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This Article is From Jan 17, 2013

क्या ताहिल उल कादरी पाकिस्तान के अन्ना हजारे हैं?

नई दिल्ली: कुछ ही हफ्ते पहले अचानक पाकिस्तान पहुंचकर देश की आसिफ अली ज़रदारी के नेतृत्व वाली सरकार को 'भ्रष्ट' कहने, देश की सभी असेम्बलियों को भंग करने और चुनाव सुधार की मांग करने वाले कनाडा में बसे 62-वर्षीय सूफी धर्मगुरु मोहम्मद ताहिर-उल-कादरी की तुलना भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन करने वाले 75-वर्षीय भारतीय समाजसेवी अन्ना हजारे से की जाने लगी है।

पिछले चार दिनों में देश की राजधानी इस्लामाबाद की सड़कों पर मोहम्मद ताहिर-उल-कादरी संसद की ओर बढ़ते सरकार-विरोधी प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व करते दिखाई दिए। पहले दिन की तुलना में बाद में प्रदर्शनकारियों की संख्या भले ही घट गई हो, लेकिन धर्मगुरु के भाषणों की आग ठंडी नहीं हुई। बुधवार को भी पाकिस्तानी संसद से कुछ दूरी पर खड़े किए गए एक बुलेटप्रूफ वाहन से उन्होंने अपने समर्थकों को लगातार चार घंटे तक संबोधित किया।

अब चर्चा गर्म है कि क्या कादरी पाकिस्तान की राजनीति में मची उथल-पुथल को खत्म कर पाएंगे। लोगों के ज़हन में जो सवाल सबसे ज़्यादा उभर रहा है, वह यही है कि क्या कादरी पाकिस्तान की राजनीति की नई उम्मीद बन सकते हैं, और क्या उनके प्रदर्शन और भाषण देश की मौजूदा राजनैतिक परिस्थितियों में नया मोड़ लेकर आए हैं।

इस्लामाबाद में नेशनल असेम्बली के सामने का नज़ारा इस वक्त कुछ−कुछ काहिरा के तहरीर स्क्वायर और पिछले महीने दिल्ली के राजपथ जैसा नज़र आ रहा है। कनाडा से पिछले महीने लौटे पाकिस्तान के सूफी धर्मगुरु मोहम्मद ताहिर-उल-कादरी अपने समर्थकों के साथ नेशनल असेम्बली के बाहर जमा हैं। पाकिस्तान सरकार की पेशानी पर बल नज़र आने लगे हैं। कहा जा रहा है कि कादरी इस्लामाबाद के डी-स्क्वायर को मिस्र के तहरीर स्क्वायर में बदलना चाहते हैं, जहां सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ चिंगारी ने लपटों का रूप लिया था। यह भी ख़बर है कि मोहम्मद ताहिर-उल-कादरी के खिलाफ इस्लामाबाद के कोशर थाने में एफआईआर दर्ज कर ली गई है।

आइए जानते हैं, आखिर कौन हैं मोहम्मद ताहिर-उल-कादरी, जो अचानक पाकिस्तान के राजनीतिक नक्शे पर नज़र आए और छा गए। दरअसल, कादरी सूफी विद्वान हैं और पंजाब विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संवैधानिक कानून के प्रोफेसर रह चुके हैं, लेकिन धार्मिक उपदेश देते−देते वह अचानक भ्रष्टाचार व आतंकवाद के खिलाफ और मानवाधिकार व अमन के हक की आवाज़ बन गए हैं।

पाकिस्तान में पहली बार ऐसे मज़हबी नेता के पीछे भीड़ नज़र आ रही है, जो जेहादियों के हक में नहीं बोल रहा है। मोहम्मद ताहिर-उल-कादरी का एजेंडा लंबा−चौड़ा है। वह चाहते हैं कि पाकिस्तान की चुनाव प्रणाली में सुधार हो, साफ−सुथरे चुनाव होने तक कामचलाऊ सरकार बनाई जाए, 24 घंटे में देश और सूबों की सरकारें भंग कर दी जाएं, भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चले और व्यवस्था में खुलापन नज़र आए।

पाकिस्तान के साथ-साथ कनाडा की भी नागरिकता रखने वाले कादरी ने वर्ष 2010 में दहशतगर्दी के खिलाफ फतवा जारी किया था, लेकिन दोहरी नागरिकता के चलते वह पाकिस्तान में चुनाव नहीं लड़ सकते। इसके बावजूद पाकिस्तान सरकार उनसे खौफ खा रही है। शायद इसलिए, क्योंकि पाकिस्तान के पंजाब और दूसरे कई सूबों में उनकी कई संस्थाएं और हज़ारों समर्थक हैं। कादरी को करीब 10 लाख लोगों का समर्थन हासिल है और ये वे लोग हैं, जो मौजूदा सरकार के सख्त खिलाफ हैं। ये 10 लाख लोग भले ही सरकार बनाने के लिए काफी नहीं हैं, लेकिन पहले ही कई तरह के संकटों से जूझ रही सरकार के संकटों को दोबाला करने के लिए काफी हैं।

वर्ष 2010 में मोहम्मद ताहिर-उल-कादरी ने धार्मिक संदेश जारी कर आतंकवाद और आत्मघाती हमलों की मुखालफत की थी, जिससे वह लोकप्रिय हुए। वह एक शैक्षणिक और धार्मिक संगठन चलाते हैं, जिसकी मौजूदगी दुनियाभर में है। वह अपराधियों को राजनीति से बाहर करने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने पाकिस्तान के राजनीतिक तंत्र में बदलाव लाने की ठानी है, और संकल्प लिया है कि जब तक ऐसा नहीं होता, वह वापस नहीं जाएंगे। एक इंटरव्यू में उन्होंने 'चुनावी तानाशाही' और 'तहरीर स्क्वायर' जैसी स्थिति की तरफ भी इशारा किया। वह ऐसा सिस्टम चाहते हैं, जिसमें उम्मीदवारों की ईमानदारी की जांच की जाए, और इसी मांग के चलते विश्लेषक उनकी तुलना अन्ना हजारे और लोकपाल आंदोलन से करने लगे हैं।

वैसे पाकिस्तान में लगातार हो रहे आतंकवादी हमलों, और प्रशासन में बड़े पैमाने पर मौजूद भ्रष्टाचार के चलते ही लोग बड़ी संख्या में मोहम्मद ताहिर-उल-कादरी के समर्थन में आ रहे हैं। ऐसा लगता है कि कादरी को सेना का समर्थन भी हासिल है, और विशेषज्ञों का यहां तक कहना है कि देश में उथल-पुथल सुनिश्चित करने के लिए रावलपिंडी (सेना मुख्यालय) ने ही उन्हें खड़ा किया है। बताया जाता है कि ज़्यादातर पाकिस्तानियों को सूफी विचारधारा से कोई दिक्कत नहीं है। पाकिस्तान में मार्च में आम चुनाव होने हैं, और अगर वहां एक असैन्य सरकार के हाथ से सत्ता दूसरी असैन्य सरकार के हाथ में जाती है तो यह पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार होगा। पाक का सियासी माहौल इस वक्त नवाज़ शरीफ के पक्ष में है, और वह सेना पर लगाम कस सकते हैं। ऐसे में आर्मी देश में राजनीतिक उथल-पुथल चाहेगी, ताकि चुनाव टल जाएं और वहां एक कमजोर अंतरिम सरकार आ जाए।

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