मिस्र के शर्म अल शेख में ‘हानि और क्षति' समझौते पर सहमति के ऐतिहासिक फैसले के साथ संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन रविवार को संपन्न हो गया, लेकिन सभी तरह के जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल बंद करने के भारत के आह्वान समेत अन्य अहम मुद्दों पर स्कॉटलैंड में एक साल पहले हुए समझौते की तुलना में बहुत कम प्रगति देखने को मिली. ‘हानि और क्षति' का तात्पर्य जलवायु परिवर्तन के कारण हुई आपदाओं से होने वाला विनाश है.
भारत ने जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए कोष स्थापित करने संबंधी समझौता करने के वास्ते सम्मेलन को ‘‘ऐतिहासिक'' करार दिया और कहा कि ‘‘दुनिया ने इसके लिए लंबे समय तक इंतजार किया है.''
सीओपी27 के समापन सत्र में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने यह भी कहा कि विश्व को किसानों पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी की जिम्मेदारियों का बोझ नहीं डालना चाहिए.
इस शिखर सम्मेलन को शुक्रवार को समाप्त होना था, लेकिन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी, हानि एवं क्षति (एल एंड डी) निधि और अनुकूलन समेत कई मामलों पर समझौते के लिए वार्ताकारों के जोर देने पर इसे निर्धारित समय से आगे बढ़ाया गया.
वार्ता एक समय में असफल होने के करीब पहुंच गई थी, लेकिन हानि और क्षति से निपटने की एक नई वित्तीय सुविधा पर प्रगति के बाद अंतिम घंटों में इसने गति पकड़ ली.
हानि और क्षतिपूर्ति के समाधान के लिए वित्तपोषण या एक नया कोष बनाना भारत सहित विकासशील और गरीब देशों की लंबे समय से लंबित मांग रही है, लेकिन अमीर देश एक दशक से अधिक समय से इस पर चर्चा से परहेज करते रहे. विकसित देशों, खासकर अमेरिका ने इस डर से इस नए कोष का विरोध किया था कि ऐसा करना जलवायु परिवर्तन के चलते हुए भारी नुकसान के लिए उन्हें कानूनी रूप से जवाबदेह बनाएगा.
‘हानि और क्षति कोष' का प्रस्ताव जी77 और चीन (भारत इस समूह का हिस्सा है), अल्प विकसित देशों और छोटे द्वीपीय राष्ट्रों ने रखा था.
सीओपी27 में उम्मीद की जा रही थी कि तेल और गैस सहित ‘‘सभी जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किए जाने'' के प्रस्ताव को भी शामिल किया जाए, लेकिन सीओपी26 में जिस बात पर सहमति बनी थी, अंतिम समझौते में उसे आगे नहीं बढ़ाया गया.
बहरहाल, सीओपी26 की तुलना में सीओपी27 ने नवीकरणीय ऊर्जा के संबंध में अधिक कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया और ऊर्जा माध्यमों में बदलाव की बात करते हुए न्यायोचित बदलाव के सिद्धांतों को शामिल किया गया.
इस योजना ने औद्योगिक क्रांति से पहले के वैश्विक औसत तापमान के स्तर को दो डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देने के पेरिस समझौते के लक्ष्य की पुष्टि की. इसमें कहा गया कि यह ‘‘जलवायु परिवर्तन के जोखिम और प्रभावों को काफी कम करेगा.''
‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट' की वरिष्ठ सलाहकार श्रुति शर्मा ने कहा कि यह निराशाजनक है कि सीओपी27 में जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर कोई मजबूत संदेश देने के लिए सीओपी26 के बयान को आगे नहीं बढ़ाया गया.
उन्होंने कहा, ‘‘सीओपी26 में पक्षकारों ने कोयले के बेरोकटोक इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से कम करने की बात की थी. सीओपी27 में आशा थी कि भारत के प्रस्ताव के माध्यम से कोयला, तेल और गैस सहित सभी जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की बात को शामिल किया जाएगा. इस सीओपी में शायद सबसे महत्वपूर्ण ‘हानि और क्षति' निधि पर समझौता रहा.''
‘क्लाइमेट ट्रेंड्स' की निदेशक आरती खोसला ने कहा, ‘‘सीओपी27 में समझौते को स्वीकार करना मुश्किल था लेकिन अंत में अनुमान से अधिक प्रगति हुई है.''
ऐतिहासिक ‘हानि एवं क्षति' समझौते को मंजूरी मिलने का भारत में विशेषज्ञों ने स्वागत किया. इस समझौतों के लिए भारत ने रचनात्मक और सक्रिय भूमिका निभाई.
अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन में शामिल वार्ताकारों ने भारतीय समयानुसार रविवार करीब पौने आठ बजे उस ऐतिहासिक समझौते को मंजूरी दे दी, जिसके तहत विकसित देशों के कार्बन प्रदूषण के कारण पैदा हुई मौसम संबंधी प्रतिकूल परिस्थितियों से प्रभावित हुए अल्प विकसित देशों को मुआवजा देने के लिए एक निधि स्थापित की जाएगी.
कोष स्थापित करना उन अल्प विकसित देशों के लिए एक बड़ी जीत है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए लंबे समय से नकदी की मांग कर रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदाओं का सामना कर रहे गरीब देश अमीर देशों से जलवायु अनुकूलन के लिए धन देने की मांग कर रहे हैं. गरीब देशों का मानना है कि अमीर देश जो कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं, उसके चलते मौसम संबंधी हालात बदतर हुए हैं, इसलिए उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया, ‘‘शर्म अल शेख में आज सीओपी27 में इतिहास रचा गया. पक्षकार उन विकासशील देशों की सहायता के लिए बहुप्रतीक्षित ‘हानि और क्षति' कोष की स्थापना पर सहमत हुए जिन पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का विशेष रूप से असर पड़ा है.''
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