लंदन:
इंग्लैंड में एक 40 वर्षीय भारतीय महिला के साथ वर्षों से दुष्कर्म करने, उसकी पिटाई करने, घटिया भोजन देने और तीन मध्यवर्गीय परिवारों के बीच उसे गुलाम बनाकर रखे जाने की घटना प्रकाश में आई है। इस महिला को अशिक्षित बताया गया है।
समाचार पत्र 'द इंडिपेंडेंट' के अनुसार महिला ने हर्टफोर्डशायर पुलिस के साथ-साथ कई धर्मार्थ संगठनों एवं अन्य सरकारी एजेंसियों से सहायता की गुहार लगाई। लेकिन पुलिस ने जब भी महिला से बातचीत की तो महिला के साथ अभद्रता करने वाले एक रसूखदार व्यक्ति को ही दुभाषिया बनाया गया।
महिला को हर बार उसके 'मालिक' को सौंप दिया जाता और मालिक के परिवार को बदनाम करने के लिए उसे और अधिक प्रताड़ित किया जाता, उसे धमकी दी जाती कि उसे पीछे वाले बगीचे में गाड़ दिया जाएगा।
महिला को तीन वर्ष से अधिक समय तक प्रताड़ित करने के आरोप में तीन लोगों को दोषी ठहराया गया। तीनों व्यक्तियों में से एक ऑप्टीशियन, एक कसाई और एक सेक्रेटरी है।
समाचार पत्र की रपट के अनुसार, महिला को तीनों परिवारों के बीच आदान-प्रदान किया जाता और गुलाम की तरह रखा जाता। उन्होंने महिला का पासपोर्ट जब्त कर लिया था और वे महिला को फूटी कौड़ी भी नहीं देते थे।
अदालती दस्तावेज के अनुसार महिला जब भी भागकर पुलिस के पास सहायता के लिए गई, उसकी याचना को पुलिस ने नजरअंदाज कर दिया। ऐसा कम से कम 12 बार हुआ।
प्रवासी कामगारों के लिए काम करने वाली एक संस्था द्वारा महिला को शरण दिए जाने और मानवाधिकार संगठन द्वारा महिला का मुद्दा अपने हाथ में लिए जाने के बाद ही महिला के नारकीय जीवन का अंत हो सका।
अभियोजन पक्ष के वकील कैरोलिन हॉफी ने क्रायडन क्राउन अदालत के समक्ष कहा, "अनेक सरकारी संस्थाओं ने उसकी सहायता करने से इंकार कर दिया, सहायता के लिए महिला द्वारा लगाई जा रही बार-बार की गुहार को नजरअंदाज किया गया, जांच प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और ऐसा कहा जा सकता है कि सच्चाई को नजरअंदाज किया गया।"
महिला अपने जीवन को बेहतर बनाने तथा भारत में अपने परिवार को कमाकर रुपये भेजने के उद्देश्य से 2005 में भारत के हैदराबाद से इंग्लैंड पहुंची थी।
वह जब भी किसी की सहायता प्राप्त करने की कोशिश करती, उसके 'मालिक' उसे प्रताड़ित करते। एक बार तो एक पेशेवर दुभाषिए ने पुलिस को बताया कि महिला झूठ बोल रही है और उसके देश में यह सामान्य बात है।
महिला को पहली बार 2006 में अस्पताल ले जाया गया। महिला का पैर बुरी तरह जख्मी था, क्योंकि उसकी 'मालकिन' शमीना यूसुफ ने उसे कप से खींचकर मारा था।
रपट में कहा गया है कि हालांकि उस समय कोई कार्रवाई नही की गई, क्योंकि महिला को इसके बारे में किसी को बताने के लिए धमकाया गया था।
महिला दो वर्ष से भी ज्यादा समय के बाद भाग गई, लेकिन अपना पासपोर्ट लेने के लिए वह उस परिवार के दूसरे रिश्तेदारों के पास वापस लौट गई।
महिला के वकील ने अदालत को बताया कि महिला सेंट जॉन्स वूड में एक कमरे वाले मकान में रहती थी और कसाई, एंकार्ता बालापोवी ने उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया।
महिला किसी तरह भाग गई और उसका मामला इंग्लैंड की स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस की तस्करी इकाई को सौंप दिया गया।
ऑप्टीशियन बलराम ओबेराय और सेक्रेटरी यूसुफ को महिला के साथ मारपीट के लिए दोषी करार दिया गया। ओबेराय को जान से मारने की धमकी देने का भी दोषी पाया गया। वहीं कसाई, बालापोवी को दुष्कर्म का दोषी पाया गया। उन्हें अगले महीने सजा सुनाई जाएगी। दो अन्य प्रतिवादियों को छोड़ दिया गया।
पीड़िता अभी मारपीट के कारण इतनी चोटिल है कि उसे व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ रहा है।
समाचार पत्र 'द इंडिपेंडेंट' के अनुसार महिला ने हर्टफोर्डशायर पुलिस के साथ-साथ कई धर्मार्थ संगठनों एवं अन्य सरकारी एजेंसियों से सहायता की गुहार लगाई। लेकिन पुलिस ने जब भी महिला से बातचीत की तो महिला के साथ अभद्रता करने वाले एक रसूखदार व्यक्ति को ही दुभाषिया बनाया गया।
महिला को हर बार उसके 'मालिक' को सौंप दिया जाता और मालिक के परिवार को बदनाम करने के लिए उसे और अधिक प्रताड़ित किया जाता, उसे धमकी दी जाती कि उसे पीछे वाले बगीचे में गाड़ दिया जाएगा।
महिला को तीन वर्ष से अधिक समय तक प्रताड़ित करने के आरोप में तीन लोगों को दोषी ठहराया गया। तीनों व्यक्तियों में से एक ऑप्टीशियन, एक कसाई और एक सेक्रेटरी है।
समाचार पत्र की रपट के अनुसार, महिला को तीनों परिवारों के बीच आदान-प्रदान किया जाता और गुलाम की तरह रखा जाता। उन्होंने महिला का पासपोर्ट जब्त कर लिया था और वे महिला को फूटी कौड़ी भी नहीं देते थे।
अदालती दस्तावेज के अनुसार महिला जब भी भागकर पुलिस के पास सहायता के लिए गई, उसकी याचना को पुलिस ने नजरअंदाज कर दिया। ऐसा कम से कम 12 बार हुआ।
प्रवासी कामगारों के लिए काम करने वाली एक संस्था द्वारा महिला को शरण दिए जाने और मानवाधिकार संगठन द्वारा महिला का मुद्दा अपने हाथ में लिए जाने के बाद ही महिला के नारकीय जीवन का अंत हो सका।
अभियोजन पक्ष के वकील कैरोलिन हॉफी ने क्रायडन क्राउन अदालत के समक्ष कहा, "अनेक सरकारी संस्थाओं ने उसकी सहायता करने से इंकार कर दिया, सहायता के लिए महिला द्वारा लगाई जा रही बार-बार की गुहार को नजरअंदाज किया गया, जांच प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और ऐसा कहा जा सकता है कि सच्चाई को नजरअंदाज किया गया।"
महिला अपने जीवन को बेहतर बनाने तथा भारत में अपने परिवार को कमाकर रुपये भेजने के उद्देश्य से 2005 में भारत के हैदराबाद से इंग्लैंड पहुंची थी।
वह जब भी किसी की सहायता प्राप्त करने की कोशिश करती, उसके 'मालिक' उसे प्रताड़ित करते। एक बार तो एक पेशेवर दुभाषिए ने पुलिस को बताया कि महिला झूठ बोल रही है और उसके देश में यह सामान्य बात है।
महिला को पहली बार 2006 में अस्पताल ले जाया गया। महिला का पैर बुरी तरह जख्मी था, क्योंकि उसकी 'मालकिन' शमीना यूसुफ ने उसे कप से खींचकर मारा था।
रपट में कहा गया है कि हालांकि उस समय कोई कार्रवाई नही की गई, क्योंकि महिला को इसके बारे में किसी को बताने के लिए धमकाया गया था।
महिला दो वर्ष से भी ज्यादा समय के बाद भाग गई, लेकिन अपना पासपोर्ट लेने के लिए वह उस परिवार के दूसरे रिश्तेदारों के पास वापस लौट गई।
महिला के वकील ने अदालत को बताया कि महिला सेंट जॉन्स वूड में एक कमरे वाले मकान में रहती थी और कसाई, एंकार्ता बालापोवी ने उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया।
महिला किसी तरह भाग गई और उसका मामला इंग्लैंड की स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस की तस्करी इकाई को सौंप दिया गया।
ऑप्टीशियन बलराम ओबेराय और सेक्रेटरी यूसुफ को महिला के साथ मारपीट के लिए दोषी करार दिया गया। ओबेराय को जान से मारने की धमकी देने का भी दोषी पाया गया। वहीं कसाई, बालापोवी को दुष्कर्म का दोषी पाया गया। उन्हें अगले महीने सजा सुनाई जाएगी। दो अन्य प्रतिवादियों को छोड़ दिया गया।
पीड़िता अभी मारपीट के कारण इतनी चोटिल है कि उसे व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ रहा है।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं