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"भारत को दो महीने में सॉरी बोलना पड़ जाएगा": टैरिफ पर ट्रंप के मंत्री का बड़बोला बयान

भारत ने अमेरिकी कार्रवाई को ‘‘अनुचित और अविवेकपूर्ण’’ बताया है और ऐसा किये जाने को लेकर आश्चर्य जताया. हैरानी की बात है कि अमेरिका ने रूसी कच्चे तेल के सबसे बड़े आयातक चीन पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की है.

"भारत को दो महीने में सॉरी बोलना पड़ जाएगा": टैरिफ पर ट्रंप के मंत्री का बड़बोला बयान
"भारत व्यवसाय अमेरिका के साथ समझौते की मांग करेंगा"
वॉशिंगटन:

अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने ब्लूमबर्ग से बात करते हुए भारत के लिए बड़बोला बयान दिया है. उन्होंने कहा कि भारत कुछ महीनों में वाशिंगटन के साथ व्यापार समझौता करने के लिए वापस आएगा. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है, हां, एक या दो महीने में, भारत बातचीत की मेज पर होगा और वे माफी मांगेंगे और डोनाल्ड ट्रम्प के साथ समझौता करने की कोशिश करेगा."  यह बात ऐसे समय में कही गई है जब अमेरिकी टैरिफ (शुल्क) को लेकर भारत और अमेरिका के संबंध पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय में संभवतः सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं. लुटनिक ने भारत पर कटाक्ष करते हुए कहा, "यह सब दिखावा है क्योंकि सबसे बड़े ग्राहक से लड़ना अच्छा लगता है. लेकिन अंततः, व्यवसाय अमेरिका के साथ समझौते की मांग करेंगे."

"संयुक्त राज्य अमेरिका का समर्थन करें"

उन्होंने कहा भारत अपना बाज़ार नहीं खोलना चाहता, रूसी तेल खरीदना बंद नहीं करना चाहता, और ब्रिक्स का हिस्सा बनना बंद नहीं करना चाहता. अगर आप रूस और चीन के बीच सेतु बनना चाहते हैं, तो बनिए! लेकिन या तो डॉलर का समर्थन करें, संयुक्त राज्य अमेरिका का समर्थन करें, अपने सबसे बड़े ग्राहक का समर्थन करें, या 50% टैरिफ चुकाएं देखते हैं यह कब तक चलता है."

उन्होंने भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि चूंकि कच्चे तेल पर प्रतिबंध लगा हुआ है और यह "बहुत ही सस्ता" है, और "क्योंकि रूसी इसे खरीदने के लिए लोगों को ढूंढ़ने की कोशिश कर रहे हैं", "भारत ने बस यही सोचा है, चलो इसे सस्ते में खरीदते हैं और खूब पैसा कमाते हैं.

भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया

अमेरिकी वाणिज्य सचिव की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आज एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि "ऐसा लगता है कि हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है," 

सोशल मीडिया पर ट्रंप का यह पोस्ट ऐसे समय में आया है जब कुछ ही दिन पहले चीन के शहर तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच गर्मजोशी से हुई बातचीत ने विश्व का ध्यान आकर्षित किया.

अमेरिका के राष्ट्रपति ने ‘ट्रुथ सोशल' पर लिखा, ‘‘लगता है हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है. साथ में उनका भविष्य दीर्घकालिक और समृद्ध हो!'' ट्रंप द्वारा भारतीय वस्तुओं पर शुल्क को दोगुना करके 50 प्रतिशत कर दिए जाने के बाद नयी दिल्ली और वाशिंगटन के बीच संबंधों में खटास आ गई है, जिसमें रूसी कच्चे तेल की खरीद को लेकर भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क भी शामिल है. अतिरिक्त शुल्क 27 अगस्त से लागू हो चुका है.

भारत ने अमेरिकी कार्रवाई को ‘‘अनुचित और अविवेकपूर्ण'' बताया है और ऐसा किये जाने को लेकर आश्चर्य जताया. हैरानी की बात है कि अमेरिका ने रूसी कच्चे तेल के सबसे बड़े आयातक चीन पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की है.

रूसी कच्चे तेल की खरीद का बचाव करते हुए, भारत यह कहता रहा है कि उसकी ऊर्जा खरीद राष्ट्रीय हित और बाजार की गतिशीलता से प्रेरित है. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद पश्चिमी देशों द्वारा मास्को पर प्रतिबंध लगाने के पश्चात, भारत ने छूट पर बेचे जाने वाले रूसी तेल की खरीद शुरू कर दी. परिणामस्वरूप, 2019-20 में कुल तेल आयात में मात्र 1.7 प्रतिशत हिस्सेदारी से, 2024-25 में रूस की हिस्सेदारी बढ़कर 35.1 प्रतिशत हो गई, और अब यह (रूस) भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है.

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