हिटलर की तानाशाही और अत्याचारों का हथियार था ‘गेस्टापो’
कोलोन:
कोलोन जर्मनी के प्रमुख और ऐतिहासिक शहरों में एक है. अपनी अल्हड़मिजाजी और मौजमस्ती के लिए मशहूर लेकिन 1945 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ये शहर पूरी तरह बर्बाद हो गया. दूसरा विश्वयुद्ध यूरोप को लाखों लोगों की कब्रगाह बना गया और हमेशा के लिए दर्दनाक यादें दे गया. कोलोन में नेशनल सोश्लिस्ट डॉक्यूमेंटेशन सेंटर जिसे एनएस डॉक सेंटर के नाम से जाना जाता है, वह नाजी काल में मारे गए और सताए गए लोगों की ढेरों स्मृतियों का गवाह है. साधारण सी दिखने वाली इस इमारत जिसे एलडी हाउस भी कहा जाता है- 1930 और 40 के दशक में जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर की सीक्रेट पुलिस का दफ्तर हुआ करती थी. जहां राजनीतिक बंदियों को कैद कर इन्हीं कोठरियों में यातनाएं दी जातीं और यहीं उनमें से ज्यादातर को कत्ल कर दिया गया. इस सीक्रेट पुलिस को गेस्टापो के नाम से भी जाना जाता. ये हिटलर का खास हथियार थी, जो उस वक्त सत्ता का केंद्र बन गई.
इतिहासकार डॉ. दिलीप सीमियन बताते हैं, 'हिटलर की जो सीक्रेट पुलिस थी उसका नाम था गेस्टापो. इसका पूरा नाम गेहाइमे स्टाट्स पुलिट्साए था. असल में ये राजनीतिक पुलिस फोर्स थी. याद कीजिये... उसके साथ एक और संस्था एसएस जिसने यहूदी नरसंहार करने में अहम भूमिका निभाई. सीक्रेट पुलिस गेस्टापो की स्थापना 1933 में हुई. गेस्टापो का फोकस था कि जितने भी राजनीतिक विरोधी हैं या राजनीतिक रूप से जो खतरनाक लोग थे उनको ठिकाने लगाना.' गेस्टापो की कैद में लोगों के पास तड़पने और आखिर में मरने के सिवा कोई चारा नहीं था, लेकिन जिन लोगों को यहां कैद किया गया वो आने वाली पीढ़ियों के लिये रूह कंपा देनी वाली यादें छोड़ गए हैं. सेंटर के एक अधिकारी यूर्गेन म्यूलर बताते हैं कि मेमोरियल में कुल 10 कोठरियां हैं जहां हजारों महिला-पुरुष नाजी काल में कैद किए गए. इन दीवारों पर उन्होंने अपने सपनों को लिखा. अपनों के लिए संदेश लिख छोड़े और डर तथा चिंताएं भी बयान की. इन कोठरियों की दीवारों पर लिखी उनकी भावनाएं हिटलर की क्रूरता और एक ऐसे अंधी सोच का चेहरा दिखाती हैं, जिसमें राष्ट्रवाद के नाम पर नस्लवाद और अत्याचार की सारी हदें पार हो गईं.
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सीक्रेट पुलिस का ये दफ्तर आज एक म्यूजियम की शक्ल में है. जर्मनी इतिहास के उस हिस्से को छुपाना नहीं चाहता, बल्कि यहां आने वाली पीढ़ियों को उस दौर की नाजी क्रूरता के बारे में बताता जाता है. इस सेंटर में अलग-अलग भाषाओं में लिखे इन संदेशों के अनुवाद अंग्रेजी और जर्मन में कर दिए गए हैं. लिखने वालों के बारे में बहुत कम ही पता है लेकिन जो लिखा उसने बहुत कुछ बता दिया है. 15 साल के एक लड़के को इसलिए कैद किया गया, क्योंकि उसके पास कम्युनिस्ट साहित्य होने का शक था. वह हिटलर की पुलिस के आगे नहीं टूटा और उसने मरने से पहले मां-बच्चे के रिश्ते की जो कहानी इन दीवारों पर लिख दी, वह एक अद्भुद स्मारिका बन गई है. इस लड़के की मां हर शाम अपने बेटे के लिए ब्रेड लेकर आती ताकि वह भूखा न रहे और उसने दीवार पर लिखा अगर कोई आपके बारे में नहीं सोचता तो इतना तय है कि आपकी मां आपके बारे में सोचेगी.
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30 के दशक में बनी सीक्रेट पुलिस यानी गेस्टापो तो सत्ता का केंद्र बन गई. इन कोठरियों में वो इतने लोगों को भरते कि उनका दम घुटने लगता. कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट, डेमोक्रेट और कई बंधुआ मजदूर जो खासतौर से रूस, पोलैंड और से लाए गए, जिन्हें कॉलोन या जर्मनी के दूसरे हिस्सों में रखा गया. इन लोगों ने दीवारों पर कभी लंबी तो कभी छोटी कहानियां लिखीं.
फ्रांस की मैरीनेट इसी दौर में यहां कैद की गईं, जिन्होंने दीवारों पर अपने माता-पिता समेत कई परिवार जनों को पत्र लिखे. मैरीनेट उस वक्त गर्भवती थीं. उनकी बच्ची का जन्म यहीं इस कोठरी में हुआ. नन उसकी बेटी को अपने साथ ले गईं. बाद में अमेरिकियों ने जब मैरीनेट को आजाद करवाया तो वह अपने बेटी के साथ फ्रांस लौट गईं, लेकिन मैरीनेट ने अपनी बेटी को कभी अपनी यातनाओं के बारे में नहीं बताया.
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यूर्गेन म्यूलर बताते हैं, '1990 में फ्रांस की एक मीडिया टीम यहां आई और उन्होंने इस सेंटर पर एक बड़ी रिपोर्ट तैयार की और जब वह रिपोर्ट जब अखबार में छपी तो मैरीनेट की बेटी क्रिस्टियान ने उसे अखबार में पढ़ा और उसने खुद से कहा, 'अरे ये तो मेरी कहानी है. यह तो मेरी ही मां होनी चाहिए...' वह केवल एक बार ही अपनी मां से इस बारे में बात कर पाई थी जब उसने पूछा था कि वह कॉलोन में क्यों पैदा हुई. डॉक्टरों ने बेटी से कहा कि वह अपनी मां से अब इस बारे में बात न करे, क्योंकि इससे उनकी जान जा सकती है. हिटलर के दौर में जो लाखों लोग मारे गए उनमें यहूदी भी थे, लेकिन दूसरे समुदाय जैसे पोलैंड, फ्रांस, यूक्रेन और रोमानिया के नागरिकों की दास्तान भी कम दर्दनाक नहीं है.
VIDEO: हिटलर की क्रूरता का गवाह जर्मनी का एनएस डॉक्युमेंटेशन सेंटर
डॉ सिमियन बताते हैं, '1940 में तो 250 रोमानी बच्चों को चेकोस्लोवाकिया से उठाकर एक जहरीली गैस जाइक्लोन-बी के प्रयोग में मार डाला गया. यह उस गैस के प्रयोग और उसके असर का पता करने के लिए था जिस गैस से बाद में लाखों यहूदियों को मारा गया. उस गैस का टेस्ट रोमानी बच्चों पर किया गया, नाम के कैंप में. यह क्रूरता की बात नहीं है, ये तो क्रूरता की हद से बाहर की बात है.'
इतिहासकार डॉ. दिलीप सीमियन बताते हैं, 'हिटलर की जो सीक्रेट पुलिस थी उसका नाम था गेस्टापो. इसका पूरा नाम गेहाइमे स्टाट्स पुलिट्साए था. असल में ये राजनीतिक पुलिस फोर्स थी. याद कीजिये... उसके साथ एक और संस्था एसएस जिसने यहूदी नरसंहार करने में अहम भूमिका निभाई. सीक्रेट पुलिस गेस्टापो की स्थापना 1933 में हुई. गेस्टापो का फोकस था कि जितने भी राजनीतिक विरोधी हैं या राजनीतिक रूप से जो खतरनाक लोग थे उनको ठिकाने लगाना.' गेस्टापो की कैद में लोगों के पास तड़पने और आखिर में मरने के सिवा कोई चारा नहीं था, लेकिन जिन लोगों को यहां कैद किया गया वो आने वाली पीढ़ियों के लिये रूह कंपा देनी वाली यादें छोड़ गए हैं. सेंटर के एक अधिकारी यूर्गेन म्यूलर बताते हैं कि मेमोरियल में कुल 10 कोठरियां हैं जहां हजारों महिला-पुरुष नाजी काल में कैद किए गए. इन दीवारों पर उन्होंने अपने सपनों को लिखा. अपनों के लिए संदेश लिख छोड़े और डर तथा चिंताएं भी बयान की. इन कोठरियों की दीवारों पर लिखी उनकी भावनाएं हिटलर की क्रूरता और एक ऐसे अंधी सोच का चेहरा दिखाती हैं, जिसमें राष्ट्रवाद के नाम पर नस्लवाद और अत्याचार की सारी हदें पार हो गईं.
हिटलर की तानाशाही और अत्याचारों का हथियार था ‘गेस्टापो’
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सीक्रेट पुलिस का ये दफ्तर आज एक म्यूजियम की शक्ल में है. जर्मनी इतिहास के उस हिस्से को छुपाना नहीं चाहता, बल्कि यहां आने वाली पीढ़ियों को उस दौर की नाजी क्रूरता के बारे में बताता जाता है. इस सेंटर में अलग-अलग भाषाओं में लिखे इन संदेशों के अनुवाद अंग्रेजी और जर्मन में कर दिए गए हैं. लिखने वालों के बारे में बहुत कम ही पता है लेकिन जो लिखा उसने बहुत कुछ बता दिया है. 15 साल के एक लड़के को इसलिए कैद किया गया, क्योंकि उसके पास कम्युनिस्ट साहित्य होने का शक था. वह हिटलर की पुलिस के आगे नहीं टूटा और उसने मरने से पहले मां-बच्चे के रिश्ते की जो कहानी इन दीवारों पर लिख दी, वह एक अद्भुद स्मारिका बन गई है. इस लड़के की मां हर शाम अपने बेटे के लिए ब्रेड लेकर आती ताकि वह भूखा न रहे और उसने दीवार पर लिखा अगर कोई आपके बारे में नहीं सोचता तो इतना तय है कि आपकी मां आपके बारे में सोचेगी.
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30 के दशक में बनी सीक्रेट पुलिस यानी गेस्टापो तो सत्ता का केंद्र बन गई. इन कोठरियों में वो इतने लोगों को भरते कि उनका दम घुटने लगता. कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट, डेमोक्रेट और कई बंधुआ मजदूर जो खासतौर से रूस, पोलैंड और से लाए गए, जिन्हें कॉलोन या जर्मनी के दूसरे हिस्सों में रखा गया. इन लोगों ने दीवारों पर कभी लंबी तो कभी छोटी कहानियां लिखीं.
फ्रांस की मैरीनेट इसी दौर में यहां कैद की गईं, जिन्होंने दीवारों पर अपने माता-पिता समेत कई परिवार जनों को पत्र लिखे. मैरीनेट उस वक्त गर्भवती थीं. उनकी बच्ची का जन्म यहीं इस कोठरी में हुआ. नन उसकी बेटी को अपने साथ ले गईं. बाद में अमेरिकियों ने जब मैरीनेट को आजाद करवाया तो वह अपने बेटी के साथ फ्रांस लौट गईं, लेकिन मैरीनेट ने अपनी बेटी को कभी अपनी यातनाओं के बारे में नहीं बताया.
कैदियों द्वारा लिखी गई चिट्ठी
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यूर्गेन म्यूलर बताते हैं, '1990 में फ्रांस की एक मीडिया टीम यहां आई और उन्होंने इस सेंटर पर एक बड़ी रिपोर्ट तैयार की और जब वह रिपोर्ट जब अखबार में छपी तो मैरीनेट की बेटी क्रिस्टियान ने उसे अखबार में पढ़ा और उसने खुद से कहा, 'अरे ये तो मेरी कहानी है. यह तो मेरी ही मां होनी चाहिए...' वह केवल एक बार ही अपनी मां से इस बारे में बात कर पाई थी जब उसने पूछा था कि वह कॉलोन में क्यों पैदा हुई. डॉक्टरों ने बेटी से कहा कि वह अपनी मां से अब इस बारे में बात न करे, क्योंकि इससे उनकी जान जा सकती है. हिटलर के दौर में जो लाखों लोग मारे गए उनमें यहूदी भी थे, लेकिन दूसरे समुदाय जैसे पोलैंड, फ्रांस, यूक्रेन और रोमानिया के नागरिकों की दास्तान भी कम दर्दनाक नहीं है.
VIDEO: हिटलर की क्रूरता का गवाह जर्मनी का एनएस डॉक्युमेंटेशन सेंटर
डॉ सिमियन बताते हैं, '1940 में तो 250 रोमानी बच्चों को चेकोस्लोवाकिया से उठाकर एक जहरीली गैस जाइक्लोन-बी के प्रयोग में मार डाला गया. यह उस गैस के प्रयोग और उसके असर का पता करने के लिए था जिस गैस से बाद में लाखों यहूदियों को मारा गया. उस गैस का टेस्ट रोमानी बच्चों पर किया गया, नाम के कैंप में. यह क्रूरता की बात नहीं है, ये तो क्रूरता की हद से बाहर की बात है.'
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