वाशिंगटन:
भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा है कि अफगानिस्तान में पिछले एक दशक से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के संयुक्त प्रयासों के बावजूद युद्ध प्रभावित देश में आतंकवाद का खतरा बरकरार है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि मंजीव पुरी ने कहा, ‘‘आतंकवाद के गिरोहों को अभी हमें जड़ से उखाड़ना है। इनमें अलकायदा, तालिबान, लश्कर-ए-तैयबा और अन्य आतंकी व कट्टरपंथी संगठन शामिल हैं, जो कि अफगानिस्तान की सीमाओं में सुरक्षित स्थानों से अपनी गतिविधियों का संचालन करते हैं।’’ अफगानिस्तान के मामले में किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से अमेरिका और उसके सहयोगियों को आगाह करते हुए भारत ने सुरक्षा परिषद को बताया कि ये देश तो युद्ध प्रभावित अफगानिस्तान से हटने की तैयारी कर रहे हैं लेकिन उसी तरह वहां से हटने की कोई तैयारी आतंकी संगठनों की नहीं हैं।
अफगानिस्तान की स्थिति पर विशेष चर्चा में बोलते हुए कल पुरी ने कहा, ‘‘बेशक, नाटो हाल ही में हुई आतंकी घटनाओं और हिंसा के आधार पर यह दावा कर रहा हो कि अफगानिस्तान में ‘अभियान पूरा हो गया’ लेकिन ऐसे ही ‘पीछे हटने’ की कोई तैयारी वहां की सीमा पर सक्रिय आतंकी संगठनों की नहीं है।’’ पुरी ने कहा कि अफगानिस्तान में होने वाले परिवर्तनों ने अब तक उस क्षेत्र और दुनिया की सुरक्षा को प्रभावित किया है और आगे भी ऐसा ही होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘हम आतंक के उन आश्रय स्थलों को आज भी नहीं भूले हैं जिन्होंने 1990 में अव्यवस्था में फंस चुके अफगानिस्तान में भारी तबाही मचाई। हम नहीं चाहते कि ऐसा अब दोबारा हो।’’
मंजीव पुरी ने कहा, ‘‘अप्रैल 2014 में अफगानिस्तान में राष्ट्रपति और प्रांतीय चुनाव होने हैं। हमें यह दिमाग में रखना होगा कि अदूरदर्शी रूख और राजनीतिक उपयोगिता के लिए जल्दबाजी में किए गए फैसले भारी तबाही ला सकते हैं।’’ उन्होंने कहा कि किसी भी तरह का राजनीतिक समझौता अफगानों के द्वारा ही किया जाना चाहिए ताकि वह अफगान समाज के हर वर्ग को स्वीकार हो और पिछले दस सालों की मेहनत जोखिम में न पड़ जाए।
पुरी ने कहा, ‘‘हममें से अधिकांश लोग अभी भी इस बात का प्रमाण चाहते हैं जो इस कथन का समर्थन करता हो कि अलकायदा बाकी आतंकी और चरमपंथी संगठनों से अलग है। हमारे लिए ये पृथक्करण कोई औचित्य नहीं रखता खासकर तब जबकि ये संगठन या इनके पोषक खुद ही ऐसा मानने को तैयार नहीं हैं। न तो अपने कामों से न ही अपनी बातों से।’’ अपने संबोधन में पाकिस्तान के स्थाई प्रतिनिधि मसूद खान ने सुरक्षा परिषद को बताया कि अफगानिस्तान में शांति, सुरक्षा और आर्थिक पुनर्निर्माण की जटिल चुनौतियों से निपटने के लिए कई क्षेत्रीय प्रयास किए जा रहे हैं।
खान ने कहा, ‘‘इस संदर्भ में ब्रिटेन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच हुईं शिखर स्तरीय बैठकें काफी उपयोगी साबित हुई हैं।’’ पाकिस्तान सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है।
खान ने कहा, ‘‘हमें आतंकियों के खतरनाक मंसूबे से निपटने की जरूरत है जो विचारधारा का नकली मुखौटा पहने हुए हैं। ये इस्लाम या मुसलिमों का प्रतिनिधित्व नहीं करते।’’
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि मंजीव पुरी ने कहा, ‘‘आतंकवाद के गिरोहों को अभी हमें जड़ से उखाड़ना है। इनमें अलकायदा, तालिबान, लश्कर-ए-तैयबा और अन्य आतंकी व कट्टरपंथी संगठन शामिल हैं, जो कि अफगानिस्तान की सीमाओं में सुरक्षित स्थानों से अपनी गतिविधियों का संचालन करते हैं।’’ अफगानिस्तान के मामले में किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से अमेरिका और उसके सहयोगियों को आगाह करते हुए भारत ने सुरक्षा परिषद को बताया कि ये देश तो युद्ध प्रभावित अफगानिस्तान से हटने की तैयारी कर रहे हैं लेकिन उसी तरह वहां से हटने की कोई तैयारी आतंकी संगठनों की नहीं हैं।
अफगानिस्तान की स्थिति पर विशेष चर्चा में बोलते हुए कल पुरी ने कहा, ‘‘बेशक, नाटो हाल ही में हुई आतंकी घटनाओं और हिंसा के आधार पर यह दावा कर रहा हो कि अफगानिस्तान में ‘अभियान पूरा हो गया’ लेकिन ऐसे ही ‘पीछे हटने’ की कोई तैयारी वहां की सीमा पर सक्रिय आतंकी संगठनों की नहीं है।’’ पुरी ने कहा कि अफगानिस्तान में होने वाले परिवर्तनों ने अब तक उस क्षेत्र और दुनिया की सुरक्षा को प्रभावित किया है और आगे भी ऐसा ही होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘हम आतंक के उन आश्रय स्थलों को आज भी नहीं भूले हैं जिन्होंने 1990 में अव्यवस्था में फंस चुके अफगानिस्तान में भारी तबाही मचाई। हम नहीं चाहते कि ऐसा अब दोबारा हो।’’
मंजीव पुरी ने कहा, ‘‘अप्रैल 2014 में अफगानिस्तान में राष्ट्रपति और प्रांतीय चुनाव होने हैं। हमें यह दिमाग में रखना होगा कि अदूरदर्शी रूख और राजनीतिक उपयोगिता के लिए जल्दबाजी में किए गए फैसले भारी तबाही ला सकते हैं।’’ उन्होंने कहा कि किसी भी तरह का राजनीतिक समझौता अफगानों के द्वारा ही किया जाना चाहिए ताकि वह अफगान समाज के हर वर्ग को स्वीकार हो और पिछले दस सालों की मेहनत जोखिम में न पड़ जाए।
पुरी ने कहा, ‘‘हममें से अधिकांश लोग अभी भी इस बात का प्रमाण चाहते हैं जो इस कथन का समर्थन करता हो कि अलकायदा बाकी आतंकी और चरमपंथी संगठनों से अलग है। हमारे लिए ये पृथक्करण कोई औचित्य नहीं रखता खासकर तब जबकि ये संगठन या इनके पोषक खुद ही ऐसा मानने को तैयार नहीं हैं। न तो अपने कामों से न ही अपनी बातों से।’’ अपने संबोधन में पाकिस्तान के स्थाई प्रतिनिधि मसूद खान ने सुरक्षा परिषद को बताया कि अफगानिस्तान में शांति, सुरक्षा और आर्थिक पुनर्निर्माण की जटिल चुनौतियों से निपटने के लिए कई क्षेत्रीय प्रयास किए जा रहे हैं।
खान ने कहा, ‘‘इस संदर्भ में ब्रिटेन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच हुईं शिखर स्तरीय बैठकें काफी उपयोगी साबित हुई हैं।’’ पाकिस्तान सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है।
खान ने कहा, ‘‘हमें आतंकियों के खतरनाक मंसूबे से निपटने की जरूरत है जो विचारधारा का नकली मुखौटा पहने हुए हैं। ये इस्लाम या मुसलिमों का प्रतिनिधित्व नहीं करते।’’
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