फाइल फोटो
न्यूयॉर्क:
अमेरिकी अनुसंधान दल ने पाया है कि ऐतिहासिक ताजमहल के पास शहर का ठोस कूड़ा जलाना इस विश्व धरोहर स्मारक को बदरंग करने में अहम भूमिका निभा रहा है. इस अनुसंधान में ताजमहल और इसके आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर उपलों के जलाने और ठोस कूड़ा जलाने के असर की तुलना की गई.
नए उपायों के प्रयोग से, मिनेसोटा विश्वविद्यालय के अजय नागपुरे और जार्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के राजलाल सहित शोधकर्ताओं ने वैज्ञानिक सबूत दिए कि स्मारक के पास ठोस कूड़ा जलाना वायु प्रदूषक 'पार्टीकुलेट मैटर' (पीएम) के नुकसानदेह स्तर में योगदान कर सकता है.
वैज्ञानिकों ने पाया कि खुले में ठोस कूड़ा जलाने से पीएम 2.5 का प्रति वर्ष करीब 150 मिलीग्राम प्रति वर्ग मीटर ताजमहल की सतह पर जमा होता है जबकि इसकी तुलना में उपले जलाने पर यह आंकड़ा 12 मिलीग्राम प्रति वर्ग मीटर प्रतिवर्ष है.
शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि ये दोनों स्रोत मिलकर पीएम 2.5 से जुड़ी समयपूर्व मृत्युदर के आकलन पर आधारित एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता पेश करते हैं. जार्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से आर्मिस्टेड रसेल ने कहा, "हमारे शुरुआती अन्वेषण में पाया गया कि ठोस कूड़ा जलाने पर पूर्ण पाबंदी लगाना असरदार नहीं है क्योंकि हो सकता है कि लोगों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं हो."
रसेल ने कहा कि बल्कि, कूड़ा उठाने के साथ गंदगी वाले क्षेत्रों में सेवाएं देने के नई तरीके अपनाने चाहिए. विश्लेषण में भारत के अलग अलग शहरों में धनाढ्य, गरीब और मध्यम आय वाले लोगों के क्षेत्रों के पास में ठोस कूड़ा जलाने और उत्सर्जन पर गौर किया गया.
आईआईटी कानपुर के सच्चिदा त्रिपाठी और मिनेसोटा विश्वविद्यालय के अनु रामास्वामी सहित अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि शहरा में पार्टीकुलेट मैटर स्वास्थ्य चिंताएं पैदा करने वाली, वायु गुणवत्ता में गिरावट और प्राचीन इमारतों के बदरंग होने जैसी कई समस्याएं पैदा करता है. उन्होंने पत्रिका 'एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स' में लिखा कि ताज नगरी आगरा में अधिकारियों ने इस स्मारक में स्थानीय वायु प्रदूषण के असर पर काबू पाने के लिए कई उपाय किए हैं.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
नए उपायों के प्रयोग से, मिनेसोटा विश्वविद्यालय के अजय नागपुरे और जार्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के राजलाल सहित शोधकर्ताओं ने वैज्ञानिक सबूत दिए कि स्मारक के पास ठोस कूड़ा जलाना वायु प्रदूषक 'पार्टीकुलेट मैटर' (पीएम) के नुकसानदेह स्तर में योगदान कर सकता है.
वैज्ञानिकों ने पाया कि खुले में ठोस कूड़ा जलाने से पीएम 2.5 का प्रति वर्ष करीब 150 मिलीग्राम प्रति वर्ग मीटर ताजमहल की सतह पर जमा होता है जबकि इसकी तुलना में उपले जलाने पर यह आंकड़ा 12 मिलीग्राम प्रति वर्ग मीटर प्रतिवर्ष है.
शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि ये दोनों स्रोत मिलकर पीएम 2.5 से जुड़ी समयपूर्व मृत्युदर के आकलन पर आधारित एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता पेश करते हैं. जार्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से आर्मिस्टेड रसेल ने कहा, "हमारे शुरुआती अन्वेषण में पाया गया कि ठोस कूड़ा जलाने पर पूर्ण पाबंदी लगाना असरदार नहीं है क्योंकि हो सकता है कि लोगों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं हो."
रसेल ने कहा कि बल्कि, कूड़ा उठाने के साथ गंदगी वाले क्षेत्रों में सेवाएं देने के नई तरीके अपनाने चाहिए. विश्लेषण में भारत के अलग अलग शहरों में धनाढ्य, गरीब और मध्यम आय वाले लोगों के क्षेत्रों के पास में ठोस कूड़ा जलाने और उत्सर्जन पर गौर किया गया.
आईआईटी कानपुर के सच्चिदा त्रिपाठी और मिनेसोटा विश्वविद्यालय के अनु रामास्वामी सहित अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि शहरा में पार्टीकुलेट मैटर स्वास्थ्य चिंताएं पैदा करने वाली, वायु गुणवत्ता में गिरावट और प्राचीन इमारतों के बदरंग होने जैसी कई समस्याएं पैदा करता है. उन्होंने पत्रिका 'एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स' में लिखा कि ताज नगरी आगरा में अधिकारियों ने इस स्मारक में स्थानीय वायु प्रदूषण के असर पर काबू पाने के लिए कई उपाय किए हैं.
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