेकिन समझौते से सऊदी अरब को अपरोक्ष रूप से परमाणु हथियारों की उपलब्धता सुनिश्चित हो जाएगी. हालांकि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच यह समझौता सालों चली बातचीत का परिणाम है. दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक सहयोग का संस्थागत रूप है. यह समझौता ऐसे समय में हुआ है जब गाजा संकट के बीच इजरायल ने कतर पर हमला किया है.
रक्षा मामलों के जानकारों का मानना है कि भारत और सऊदी अरब के बीच अरसे से बेहतर संबंध रहे हैं. ऐसे में जाहिर है कि सऊदी अरब, कतई भारत से अपने संबंध खराब नहीं करना चाहेगा. हालांकि समझौते के बाद भारत को अब फूंक-फूंककर कदम रखने होंगे.
सऊदी अरब की राह भी आसान नहीं
ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान की खातिर सऊदी अरब भारत के साथ मजबूत संबंधों की तिलांजलि दे देगा. एक वरिष्ठ सऊदी अधिकारी ने भारत के साथ संबंधों को संतुलित करने की आवश्यकता को स्वीकार किया है. अधिकारी ने कहा कि हम भारत के साथ संबंधों को आगे बढ़ाते रहेंगे और क्षेत्रीय शांति में हर संभव योगदान देने का प्रयास करेंगे. जानकारों की राय में अगर ऑपरेशन सिंदूर का दूसरा दौर शुरू होता है तो सऊदी अरब के लिए यह बड़ी चुनौती साबित होगा.
सऊदी अरब सीधे तौर पर भारत पर हमला नहीं करेगा, मगर वह भारत के खिलाफ पाकिस्तान को आर्थिक और सैन्य मदद कर सकता है. जाहिर है भविष्य की राह पेचीदा है लेकिन सामरिक मामलों के जानकारों का मानना है कि इससे पाकिस्तान की ताकत और बढ़ जाएगी. बदलती भू-सामरिक स्थिति में भारत को अपनी सैन्य तैयारी को और ज्यादा बढ़ाना चाहिए. सऊदी अरब की सेना छोटी भले हो लेकिन उसे अमेरिका, चीन, रूस सभी से अत्याधुनिक हथियार मिलते हैं.
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