एथेंस:
अपने सबसे मुश्किल आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा ग्रीस क्या इससे उबर पाएगा? वह यूरोजोन से बाहर होगा या दुनिया की अर्थव्यवस्था किस तरफ जाएगी, इन सवालों का जवाब आज मिल जाएगा? आज ग्रीस में जनमत संग्रह के जरिए वहां की जनता सारी स्थिति साफ कर देगी। ग्रीस में मतदाता सुबह सात बजे से ऐतिहासिक जनमत संग्रह प्रक्रिया में हिस्सा ले रहे हैं। यह जनमत संग्रह अंतर्राष्ट्रीय कर्जदाताओं की शर्तो के संबंध में हो रहा है। इस मतदान से ही यह तय होगा कि क्या ग्रीस पर दिवालिया (डिफॉल्टर) होने का खतरा टलेगा या फिर यह यूरोक्षेत्र से बाहर होगा। जनमत संग्रह सुबह सात बजे से शुरू हो गया, जोकि वहां शाम 7 बजे तक चलेगा।
85 लाख लोग डालेंगे वोट
समाचार एजेंसी टीएएसएस के मुताबिक, ग्रीस के आंतरिक मामलों और प्रशासनिक सुधारों के मंत्रालय ने बताया कि इस जनमत संग्रह में ग्रीस के लगभग 85 लाख लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। यदि इस मतदान में कम से कम 40 प्रतिशत पंजीकृत मतदाता हिस्सा लेंगे तो इसे वैध समझा जाएगा। सभी मतदान केंद्र सुबह ही खुल गए। समाचार चैनलों पर प्रसारित तस्वीरों में देखा जा रहा है कि युवा और बुजुर्ग सभी उम्र के मतदाता जनमत संग्रह में हिस्सा ले रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के मुताबिक, ग्रीस कर्ज अस्थाई है। ग्रीस को कर्ज राहत के लिए सुधार कदमों को अपनाने की जरूरत है। इसके साथ ही 2018 तक 50 अरब यूरो यानी 5.5 अरब डॉलर के नए वित्तीय पैकेज की जरूत है।
पीएम सिप्रास ने की कर्जदाताओं की शर्तें न मानने की अपील
इससे पहले ग्रीस के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास ने नागरिकों से जनमत संग्रह में 'नहीं' के पक्ष में मतदान करने को कहा है। उनका कहना है कि इससे कर्जदाताओं के साथ कर्ज संबंधी वार्ता में सरकार को मजबूती मिलेगी। उन्होंने गुरुवार को एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्हें विश्वास है कि रविवार के जनमत संग्रह के बाद 48 घंटों के भीतर इस संकट का अंत हो जाएगा। हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि ऐसे नतीजे ग्रीस को यूरोक्षेत्र से बाहर कर सकते हैं।
'यस' और 'नो' करेगा भविष्य का फैसला
बता दें कि अगर ग्रीस में बहुमत 'यस' पर वोटिंग करता है तो यूरोपीय यूनियन ग्रीस को बेलआउट पैकेज दे सकता है, जिसके बाद देश पर गहराया संकट फिलहाल टल जाएगा। हालांकि 'नो' को बहुमत मिलने पर उसके लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। ऐसे में ग्रीस यूरोजोन से बाहर तो हो ही जाएगा, साथ ही उसे और अधिक बर्बादी के कगार पर भी ला खड़ा कर देगा। हालांकि तमाम ओपिनियन पोल भी यही संकेत दे रहे हैं कि ग्रीस के लोग खुद को यूरो जोन से बाहर नहीं होने देना चाहते, क्योंकि शर्तें मानने से इंकार करने पर उनके लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
क्या होंगे 'नो' कहने के नुकसान?
अगर जनमत में 'नो' को बहुमत मिलता है तो ग्रीस को यूरो जोन से बाहर होना पड़ेगा। इससे यूरोप को भी करीब एक हजार अरब यूरो का नुकसान उठाना होगा।
अगर 'यस' कहां तो होंगे क्या फायदे?
अगर जनता 'यस' को बहुमत देती है, तो ग्रीस का आर्थिक संकट टल जाएगा। हालांकि देश में राजनीतिक संकट गहरा जाएगा, क्योंकि वहां के प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ सकता है। या फिर राष्ट्रपति उन्हें बर्खास्त कर मध्यावधि चुनावों का ऐलान भी कर सकते हैं।
ग्रीस ने कर्जदाता देशों पर लगाया गंभीर आरोप
ग्रीस के वित्त मंत्री यानिस वरोफकीस ने भी कर्जदाता देशों पर उनके देश के साथ 'आतंकवादी जैसा व्यवहार' करने का आरोप लगाया। शनिवार को प्रकाशित एक इंटरव्यू में उन्होंने यह आरोप लगाया। वरोफकीस ने स्पेन के अखबार अल मुंडो को बताया, ‘वे लोग ग्रीस के साथ जो कर रहे हैं, उसका नाम ‘आतंकवाद’ है। ब्रसेल्स एवं ट्रोइका आज जो चाहते हैं वह है जीतने के लिए मतदान, ताकि वे ग्रीस को जलील कर सकें।’
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, यूरोपीय केंद्रीय बैंक एवं यूरोपीय संघ के संदर्भ में कहा, ‘क्योंकि उन्होंने हमारे बैंकों को बंद कराने पर ध्यान केंद्रित कर रखा है। यह लोगों में भय पैदा करने के लिए है और भय फैलाने को आतंकवाद कहा जाता है।’
85 लाख लोग डालेंगे वोट
समाचार एजेंसी टीएएसएस के मुताबिक, ग्रीस के आंतरिक मामलों और प्रशासनिक सुधारों के मंत्रालय ने बताया कि इस जनमत संग्रह में ग्रीस के लगभग 85 लाख लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। यदि इस मतदान में कम से कम 40 प्रतिशत पंजीकृत मतदाता हिस्सा लेंगे तो इसे वैध समझा जाएगा। सभी मतदान केंद्र सुबह ही खुल गए। समाचार चैनलों पर प्रसारित तस्वीरों में देखा जा रहा है कि युवा और बुजुर्ग सभी उम्र के मतदाता जनमत संग्रह में हिस्सा ले रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के मुताबिक, ग्रीस कर्ज अस्थाई है। ग्रीस को कर्ज राहत के लिए सुधार कदमों को अपनाने की जरूरत है। इसके साथ ही 2018 तक 50 अरब यूरो यानी 5.5 अरब डॉलर के नए वित्तीय पैकेज की जरूत है।
पीएम सिप्रास ने की कर्जदाताओं की शर्तें न मानने की अपील
इससे पहले ग्रीस के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास ने नागरिकों से जनमत संग्रह में 'नहीं' के पक्ष में मतदान करने को कहा है। उनका कहना है कि इससे कर्जदाताओं के साथ कर्ज संबंधी वार्ता में सरकार को मजबूती मिलेगी। उन्होंने गुरुवार को एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्हें विश्वास है कि रविवार के जनमत संग्रह के बाद 48 घंटों के भीतर इस संकट का अंत हो जाएगा। हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि ऐसे नतीजे ग्रीस को यूरोक्षेत्र से बाहर कर सकते हैं।
'यस' और 'नो' करेगा भविष्य का फैसला
बता दें कि अगर ग्रीस में बहुमत 'यस' पर वोटिंग करता है तो यूरोपीय यूनियन ग्रीस को बेलआउट पैकेज दे सकता है, जिसके बाद देश पर गहराया संकट फिलहाल टल जाएगा। हालांकि 'नो' को बहुमत मिलने पर उसके लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। ऐसे में ग्रीस यूरोजोन से बाहर तो हो ही जाएगा, साथ ही उसे और अधिक बर्बादी के कगार पर भी ला खड़ा कर देगा। हालांकि तमाम ओपिनियन पोल भी यही संकेत दे रहे हैं कि ग्रीस के लोग खुद को यूरो जोन से बाहर नहीं होने देना चाहते, क्योंकि शर्तें मानने से इंकार करने पर उनके लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
क्या होंगे 'नो' कहने के नुकसान?
अगर जनमत में 'नो' को बहुमत मिलता है तो ग्रीस को यूरो जोन से बाहर होना पड़ेगा। इससे यूरोप को भी करीब एक हजार अरब यूरो का नुकसान उठाना होगा।
अगर 'यस' कहां तो होंगे क्या फायदे?
अगर जनता 'यस' को बहुमत देती है, तो ग्रीस का आर्थिक संकट टल जाएगा। हालांकि देश में राजनीतिक संकट गहरा जाएगा, क्योंकि वहां के प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ सकता है। या फिर राष्ट्रपति उन्हें बर्खास्त कर मध्यावधि चुनावों का ऐलान भी कर सकते हैं।
ग्रीस ने कर्जदाता देशों पर लगाया गंभीर आरोप
ग्रीस के वित्त मंत्री यानिस वरोफकीस ने भी कर्जदाता देशों पर उनके देश के साथ 'आतंकवादी जैसा व्यवहार' करने का आरोप लगाया। शनिवार को प्रकाशित एक इंटरव्यू में उन्होंने यह आरोप लगाया। वरोफकीस ने स्पेन के अखबार अल मुंडो को बताया, ‘वे लोग ग्रीस के साथ जो कर रहे हैं, उसका नाम ‘आतंकवाद’ है। ब्रसेल्स एवं ट्रोइका आज जो चाहते हैं वह है जीतने के लिए मतदान, ताकि वे ग्रीस को जलील कर सकें।’
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, यूरोपीय केंद्रीय बैंक एवं यूरोपीय संघ के संदर्भ में कहा, ‘क्योंकि उन्होंने हमारे बैंकों को बंद कराने पर ध्यान केंद्रित कर रखा है। यह लोगों में भय पैदा करने के लिए है और भय फैलाने को आतंकवाद कहा जाता है।’
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