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This Article is From Jan 17, 2012

गिलानी को राहत : संसद में हासिल किया विश्वासमत

इस्लामाबाद: पाकिस्तान की संसद नेशनल असेम्बली ने सोमवार शाम को देश में लोकतंत्र के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया। इससे प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने राहत की सांस ली है।

सर्वोच्च न्यायालय ने इससे पहले राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ कार्रवाई न करने के लिए गिलानी के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी किया था, जिसके बाद गिलानी ने इस्तीफे की पेशकश की।

पाकिस्तान में जारी राजनीतिक संकट के बीच संसद ने सोमवार को अवामी नेशनल पार्टी की ओर से पेश लोकतंत्र के समर्थन का प्रस्ताव पारित कर दिया। गिलानी ने इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद सांसदों को बधाई दी।

गिलानी ने संसद में कहा कि वह सर्वोच्च न्यायालय में 19 जनवरी को पेश होंगे। उन्होंने कहा कि सरकार किसी तरह का टकराव नहीं चाहती और किसी को भी चुनी हुई सरकार के महत्व को कम करने की इजाजत नहीं है।

इससे पहले दिन में तेजी से बदलते घटनाक्रम में सर्वोच्च न्यायालय की ओर से अवमानना नोटिस जारी होने के बाद गिलानी ने इस्तीफे की पेशकश की। अदालत ने उन्हें 19 जनवरी को हाजिर होने का निर्देश दिया है।

भ्रष्टाचार के मसले पर राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ कार्रवाई करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का अनुपालन नहीं करने पर उसकी ओर से गिलानी को यह अवमानना नोटिस जारी किया गया है।

एआरवाई न्यूज के मुताबिक गिलानी ने लोकतांत्रिक व्यवस्था और संसद को बचाने का हवाला देते हुए अपने इस्तीफे की पेशकश की।

'जियो न्यूज' ने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान इस्तीफे की पेशकश की। उसके मुताबिक दोनों नेताओं ने देश के वर्तमान राजनीतिक हालात पर चर्चा की।

पाकिस्तान के सत्ताधरी गठबंधन में शामिल सहयोगी दलों ने भी आपस में बैठक की और फैसला किया कि गिलानी 19 जनवरी को अदालत के समक्ष हाजिर होंगे।

सर्वोच्च न्यायालय ने गिलानी को निर्देश दिया था कि भ्रष्टाचार के मामले में राष्ट्रीय सुलह अध्यादेश (एनआरओ) के तहत माफी पाने वाले जरदारी के खिलाफ कार्रवाई की जाए। गिलानी को न्यायालय ने अपना यह निर्देश न मानने के लिए अवमानना का नोटिस जारी किया है। साथ ही उन्हें 19 जनवरी को न्यायालय में पेश होने का निर्देश दिया।

समाचार पत्र डॉन ने कानून मंत्री मौला बक्स चांडिओ के हवाले से बताया है कि अदालत के नोटिस पर सरकार कानूनविदें की राय लेगी और कानून तथा संविधान के मातहत ही अगला कदम उठाएगी।

एनआरओ वर्ष 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने जारी किया था।

जरदारी को एनआरओ के तहत आम माफी दी गई थी। यह अध्यादेश वर्ष 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और उनके पति आसिफ अली जरदारी का स्वदेश लौटना सरल बनाने के लिए जारी किया था। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2009 में इसे निरस्त कर दिया था।

सर्वोच्च न्यायालय के सात न्यायमूर्तियों की खंडपीठ ने सोमवार को अध्यादेश को लागू किए जाने से सम्बंधित मामले की सुनवाई की, जिसके तहत राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो ने जरदारी के खिलाफ मामले वापस ले लिए।

महान्यायवादी मौलवी अनवारुल हक ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि उन्हें सरकार की ओर से न्यायालय द्वारा इस मामले में 10 जनवरी को रखे गए छह विकल्पों के बारे में कोई निर्देश नहीं मिला है।

इन छह विकल्पों में राष्ट्रपति के खिलाफ संविधान के उल्लंघन के लिए कार्रवाई, मुख्य कार्यकारी व कानून सचिव के खिलाफ अध्यादेश पर दिए गए निर्णय को लागू नहीं करवाने के लिए अवमानना की कार्रवाई और उन्हें संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराने के विकल्प शामिल थे।

इससे पहले न्यायालय ने आम माफी के कानून के सम्बंध में अपने निर्णय को 10 जनवरी, 2012 तक लागू नहीं किए जाने पर सरकार को चेतावनी दी थी। इस कानून के तहत राजनेताओं और नौकरशाहों को भ्रष्टाचार के मामलों से मुक्त कर दिया गया था।

न्यायालय ने अध्यादेश के तहत बंद किए गए मामले दोबारा खोलने को भी कहा था। न्यायालय ने सरकार को राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ मामले खोलने के लिए स्विट्जरलैंड सरकार को पत्र लिखने का आदेश भी दिया था और इसके लिए सात दिन की समय सीमा निर्धारित की थी।

सर्वोच्च न्यायालय के 10 जनवरी के निर्णय से दो दिन पहले जरदारी ने कहा था कि वह अगले 12-15 महीने के लिए देश के राष्ट्रपति बने रहेंगे और अगली सरकार भ्रष्टाचार के कथित मामले में स्विट्जरलैंड की अदालत को लिख सकती है।

एक टेलीविजन चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा था, "मेरी सरकार ऐसा क्यों करे?"

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