एथेंस:
गंभीर ऋण संकट में फंसे ग्रीस के मतदाताओं ने जनमत संग्रह में यूरोपीय देशों द्वारा लगाई जा रही बेलआउट की शर्तों को मानने से इनकार कर दिया है। ग्रीस के करीब 61 लोगों ने 'ना' पर मुहर लगा दी। इस फैसले के बाद ग्रीस यूरोजोन से बाहर भी हो सकता है।
ग्रीस पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के कर्ज की किस्त चुकाने में नाकाम हो गया था। इसके बाद ग्रीस की मुश्किलें बढ़ गई थीं। यूरोपियन यूनियन ने ग्रीस को नया आर्थिक पैकेज देने के लिए कई शर्तें रखीं, जिस पर जनता के रुख को जानने के लिए यह जनमत संग्रह कराया गया।
जनमत संग्रह में लोगों से पूछा गया था कि क्या देश को ऋणदाता देशों की बेलआउट की शर्तें माननी चाहिए या नहीं। इन शर्तों में सरकार की ओर से लोगों पर किए जाने वाले खर्च में कटौती भी शामिल है।
इससे पहले आर्थिक संकट में फंसे ग्रीस के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिपरस ने इस जनमत संग्रह को यूरो मुद्रा क्षेत्र में ग्रीस के 'भाग्य' का फैसला करने वाला करार दिया था।
ग्रीस के वित्तीय ढ़ांचे के लड़खड़ाकर ध्वस्त होने का खतरा लगातार बना हुआ है और सरकार ने इस जनमत संग्रह के जरिए लोगों से पूछा कि विदेशी ऋण के लिए ऋणदाताओं की शर्तों पर 'हां' कहा जाए या 'नहीं'।
इससे पहले ग्रीस के प्रधानमंत्री सिपरस ने राजधानी एथेंस में जनमत संग्रह में अपना वोट डालने के बाद कहा, 'कोई लोगों की जीने, संकल्प के साथ जीने और अपना भाग्य खुद तय करने की इच्छा की अनदेखी नहीं कर सकता।'
मतदान खत्म होने के बाद रक्षा मंत्री पनोस कामेनोस ने एक ट्वीट में कहा कि ग्रीस ने साबित किया है उसे ब्लैकमेल कर, धमकियां देकर झुकाया नहीं जा सकता।
एथेंस में देवी एथेना के मंदिर की पहाड़ी की तलहटी से लेकर एजियन सागर में दूरदराज तक फैले ग्रीस के द्वीपों की 1.1 करोड की आबादी रविवार सुबह से ही मतदान केंद्रों पर इस जनमत संग्रह में भाग लेने के लिए पहुंची।
यह जनमत संग्रह कड़े पूंजी नियंत्रण के बीच कराया गया। इस नियंत्रण के तहत बैंक पिछले करीब एक हफ्ते से बंद हैं और लोगों को एटीएम से एक दिन में 60 यूरो से ज्यादा निकालने की इजाजत भी नहीं है। यूरोपीय संघ व अंतरराष्ट्रीय निवेशकों की कड़ी नजरें इस जनमत संग्रह पर थीं। इसे यूरोप की एकल मुद्रा के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है, जो 1999 में अस्तित्व में आई और जिसे दो साल बाद ग्रीस ने अपनाया।
ग्रीस पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के कर्ज की किस्त चुकाने में नाकाम हो गया था। इसके बाद ग्रीस की मुश्किलें बढ़ गई थीं। यूरोपियन यूनियन ने ग्रीस को नया आर्थिक पैकेज देने के लिए कई शर्तें रखीं, जिस पर जनता के रुख को जानने के लिए यह जनमत संग्रह कराया गया।
जनमत संग्रह में लोगों से पूछा गया था कि क्या देश को ऋणदाता देशों की बेलआउट की शर्तें माननी चाहिए या नहीं। इन शर्तों में सरकार की ओर से लोगों पर किए जाने वाले खर्च में कटौती भी शामिल है।
इससे पहले आर्थिक संकट में फंसे ग्रीस के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिपरस ने इस जनमत संग्रह को यूरो मुद्रा क्षेत्र में ग्रीस के 'भाग्य' का फैसला करने वाला करार दिया था।
ग्रीस के वित्तीय ढ़ांचे के लड़खड़ाकर ध्वस्त होने का खतरा लगातार बना हुआ है और सरकार ने इस जनमत संग्रह के जरिए लोगों से पूछा कि विदेशी ऋण के लिए ऋणदाताओं की शर्तों पर 'हां' कहा जाए या 'नहीं'।
इससे पहले ग्रीस के प्रधानमंत्री सिपरस ने राजधानी एथेंस में जनमत संग्रह में अपना वोट डालने के बाद कहा, 'कोई लोगों की जीने, संकल्प के साथ जीने और अपना भाग्य खुद तय करने की इच्छा की अनदेखी नहीं कर सकता।'
मतदान खत्म होने के बाद रक्षा मंत्री पनोस कामेनोस ने एक ट्वीट में कहा कि ग्रीस ने साबित किया है उसे ब्लैकमेल कर, धमकियां देकर झुकाया नहीं जा सकता।
एथेंस में देवी एथेना के मंदिर की पहाड़ी की तलहटी से लेकर एजियन सागर में दूरदराज तक फैले ग्रीस के द्वीपों की 1.1 करोड की आबादी रविवार सुबह से ही मतदान केंद्रों पर इस जनमत संग्रह में भाग लेने के लिए पहुंची।
यह जनमत संग्रह कड़े पूंजी नियंत्रण के बीच कराया गया। इस नियंत्रण के तहत बैंक पिछले करीब एक हफ्ते से बंद हैं और लोगों को एटीएम से एक दिन में 60 यूरो से ज्यादा निकालने की इजाजत भी नहीं है। यूरोपीय संघ व अंतरराष्ट्रीय निवेशकों की कड़ी नजरें इस जनमत संग्रह पर थीं। इसे यूरोप की एकल मुद्रा के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है, जो 1999 में अस्तित्व में आई और जिसे दो साल बाद ग्रीस ने अपनाया।
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