स्टॉकहोम:
चीनी लेखक मो यान को साहित्य का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। इसके साथ ही साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वह पहले चीनी नागरिक बन गए हैं। यह पुरस्कार समिति की अनपेक्षित पसंद है, क्योंकि हाल के वर्षों में उसने यूरोपीय लेखकों को तरजीह दी थी।
स्वीडिश अकादमी ने मो के 'विभ्रम के यथार्थ' की सराहना करते हुए कहा, यह लोक कथाओं, इतिहास और सम-सामयिकता का सम्मिश्रण करता है। स्वीडिश अकादमी प्रतिष्ठित पुरस्कार के विजेताओं का चयन करती है। अकादमी के स्थायी सचिव पीटर इंग्लंड ने कहा कि घोषणा से पहले अकादमी ने मो से संपर्क किया था। इंग्लंड ने कहा, उन्होंने कहा कि वह काफी खुश और डरे हुए हैं।
यद्यपि 57-वर्षीय मो यान साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले चीनी नागरिक हैं, लेकिन यह कारनामा करने वाले वह पहले चीनी नहीं हैं। फ्रांस में प्रवास कर गए गाओ जिंगजियान को साल 2000 में अपने अमूर्त नाटकों और रचनात्मक गल्प के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी कृतियां चीनी कम्युनिस्ट सरकार की आलोचना से भरी हैं और वे चीन में प्रतिबंधित हैं। जब गाओ को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, तो कम्युनिस्ट नेतृत्व ने पुरस्कार को अस्वीकार कर दिया था।
मो के पुरस्कार को बीजिंग में अधिक गर्मजोशी से लिए जाने की संभावना है। पूर्वी शानदोंग प्रांत के एक किसान परिवार में 1955 में मो का जन्म हुआ था। उनका असली नाम गुआन मोये है। मो ने अपने पहले उपन्यास लेखन के दौरान अपना उपनाम चुना। चीन से साहित्य के क्षेत्र में पहला नोबेल पुरस्कार जीतने वाले यान ने घोषणा के पहले कहा था कि साहित्य के क्षेत्र में उनकी रुचि को अकेलेपन ने बढ़ावा दिया।
यान कभी स्कूल नहीं जा सके, क्योंकि उनके क्रूर पिता ने पशुओं को चराने के लिए उनका स्कूल छुड़ा दिया था। यान ने यह बातें सरकारी सीसीटीवी से बात करते हुए कहीं कि कैसे पूरा दिन गायों के साथ गुजारने वाला अकेला बच्चा मो बन गया। तकलीफ भरे बचपन के बारे में बताने के लिए शब्दों से जूझ रहे यान ने कहा, मैं सिर्फ नीला आसमान, सफेद घास, ट्टिडे और छोटे जानवर और एक गाय देख सकता था। मैं वाकई अकेला था। कभी-कभी मैं एक ही गाने को विभिन्न सुरों में गाता था। कभी खुद से बात करता, तो कभी गायों से बातें करता था।
मो यान की ज्यादातर किताबों में उनके गृहनगर गाओमी काउंटी की बातें होती हैं। उनका गृहनगर पूर्वी चीन के शांगदोंग प्रांत में है। 20 वर्ष की उम्र से पहले मो यान ने अपने देश की सीमा से बाहर कदम नहीं रखा था। आश्चर्य की बात है कि मो यान के नाम का अर्थ है 'मत बोलो' और वह आलोचना के डर से नोबेल के बारे में बात भी नहीं करते हैं।
स्वीडिश अकादमी ने मो के 'विभ्रम के यथार्थ' की सराहना करते हुए कहा, यह लोक कथाओं, इतिहास और सम-सामयिकता का सम्मिश्रण करता है। स्वीडिश अकादमी प्रतिष्ठित पुरस्कार के विजेताओं का चयन करती है। अकादमी के स्थायी सचिव पीटर इंग्लंड ने कहा कि घोषणा से पहले अकादमी ने मो से संपर्क किया था। इंग्लंड ने कहा, उन्होंने कहा कि वह काफी खुश और डरे हुए हैं।
यद्यपि 57-वर्षीय मो यान साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले चीनी नागरिक हैं, लेकिन यह कारनामा करने वाले वह पहले चीनी नहीं हैं। फ्रांस में प्रवास कर गए गाओ जिंगजियान को साल 2000 में अपने अमूर्त नाटकों और रचनात्मक गल्प के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी कृतियां चीनी कम्युनिस्ट सरकार की आलोचना से भरी हैं और वे चीन में प्रतिबंधित हैं। जब गाओ को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, तो कम्युनिस्ट नेतृत्व ने पुरस्कार को अस्वीकार कर दिया था।
मो के पुरस्कार को बीजिंग में अधिक गर्मजोशी से लिए जाने की संभावना है। पूर्वी शानदोंग प्रांत के एक किसान परिवार में 1955 में मो का जन्म हुआ था। उनका असली नाम गुआन मोये है। मो ने अपने पहले उपन्यास लेखन के दौरान अपना उपनाम चुना। चीन से साहित्य के क्षेत्र में पहला नोबेल पुरस्कार जीतने वाले यान ने घोषणा के पहले कहा था कि साहित्य के क्षेत्र में उनकी रुचि को अकेलेपन ने बढ़ावा दिया।
यान कभी स्कूल नहीं जा सके, क्योंकि उनके क्रूर पिता ने पशुओं को चराने के लिए उनका स्कूल छुड़ा दिया था। यान ने यह बातें सरकारी सीसीटीवी से बात करते हुए कहीं कि कैसे पूरा दिन गायों के साथ गुजारने वाला अकेला बच्चा मो बन गया। तकलीफ भरे बचपन के बारे में बताने के लिए शब्दों से जूझ रहे यान ने कहा, मैं सिर्फ नीला आसमान, सफेद घास, ट्टिडे और छोटे जानवर और एक गाय देख सकता था। मैं वाकई अकेला था। कभी-कभी मैं एक ही गाने को विभिन्न सुरों में गाता था। कभी खुद से बात करता, तो कभी गायों से बातें करता था।
मो यान की ज्यादातर किताबों में उनके गृहनगर गाओमी काउंटी की बातें होती हैं। उनका गृहनगर पूर्वी चीन के शांगदोंग प्रांत में है। 20 वर्ष की उम्र से पहले मो यान ने अपने देश की सीमा से बाहर कदम नहीं रखा था। आश्चर्य की बात है कि मो यान के नाम का अर्थ है 'मत बोलो' और वह आलोचना के डर से नोबेल के बारे में बात भी नहीं करते हैं।
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