भारत में केंद्रीय विद्यालयों में तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत के विकल्प के तौर पर जर्मन भाषा को हटाने का मुद्दा जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत में उठाया। मोदी ने उन्हें भारतीय प्रणाली की सीमाओं के भीतर इस पर विचार करने का आश्वासन दिया।
जी-20 शिखर सम्मेलन से इतर मुलाकात के दौरान मर्केल ने मोदी के साथ इस मुद्दे को उठाया और उन्हें जर्मनी आने का न्योता भी दिया।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने कहा, मर्केल ने भारतीय स्कूलों में संस्कृत के विकल्प के रूप में जर्मन भाषा पढ़ाए जाने के मुद्दे को उठाया। उन्होंने प्रधानमंत्री से इस पर विचार करने तथा यह देखने का अनुरोध किया कि आगे क्या सर्वश्रेष्ठ रास्ता हो सकता है।
प्रवक्ता के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह खुद भारत में बच्चों के अन्य भाषाएं सीखने के समर्थक हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय प्रणाली के दायरे में इस पर क्या सर्वश्रेष्ठ हो सकता है, हम इस पर काम करेंगे।
भारत में जर्मनी के राजदूत माइकल स्टीनर भी भारत सरकार के साथ इस मुद्दे को उठा चुके हैं और व्यावहारिक समाधान की उम्मीद जता चुके हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने संस्कृत के विकल्प के रूप में जर्मन भाषा को हटाने का फैसला किया, जिसके बाद करीब 500 केंद्रीय विद्यालयों में कक्षा छठी से आठवीं के करीब 70,000 बच्चों से जर्मन की जगह संस्कृत भाषा पढ़ने को कहा जा सकता है।
साल 2011 में केंद्रीय विद्यालयों और गोयथे इंस्टीट्यूट-मैक्स मूलर भवन के बीच एमओयू हुआ था, जिसमें जर्मन को तीसरी भाषा बनाया गया था। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने सरकार के कदम का बचाव करते हुए कहा कि मौजूदा व्यवस्था तीन-भाषा के फॉर्मूले का उल्लंघन है। हालांकि उन्होंने कहा कि जर्मन भाषा 'रुचि के अतिरिक्त विषय' के तौर पर पढ़ाई जाती रहेगी।
तीन-भाषा के फॉर्मूले में स्कूलों में हिन्दी, अंग्रेजी और एक आधुनिक भारतीय भाषा पढ़ाई जाती है। संस्कृत भाषा के शिक्षकों ने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया था और आरोप लगाया था कि केंद्रीय विद्यालयों ने शिक्षा नीति के खिलाफ संस्कृत की जगह तीसरी भाषा के तौर पर जर्मन को अपनाया है।
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