भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े पर शुक्रवार को वीजा धोखाधड़ी और झूठे बयान देने के मामले में ग्रैंड ज्यूरी ने अभियोग लगा दिया। पूर्ण राजनयिक छूट मिलने के बाद देवयानी सुबह भारत के लिए रवाना हुईं और शाम को दिल्ली पहुंच गईं। वहीं, अमेरिकी ज्यूरी का कहना है कि उनके खिलाफ आरोप बने रहेंगे।
हालांकि, भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े के मामले में भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए कहा है कि भारत में अमेरिकी दूतावास से एक अमेरिकी अधिकारी को वापस जाने के लिए कहा है। एक सूत्र ने कहा कि हमें इस पर भरोसा करने का कारण है कि वह अधिकारी खोबरागड़े से जुड़ी पूरी प्रक्रिया और उसके बाद अमेरिका की एकतरफा कार्रवाई में शामिल था।
अमेरिकी अटॉर्नी प्रीत भरारा ने जिला न्यायाधीश शीरा शींडलिन को लिखे पत्र में कहा कि 39 वर्षीय खोबरागड़े के खिलाफ आरोप बने रहेंगे और यदि वह राजनयिक छूट के बिना अमेरिका आती हैं, तो उन्हें मुकदमे का सामना करना पड़ेगा।
भरारा ने कहा कि ग्रैंड ज्यूरी ने राजनयिक पर उनकी नौकरानी संगीता रिचर्ड के वीजा आवेदन से जुड़ी वीजा धोखाधड़ी और झूठे बयान देने के लिए दो मामलों में अभियोग लगाया है।
भारत वापसी के लिए विमान में सवार होते समय खोबरागड़े ने कहा, ‘मेरे खिलाफ लगाए गए आरोप झूठे और आधारहीन हैं। मैं इनके गलत साबित होने की उम्मीद करूंगी।’
देवयानी खोबरागड़े ने यह सुनिश्चित करने पर भी जोर दिया कि इस प्रकरण से उनके परिवार पर कोई स्थायी असर न पड़े। यहां खास तौर पर इशारा उनके बच्चों की ओर था, जो अभी भी अमेरिका में ही हैं।
इस बीज, देवयानी के पिता उत्तम खोबरागड़े ने इस मामले में प्रति समर्थन के लिए देशवासियों को धन्यवाद दिया है।
देवयानी को ‘इंडिया-यूएस हैडक्वार्टर्स एग्रीमेंट’ के तहत 8 जनवरी को पूर्ण राजनयिक छूट प्रदान की गई थी।
नौ जनवरी को अमेरिका ने भारत से अनुरोध किया कि वह खोबरागड़े की राजनयिक छूट खत्म कर दे लेकिन भारत ने इस अनुरोध को मानने से इंकार कर दिया ।
वर्ष 1999 बैच की विदेश सेवा अधिकारी देवयानी को अपनी नौकरानी के वीजा आवेदन में झूठी घोषणाएं करने के आरोप में 12 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया था। उन्हें 2.5 लाख डॉलर के मुचलके पर रिहा किया गया था।
राजनयिक की कपड़े उतरवाकर तलाशी ली गई थी और उन्हें अपराधियों के साथ बंद रखा गया था। उनके साथ इस तरह के व्यवहार के चलते दोनों देशों के बीच तल्खी पैदा हो गई थी । इसके जवाब में भारत ने अमेरिकी राजनयिकों के विशेषाधिकारों में कटौती कर दी थी।
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