
- इजरायल के हमले में कई ईरानी सैन्य कमांडर और परमाणु वैज्ञानिक मारे गए.
- अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने इजरायल का समर्थन किया है.
- ईरान का परमाणु कार्यक्रम इजरायल का मुख्य लक्ष्य बना हुआ है.
इजरायल के लड़ाकू विमानों ने गुरुवार को ईरान पर हमला कर दिया. इस हमले में ईरान के कई सैन्य कमांडर और परमाणु वैज्ञानिकों की मौत हो गई.इसके जवाब में ईरान ने इजरायल पर जवाबी हमला शुरू किया. ईरानी मिसाइलों ने इजरायल के प्रमुख शहर तेल अबीब समेत कई शहरों में कहर बरपाया. यह लड़ाई सोमवार को पांचवें दिन भी जारी है. इस बीच दुनिया के अधिकांश देशों ने ईरान पर इजरायल के हमले की निंदा की है. वहीं अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देश इजरायल के समर्थन में आगे आए हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि वो इस लड़ाई को रोकने की कोशिशें कर रहे हैं. इजरायल और ईरान की इस लड़ाई में दुनिया दो हिस्सों में बंट गई है.
ईरान का परमाणु कार्यक्रम और इजरायल
इजरायल ने ईरान पर हमला ऐसे समय किया, जब उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका के चल रही बातचीत के पांच चरण पूरे हो चुके थे. छठा चरण रविवार को शुरू होने वाला था. लेकिन हमले के बाद ईरान बातचीत से पीछे हट गया. इजरायल ईरान के परमाणु कार्यक्रम का विरोध कर रहा है. वह ईरान के परमाणु संपन्न होने को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है. इसलिए उसने ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों को चुन-चुनकर निशाना बनाया. ईरान पर इजारयली हमले से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सौदेबाजी बढ़ गई है. उन्होंने कहा है कि ईरान को बातचीत की टेबल पर आना चाहिए, खासकर तब जब उसके परमाणु वार्ताकार की इस हमले में मौत हो चुकी है. अमेरिकी राष्ट्रपति ईरान पर परमाणु समझौते को अपनाने के लिए दवाब डाल रहे हैं. लेकिन ईरान उनके प्रस्ताव को अपनाने से इनकार कर रहा है.
ईरान पश्चिमी देशों की ओर से लगाई गई व्यापारिक पाबंदियों से परेशान है. इन पाबंदियों से राहत पाने के लिए ही ईरान के उदारवादी माने जाने वाले राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान ने अमेरिका के साथ बातचीत एक बार फिर शुरू की थी. उनकी इस पहल को ईरान के कट्टरपंथी नेताओं ने भी स्वीकार कर लिया था. लेकिन जिस मोड़ पर आकर यह बातचीत टूटी है, इसके बाद से ईरान का कट्टरपंथी धड़ा एक बार फिर इजरायल और अमेरिका को लेकर कड़ा रुख अपना सकता है. इन हमलों से अमेरिका और इजरायल को लेकर इन कट्टरपंथी नेताओं के रुख को बल मिला है. ये नेता इन दोनों देशों को विश्वास के काबिल नहीं मानते हैं. ऐसे नेताओं का ईरान की संसद में बोलबाला है.

ईरान के मिसाइल हमलों से निपटता इजरायल का डिफेंस सिस्टम.
इजरायली हमले पर दुनिया की प्रतिक्रिया
ईरान पर इजरायल के हमलों के बाद अंतरराष्ट्रीय जगत में हुई प्रतिक्रिया दो तरह की थी. यूरोप और अमेरिका की ओर से दी गई प्रतिक्रिया में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर चिंता जताई गई थी. लेकिन इजरायल की ओर से की गई उकसावे की कार्रवाई को इसमें नजरंदाज किया गया था. वहीं बाकी की दुनिया की प्रतिक्रिया में ईरान के प्रति सहानुभूति दिखाई गई थी. खास बात यह रही कि अरब जगत ईरान के साथ खड़ा नजर आया. अरब जगत के अधिकांश देशों ने इजरायली हमलों की निंदा करते हुए ईरान के प्रति समर्थन जताया. इजरायली हमले को ईरान की संप्रभुता पर हमला बताया गया. इजरायल की आलोचना में ईरान का कट्टर प्रतिद्वंद्वी सऊदी अरब भी शामिल था. ईरान पर इजरायली हमले के दौरान एक नजर आ रहा अरब जगत कबतक एक रहेगा कहा नहीं जा सकता है. अमेरिका और इजरायल के कई अरब देशों में सैन्य अड्डे हैं.
इस लड़ाई में क्या अमेरिका शामिल होगा
ईरान ने अमेरिकी रक्षा प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने की धमकी तो दी है, लेकिन ऐसा अब तक किया नहीं है. ईरान के सहयोगी संगठनों, जिसे वह एक्सिस ऑफ रेजिसटेंस कहता रहा है, उन्होंने भी अमेरिकी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने से परहेज किया है. यमन में सक्रिय हूती के लड़ाके अमेरिका के साथ हुए अपने समझौते पर अभी भी कायम हैं. लेकिन वो इजरायल को निशाना बना रहे हैं. लेबनान में हिजबुल्लाह भी युद्धविराम पर कायम है. वहीं ईराक में हशद बगदाद में स्थित अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाने से परहेज कर रहा है. ऐसा कब तक रहेगा इसको लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता है. ईरान के एक सांसद ने शनिवार को कहा था कि होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने पर विचार किया जा रहा है. ईरान ने अब तक ऐसा किया तो नहीं है, लेकिन अगर कर दिया तो रोज होने वाली दो करोड़ बैरल कच्चे तेल की आवाजाही प्रभावित होगी. इसका परिणाम गंभीर होगा. यह कई देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा. यह ईरान के अरब देशों से रिश्तों को भी प्रभावित करेगा, क्योंकि इससे अरब देशों की अर्थव्यवस्था भी गड़बड़ाएगी.ईरान का यह कदम अमेरिका को इस लड़ाई में शामिल करने का ट्रिगर प्वाइंट साबित हो सकता है. लाल सागर में तेल टैंकरों पर हूती विद्रोहियों के हमले पर अमेरिका ने उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई कर चुका है.

ईरान के मिसाइल हमले में तबाह हुई एक इमारत में लोगों की तलाश करते राहत कर्मी.
ईरान में इजरायल का लक्ष्य क्या है
इजरायल एक साथ दो लक्ष्यों पर ध्यान लगाए हुए है. इनमें से एक है ईरान के परमाणु कार्यक्रमों को बंद करना और दूसरा है ईरान में सत्ता परिवर्तन. इसकी सार्वजनिक घोषणा इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कई बार की है. ये दोनों ही स्थितियां इजरायल के मुफीद हैं. परमाणु कार्यक्रम खत्म करने से ईरान कमजोर होगा. वहीं वहां सत्ता परिवर्तन गृहयुद्ध को भड़काएगा. पश्चिमी देश इससे पहले ईराक और लीबिया में ऐसा कर चुके हैं. इराक से सद्दाम हुसैन और लीबिया से मुअम्मर अल गद्दाफी की सत्ता जाने के बाद दोनों देशों लंबे समय तक गृह युद्ध से जूझते रहे हैं.
ये सभी स्थितियां इस बात पर निर्भर हैं कि ईरान-इजरायल के बीच जारी ताजा तनाव कब तक चलता है. ईरान और इजरायल कब तक लड़ते हैं और अमेरिका कब तक संयम बरतता है. लेकिन इस तनाव को खत्म करने की कोशिशें भी शुरू हो गई हैं. इसकी भनक तब लगी जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि इसे रुकवाने के लिए बैठकों और टेलीफोन पर वार्ताओं का दौर जारी है.उन्होंने कहा था कि ईरान और इजरायल को एक समझौता करना चाहिए, और वे यह करेंगे, ठीक उसी तरह जैसा कि मैंने भारत और पाकिस्तान के बीच कराया था.ईरान-इजरायल के बीच शांति कब तक आएगी इसका अनुमान लगाना अभी थोड़ा मुश्किल है.
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