प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नेपाल के पीएम प्रचंड
बीजिंग:
प्रचंड की नई दिल्ली यात्रा से नाराज चीनी सरकारी मीडिया ने चीन के प्रतिकूल जाने को लेकर भारत की आलोचना की और नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' को भारत के इशारे पर द्विपक्षीय संबंधों की अनदेखी करने के लिए खरी खोटी सुनाई.
सरकार संचालित ग्लोबल टाइम्स में छपे एक आलोख में चीन को ऐसा महसूस हो रहा कि उसके साथ नेपाल ने चालबाजी की है जिसने पहले तो भारत से दबाव घटाने के लिए चीन से अपनी नजदीकी बढ़ाई और नई दिल्ली पर अपनी निर्भरता से छुटकारा पाने के लिए बीजिंग के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए. लेकिन दबाव कम होने पर बाद में इसने नेपाल-चीन संबंधों को अस्थायी तौर पर टाल दिया.
प्रचंड और भारत पर तीखा हमला बोलते हुए अखबार के दो आलेखों में चीन समर्थक पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को हटा कर शासन में बदलाव किए जाने पर चीन के रोष का जिक्र किया गया है.
एक आलेख में प्रचंड के अपने पिछले शासनकाल के दौरान 2008 में पहले पहल चीन की यात्रा का उनके द्वारा विकल्प चुनने को याद करते हुए कहा गया है, ‘‘प्रचंड अब गुस्से में नहीं हैं जैसा कि उन्होंने कभी बताया था, लेकिन राजनीतिक हित के लिए इसके कहीं अधिक यथार्थवादी निहितार्थ हैं. ’’ इसने कहा है कि उनकी भारत यात्रा के दौरान पंचेश्वर परियोजना, भूकंप बाद पुनर्निर्माण और पूर्व पश्चिम रेलवे कार्यक्रम उच्च स्तरीय बैठकों के एजेंडा में थे. हालांकि ये सब चीन के रेशम मार्ग पहल के भी मुख्य विषयों में शामिल थे जिससे नेपाल को फायदा हो सकता है.
इसने कहा है कि ऐसा लगता है कि नेपाल और चीन के बीच संबंध ठहर गया है और चीनी नेताओं की नेपाल यात्रा कथित तौर पर टाल दी गई है जो एक अभूतपूर्व स्थिति है.
आलेख में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि चीन और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंध अचानक ही नाजुक और संवेदनशील हो गया है. इसमें कहा गया है, ‘‘बेशक, चीन ठगा हुआ सा महसूस कर रहा है.’’ इसने कहा है कि चीन-नेपाल संबंध में काठमांडो को ज्यादा फायदा होगा. चीन कुछ नहीं खोयेगा लेकिन नेपाल को इस पर विचार करने की जरूरत है कि कहीं यह अधिक अवसर तो नहीं गंवायेगा.’’ इसी अखबार में दूसरे आलेख में भारत पर चीन के प्रतिकूल जाने का आरोप लगाया गया है.
इसने कहा है ‘‘नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव से चौकन्ना हुआ भारत अब अपना रुख बदलने की कोशिश कर रहा है लेकिन इस तरह के तुच्छ भू राजनैतिक तर्क से किसी को कोई फायदा नहीं होगा. ’’
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
सरकार संचालित ग्लोबल टाइम्स में छपे एक आलोख में चीन को ऐसा महसूस हो रहा कि उसके साथ नेपाल ने चालबाजी की है जिसने पहले तो भारत से दबाव घटाने के लिए चीन से अपनी नजदीकी बढ़ाई और नई दिल्ली पर अपनी निर्भरता से छुटकारा पाने के लिए बीजिंग के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए. लेकिन दबाव कम होने पर बाद में इसने नेपाल-चीन संबंधों को अस्थायी तौर पर टाल दिया.
प्रचंड और भारत पर तीखा हमला बोलते हुए अखबार के दो आलेखों में चीन समर्थक पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को हटा कर शासन में बदलाव किए जाने पर चीन के रोष का जिक्र किया गया है.
एक आलेख में प्रचंड के अपने पिछले शासनकाल के दौरान 2008 में पहले पहल चीन की यात्रा का उनके द्वारा विकल्प चुनने को याद करते हुए कहा गया है, ‘‘प्रचंड अब गुस्से में नहीं हैं जैसा कि उन्होंने कभी बताया था, लेकिन राजनीतिक हित के लिए इसके कहीं अधिक यथार्थवादी निहितार्थ हैं. ’’ इसने कहा है कि उनकी भारत यात्रा के दौरान पंचेश्वर परियोजना, भूकंप बाद पुनर्निर्माण और पूर्व पश्चिम रेलवे कार्यक्रम उच्च स्तरीय बैठकों के एजेंडा में थे. हालांकि ये सब चीन के रेशम मार्ग पहल के भी मुख्य विषयों में शामिल थे जिससे नेपाल को फायदा हो सकता है.
इसने कहा है कि ऐसा लगता है कि नेपाल और चीन के बीच संबंध ठहर गया है और चीनी नेताओं की नेपाल यात्रा कथित तौर पर टाल दी गई है जो एक अभूतपूर्व स्थिति है.
आलेख में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि चीन और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंध अचानक ही नाजुक और संवेदनशील हो गया है. इसमें कहा गया है, ‘‘बेशक, चीन ठगा हुआ सा महसूस कर रहा है.’’ इसने कहा है कि चीन-नेपाल संबंध में काठमांडो को ज्यादा फायदा होगा. चीन कुछ नहीं खोयेगा लेकिन नेपाल को इस पर विचार करने की जरूरत है कि कहीं यह अधिक अवसर तो नहीं गंवायेगा.’’ इसी अखबार में दूसरे आलेख में भारत पर चीन के प्रतिकूल जाने का आरोप लगाया गया है.
इसने कहा है ‘‘नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव से चौकन्ना हुआ भारत अब अपना रुख बदलने की कोशिश कर रहा है लेकिन इस तरह के तुच्छ भू राजनैतिक तर्क से किसी को कोई फायदा नहीं होगा. ’’
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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