
चीन के नागरिक रूस की तरफ से यूक्रेन के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं. यह बात साबित करने के लिए यूक्रेन ने अंतरराष्ट्रीय कानून तक को तोड़ने का फैसला किया. एक तरफ तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन में कमी आ रही है तो दूसरी तरफ और रूस चीन को मौन समर्थन देते हुए अपने रुख को आक्रामक कर रहा है. ऐसे में यूक्रेन के पास शायद ज्यादा विकल्प थे नहीं. चीन द्वारा अपने नागरिकों को रूसियों के साथ युद्ध लड़ने से साफ इनकार करने के बाद, यूक्रेन ने ऐसा कदम उठाया जो आमतौर पर देखने को नहीं मिलता.
राष्ट्रपति जेलेंस्की की मंजूरी मिलने के बाद यूक्रेनी सेना ने युद्ध में बंदी (POW) बनाए गए चीनी नागरिकों की पूरी दुनिया के सामने परेड कराने का फैसला किया. दरअसल युद्धबंदियों की पहचान को उजागर करना, उन्हें पत्रकारों और न्यूज कैमरों के सामने दिखाना अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन माना जाता है. लेकिन यूक्रेन ने ऐसा करने का फैसला किया ताकि चीन को गलत साबित किया जा सके.
पिछले हफ्ते ही यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने कहा था कि 155 चीनी नागरिक यूक्रेन में उनके देश के खिलाफ लड़ रहे हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि रूस चीन को युद्ध में "घसीट" रहा है और बीजिंग की आलोचना की कि उसने चुपचाप अपने नागरिकों को मास्को की सेना में भर्ती होने की अनुमति दी. उन्होंने यह भी कहा कि यूक्रेन के पास वर्तमान में युद्ध में लड़ रहे कम से कम 155 चीनी नागरिकों के डिटेल्स हैं और उनमें से दो को ईस्ट डोनेट्स्क में पकड़ भी लिया गया था. लेकिन चीन ने इन सभी दावों को खारिज कर दिया था.
चीन के पास क्या जवाब?
इससे पहले राष्ट्रपति जेलेंस्की के आरोपों के जवाब में, चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था, "हम दोहराना चाहेंगे कि चीन ने यूक्रेनी संकट को न तो शुरू किया है और न ही चीन इसमें भाग लेने वाला पक्ष है." उन्होंने आगे कहा कि "हम संबंधित पक्षों से आग्रह करते हैं कि वे चीन की भूमिका को सही ढंग से और गंभीरता से समझें और गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी जारी न करें."
चूंकि अब चीन के नागरिक रूसी सैनिकों के साथ युद्ध में भाग लेते पाए गए हैं, चीन की गतिविधियों पर यूक्रेन द्वारा बहुत बारीकी से नजर रखी जा रही है.
युद्धबंदियों ने क्या बताया?
सीएनएन के अनुसार दोनों युद्धबंदियों को उनकी आर्मी वाली ड्रेस में ही प्रेस ब्रीफिंग रूम में लाया गया. उन्हें प्रेस से बातचीत करने का अवसर दिया गया, जिससे उन्हें अपनी आपबीती के बारे में बोलने का मंच भी मिला. उनके पास एक अनुवादक (ट्रांसलेटर) खड़ा था जिसने युद्धबंदियों से पूछे गए सवालों का अनुवाद किया, जिन्होंने बदले में मैंडरिन भाषा में जवाब दिए. दोनों ने - जिनका सीएनएन ने नाम नहीं बताने या किसी भी तरह से उनकी पहचान उजागर नहीं करने का फैसला किया - ने बताया कि कैसे पैसे के लिए उन्होंने ऐसा कुछ किया.
दोनों ने आगे कहा कि दोनों के पास मेडिकल रिहैब की पहले से ट्रेनिंग थी और वह रूसी सेना में ऐसा ही करना चाहते थे. लेकिन जब वे मॉस्को पहुंचे, तो उन्हें युद्ध प्रशिक्षण से गुजरना पड़ा और उन्हें युद्ध लड़ने की भूमिका सौंपी गई. दोनों युद्धबंदियों ने कहा कि उन्हें भाषा की समस्या थी और उन्हें दिए गए सभी दस्तावेज रूसी भाषा में थे, जिसे उनमें से कोई भी नहीं समझता था. उनमें से एक ने कहा कि वह अपने साथियों के साथ केवल हाथ के इशारे से ही बातचीत कर सकता है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं