अमेरिका में कोरोना महामारी ने जिस तरह पांव पसारा है वो भयावह है और इसके कई तरह के असर देखे जा रहे हैं. सबसे पहले बात करते हैं अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रंप की. ये पहले तो महामारी की गंभीरता को नकारते रहे और तब तक हालात खराब हो गए. अब जब अमेरिका में कोरोना संक्रमितों की संख्या आठ लाख से ज्यादा हो गई है, और मरने वालों की संख्या 45 हजार से पार तो राष्ट्रपति ट्रंप ने ऐलान किया है कि एक एग्ज़िक्यूटिव आदेश लाकर फिलहाल अमेरिका आने वालों पर रोक लगाएंगे.
उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जानकारी दी कि इमिग्रेशन पर रोक असल में ग्रीन कार्ड चाहने वालों के लिए होगी, यह 60 दिनों के लिए होगी और आगे इस आदेश का रिव्यू होगा. मतलब साफ कर दिया कि अस्थायी यानी एच1बी वीज़ा पर ये रोक नहीं है. इस कैटेगरी के वीजा़ बड़ी संख्या मे भारतीयों को मिलते हैं. कुल संख्या के 71 फीसद से भी ज्यादा. फिर इस रोक का मतलब क्या हुआ. इस फैसले को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं और अधिकतर इसी साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से जुड़े हैं.
विपक्षी डेमोक्रेट्स का आरोप है कि कोरोना से निपटने में देरी और जिस तरह से इसने अमेरिका को घुटनों पर ला दिया उससे ध्यान हटाने के लिए ये कदम है. और तो और कोरोना के खिलाफ लड़ाई में प्रवासी सामने की पंक्ति में हैं. ऐसे में इस तरह की रोक कितनी सही है..सवाल ये भी है कि अगर इस आदेश को अदालत में चुनौती दी जाती है तो क्या ये आदेश टिकेगा.
लेकिन ट्रंप का कहना है कि जब अर्थव्यवस्था एक बार फिर खुलेगी तो वो नहीं चाहते कि महामारी के कारण नौकरी खो चुके अमेरिकियों को बाहर से आए प्रवासियों से नौकरी के लिए जूझना पड़े. उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी अमेरिकी नागरिकों के लिए है.
इतिहास में पहली बार दो करोड़ से भी ज्यादा अमेरिकी नागरिकों ने बेरोज़गारी भत्ते के लिए आवेदन किया है. उधर पिछले तीन वर्षों में अमेरिका में रहने के लिए वीज़ा में 25 फ़ीसद की गिरावट आई है. हालांकि 2019 में H1B वीज़ा पाने वालों में 71.7 फ़ीसद भारतीय हैं.
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