Exclusive:"हम यहां पैदा ही क्‍यों हुए...?" इज़रायल के हवाई हमलों के बीच ग़ाज़ा के लोगों की दर्दनाक दास्‍तां

"हमारे पास पहले दो दिनों के लिए पर्याप्त भोजन, पानी और बिजली थी, लेकिन हमारी सबसे बड़ी चुनौती हमारे पीड़ित बच्चों से निपटना था. वे लगातार रो रहे थे, खाने से इनकार कर रहे थे और हमसे बेहद मुश्किल सवाल पूछ रहे थे... हम यहां क्यों पैदा हुए..? इजरायली सेना हमें क्यों मारना चाहती है...?"

नई दिल्‍ली:

इज़रायल (Israel Hamas War) के हवाई हमलों से गाज़ा पट्टी बर्बाद हो गई है. गाज़ा शहर में जहां रिमल बसा है, उसे प्राचीन काल में माउमा के नाम से जाना जाता था. हजारों वर्षों तक फलने-फूलने के बाद रिमल गुरुवार को चार दिनों के लगातार इज़रायली हवाई हमलों के बाद मलबे में तब्दील हो गया. यहां अब मलबे के ढेर में जिंदगी की तलाश की जा रही है. 37 वर्षीय और गाजा के द अमेरिकन इंटरनेशनल स्कूल में गणित की शिक्षिका सुजान बरज़ाक का जन्म शहर में ही हुआ था. वह दक्षिणी रिमल में मुस्तफा हाफेथ स्ट्रीट को अपना घर कहती थीं. वह और उसका परिवार गाजा के इस्लामिक विश्वविद्यालय के बगल में एक अपार्टमेंट इमारत में रहता था.  बरज़ाक ने NDTV से एक खास बातचीत में कहा कि अब उनका घर और शहर बर्बाद हो चुका है...

चार परिवार, सभी संबंधित, इमारत की अलग-अलग मंजिलों में रहते थे. लेकिन जब हमास समूह ने शनिवार को इज़रायली सड़कों पर अपना आतंक फैलाया और उसके बाद इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने जवाबी कार्रवाई का वादा किया गया, तो इमारत के अन्य निवासियों ने सुरक्षा के लिए पहली मंजिल पर एक साथ रहने का फैसला किया.

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बरज़ाक ने NDTV को बताया, "हमारे पास पहले दो दिनों के लिए पर्याप्त भोजन, पानी और बिजली थी, लेकिन हमारी सबसे बड़ी चुनौती हमारे पीड़ित बच्चों से निपटना था. वे लगातार रो रहे थे, खाने से इनकार कर रहे थे और हमसे बेहद मुश्किल सवाल पूछ रहे थे... हम यहां क्यों पैदा हुए..? हम विदेश में क्यों नहीं रह सकते...? इजरायली सेना हमें क्यों मारना चाहती है...? क्या हम आज रात मरने वाले हैं...? अगर मैं मलबे के नीचे फंस गया हूं, तो क्या मुझे करना चाहिए..? क्या मेरे मरने से पहले कोई मुझे ढूंढेगा..? अगर आपको और पापा को कुछ हो गया, तो मैं कहां रहूंगा...?"

जब गाज़ा पर इज़रायल की बमबारी हुई शुरू...

बरज़ाक बताती हैं, रविवार सुबह हवाई हमले में इमारत के ठीक पीछे एक चैरिटी संगठन को निशाना बनाया गया. इमारत आंशिक रूप से नष्ट हो गई थी, लेकिन बरज़ाक और अन्य लोग जानते थे कि अब वहां से निकलने का समय हो गया है. बरज़ाक बताती हैं, "उस दोपहर, हमें इज़रायली सेना से तीन फोन कॉल आए, जिसमें हमें तुरंत अपनी इमारत खाली करने और इस्लामिक विश्वविद्यालय से उत्तर या दक्षिण में कम से कम एक किलोमीटर दूर किसी स्थान पर जाने का आदेश दिया गया. हमने अपना बैग पैक किया और बाकी सब कुछ पीछे छोड़ दिया. हम रिश्तेदारों के साथ अपने चाचा के घर चले गए, जो हमसे एक ब्लॉक दूर गाजा सिटी सेंटर में रहते थे."

अपने चाचा के घर जाते समय बरज़ाक, उनके पति हाज़ेम, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (आईसीएचआर) के एक वकील, 12 वर्षीय बेटे करीम और उनके रिश्तेदारों ने तबाही के असली मंजर को अपनी आंखों से देखा. लोगों इधर-उधर भाग रहे थे, बमों के फटने और ऊपर से उड़ने वाले इज़रायली जेट विमानों की आवाज़ के साथ, ऐसी कोई जगह नहीं थी, जो सुरक्षित महसूस हो. बरज़ाक अपने चाचा के घर पहुंचीं, लेकिन अगली सुबह वहां भी हवाई हमले शुरू हो गए. बम फटने और इमारतों के ढहने की आवाज़ सुनकर परिवार एक कमरे में एक साथ इकट्ठा हो गए, जो 12 घंटे का लंबा बुरा सपना था.

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उन्‍होंने बताया, "मेरे परिवार के दो सदस्य कुछ खाने का सामान और हमारे घरों की जांच करने के लिए बाहर गए थे. जब वे लौटे, तो वे कुछ देर के लिए चुप बैठे रहे. वे हमें यह नहीं बताना चाहते थे कि उन्होंने क्या देखा था...? लेकिन आखिरकार, उन्होंने हमें बताया... बरज़ाक ने कहा, "शहर पूरी तरह से तबाह हो गया था. हम फूट-फूट कर रोने लगे. हमने गाजा शहर में विनाश के बारे में कहानियाँ सुनी थीं, लेकिन हम असलियत के लिए तैयार नहीं थे. हमारे पड़ोसियों, रिश्तेदारों और दोस्तों के घर, स्टोर, व्यवसाय और पूरे ब्लॉक पूरी तरह से बर्बाद हो गए थे. हमारी इमारत भी आंशिक रूप से नष्ट हो गई थी."

इमारतों के ढहने के साथ हम सब भी टूट गए हैं...

बरज़ाक ने बताया, "हर किसी के पास रोने का एक कारण था. मेरे बेटे ने अपने पालतू जानवरों को खो दिया, मेरी भतीजियों ने अपने दोस्तों को खो दिया, मेरे भतीजे ने अपने छह दोस्तों को खो दिया, मेरे चचेरे भाई और दोस्त बेघर हो गए, और अपने परिवारों को खो दिया. हम सभी टूट गए हैं." एक समय समृद्ध रहा गाजा शहर, अब खंडहर में तब्‍दील हो गया है. जहां कभी स्‍कूल, अस्‍पताल, मार्केट और सरकारी संस्थान थे, वहां अब सिर्फ मलबे के ढेर हैं.

हमास के हमले में 1,200 इज़रायली मारे जाने के बाद इज़रायल ने हमास को ख़त्म करने की कसम खाई है. हमास के हमले के छह दिन बाद भी वह घनी आबादी वाले गाजा पट्टी पर हवाई हमले कर रहे हैं, और जमीनी आक्रमण की संभावना की तैयारी जताई जा रही है.  इजरायली रक्षा बल (IDF) और इजरायली वायु सेना (IAF) की संयुक्त शक्ति को बढ़ाने के लिए, 3 लाख रिजर्व सैनिक भी प्रधानमंत्री नेतन्याहू की 362 वर्ग किलोमीटर भूमि के टुकड़े को नष्ट करने के अभियान में शामिल हो गए हैं, जिसे गज़ान अपना घर कहते हैं.

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"नकबा"

गाजा पट्टी में बिजली नहीं है, क्योंकि उसके एकमात्र बिजली संयंत्र का ईंधन खत्म हो गया है और उसे बंद करना पड़ा है. बरज़ाक ने बताया, "हमारे पास न बिजली है और न ही पानी. हम सेल्युलर डेटा का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन यह बमुश्किल हमें व्हाट्सएप का उपयोग करने की अनुमति देने के लिए पर्याप्त है. हम अभी तक पास के एक मिनी-बाजार से किराने का सामान प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन बस इतना ही. किसी भी एनजीओ या संयुक्त राष्ट्र ने हमसे संपर्क नहीं किया है, और आपातकाल के समय कॉल करने के लिए कोई स्थानीय सेवा नंबर नहीं है. यह बस एक भूतिया शहर है."

फ़िलिस्तीनियों और अरब जगत के पास आपदा के लिए "नकबा" नामक एक शब्द है, जिसका उपयोग वे 1948 के पलायन को संदर्भित करने के लिए करते हैं, जिसने 700,000 फ़िलिस्तीनियों को उनके घरों से उखाड़ दिया था, जो अब तक के सबसे बड़े शरणार्थी संकटों में से एक था. इज़रायली बमबारी इतनी लगातार और इतनी विनाशकारी रही है कि गाज़ावासियों को डर है कि दूसरा "नकबा" पहले ही उन पर आ चुका है.

बरज़ाक ने एनडीटीवी से कहा, "मैं एक मां हूं और दुनिया से हमारी मदद करने की भीख मांगने के लिए यह कहानी सुना रही हूं. मेरे बच्चे निर्दोष हैं और वे शांति से रहने के हकदार हैं. कृपया हमारी मदद करें."

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि इज़रायली हवाई हमलों के कारण 4,23,000 से अधिक गाजावासियों ने अपने घरों को छोड़ दिया है. मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के अनुसार, गुरुवार देर रात तक गाजा में विस्थापित लोगों की संख्या 84,444 बढ़ गई, जो कुल 423,378 तक पहुंच गई है. 

गाज़ा में अपने घरों से भागने को मजबूर हुए 2,70,000 से अधिक लोग अब यूएनआरडब्ल्यूए स्कूलों में रहने को मजबूर हैं. ये विस्थापित लोगों की कुल संख्या का दो-तिहाई हैं. गाजा में हिंसा से विस्थापित अन्य 27,000 लोगों ने फिलिस्तीनी प्राधिकरण के स्कूलों में शरण ली, जबकि 1,53,000 से अधिक लोगों को रिश्तेदारों, पड़ोसियों और अन्य सार्वजनिक भवनों में शरण मिली है. और इज़रायल की चेतावनी के बाद इस संख्‍या के बढ़ने की पूरी आशंका जताई जा रही है.

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