इस्लामाबाद:
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के कामकाज को लेकर राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के साथ मनमुटाव के बाद उनके बेटे बिलावल भुट्टो जरदारी देश से चले गए हैं। चुनाव से ठीक पहले इस स्टार प्रचारक का पाकिस्तान से जाना पीपीपी के लिए बड़ा झटका है।
हाल ही में बिलावल को पीपीपी का मुख्य संरक्षक नामित किया गया था। उनका अपने पिता जरदारी और बुआ फारयाल तालपुर के साथ पार्टी को कुछ मुद्दों पर संभालने को लेकर मनमुटाव हुआ। इनमें आतंकवादी हिंसा, शिया समुदाय के खिलाफ हो रहे हमले और टिकटों के मुद्दे शामिल हैं। पाकिस्तान में आगामी 11 मई को संसदीय चुनाव होना है।
इस घटनाक्रम के बारे में दो सूत्रों ने पीटीआई को बताया कि बिलावल ने पिता को स्पष्ट कर दिया है कि वह महसूस करते हैं कि पार्टी ने पिछले साल मलाला यूसुफजई पर तालिबान के हमले, क्वेटा में शिया समुदाय के लोगों को निशाना बनाकर किए गए हमले तथा कराची हिंसा जैसे मुद्दों को मजबूती के साथ नहीं उठाया है।
सूत्रों के अनुसार युवाओं को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर पार्टी के रुख को लेकर बिलावल खासे नाराज थे। यह उस वक्त हुआ है जब इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ युवाओं को लुभाने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है।
सूत्रों ने कहा कि 24 वर्षीय बिलावल अपनी बुआ फारयाल तालपुर के रवैये से भी नाराज थे क्योंकि उन्होंने सिंध प्रांत में कुछ उन उम्मीदवारों को टिकट देने से इंकार कर दिया था जिनकी सिफारिश खुद बिलावल ने की थी। एक सूत्र ने कहा, ‘‘पिछले महीने बिलावल ने करीब 200 पीपीपी कार्यकर्ताओं के के नाम सुझाए थे और सिंध के पूर्व मुख्यमंत्री कईम अली शाह से उन्हें काम देने के लिए कहा था, लेकिन फारयाल ने इसमें दखल दिया। इसके बाद बुआ और भतीजे के बीच तल्खी बढ़ गई।’’
बिलावल ने इन मुद्दों को लेकर पिता के साथ चर्चा की और पार्टी के मामलों में खुद फैसला करने का अधिकार मांगा। सूत्रों का कहना है कि जरदारी ने अपनी बहन का पक्ष लिया। उनकी बहन फारयाल पार्टी के मामलों में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
एक सूत्र ने बताया, ‘‘जब जरदारी ने बिलावल से कहा कि वह राजनीतिक रूप से परिपक्व हो जाएंगे तो पार्टी की कमान उन्हें सौंप देंगे तो बिलावल नाराज हो गए और दुबई चले गए।’’ सूत्रों के अनुसार एक बार मामला काफी गरमा गया और बिलावल ने कहा, ‘‘अगर मुझे वोट देना हो तो मैं पीपीपी को वोट नहीं दूंगा।’’
बिलावल के पिछले सप्ताह अचानक दुबई चले जाने से पीपीपी के भीतर बेचैनी बढ़ गई है क्योंकि पार्टी चुनाव में उन्हें आगे रखकर उन मतदाताओं को लुभाना चाहती थी तो भुट्टो परिवार के लिए पारंपरिक मतदाता रहे हैं।
पीपीपी के एक नेता ने कहा, ‘‘बिलावल को पीपीपी के स्टार प्रचारक के रूप में पेश किया गया क्योंकि राष्ट्रपति होने के कारण जरदारी चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हो सकते।’’ उन्होंने कहा, ‘‘बिलावल के बिना पार्टी लोगों, खासकर पीपीपी के घोर समर्थकों के की भावनाओं को स्पर्श नहीं किया जा सकेगा।’’ इस नेता ने कहा कि उन्हें डर है कि बिलावल के चुनाव प्रचार में भाग नहीं लेने से पीपीपी को ‘भुट्टो वोट’ नहीं मिल सकेंगे।
पीपीपी नेताओं ने स्वीकार किया है कि आगामी चार अप्रैल को गढ़ी खुदा बख्स से पीपीपी के चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत के मौके पर बिलावल मौजूद नहीं हो पाएंगे।
इन नेताओं का कहना है कि बिलावल सुरक्षा कारणों से इस मौके पर मौजूद नहीं होंगे और टेलीफोन के जरिेये अपना संबोधन देंगे।
हाल ही में पीपीपी के महासचिव चुने गए लतीफ खोसा ने पीटीआई से कहा, ‘‘शायद सुरक्षा कारणों से बिलावल चुनावी सभाओं में शामिल नहीं हो सके और उनके टेलीफोन के जरिये इन सभाओं को संबोधित करने की उम्मीद है।
पीपीपी प्रवक्ता कमर जमां कायरा ने भी कहा कि सुरक्षा संबंधी खतरों के कारण बिलावल 4 अप्रैल की सभा में शामिल नहीं हो पाएंगे।
हाल ही में बिलावल को पीपीपी का मुख्य संरक्षक नामित किया गया था। उनका अपने पिता जरदारी और बुआ फारयाल तालपुर के साथ पार्टी को कुछ मुद्दों पर संभालने को लेकर मनमुटाव हुआ। इनमें आतंकवादी हिंसा, शिया समुदाय के खिलाफ हो रहे हमले और टिकटों के मुद्दे शामिल हैं। पाकिस्तान में आगामी 11 मई को संसदीय चुनाव होना है।
इस घटनाक्रम के बारे में दो सूत्रों ने पीटीआई को बताया कि बिलावल ने पिता को स्पष्ट कर दिया है कि वह महसूस करते हैं कि पार्टी ने पिछले साल मलाला यूसुफजई पर तालिबान के हमले, क्वेटा में शिया समुदाय के लोगों को निशाना बनाकर किए गए हमले तथा कराची हिंसा जैसे मुद्दों को मजबूती के साथ नहीं उठाया है।
सूत्रों के अनुसार युवाओं को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर पार्टी के रुख को लेकर बिलावल खासे नाराज थे। यह उस वक्त हुआ है जब इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ युवाओं को लुभाने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है।
सूत्रों ने कहा कि 24 वर्षीय बिलावल अपनी बुआ फारयाल तालपुर के रवैये से भी नाराज थे क्योंकि उन्होंने सिंध प्रांत में कुछ उन उम्मीदवारों को टिकट देने से इंकार कर दिया था जिनकी सिफारिश खुद बिलावल ने की थी। एक सूत्र ने कहा, ‘‘पिछले महीने बिलावल ने करीब 200 पीपीपी कार्यकर्ताओं के के नाम सुझाए थे और सिंध के पूर्व मुख्यमंत्री कईम अली शाह से उन्हें काम देने के लिए कहा था, लेकिन फारयाल ने इसमें दखल दिया। इसके बाद बुआ और भतीजे के बीच तल्खी बढ़ गई।’’
बिलावल ने इन मुद्दों को लेकर पिता के साथ चर्चा की और पार्टी के मामलों में खुद फैसला करने का अधिकार मांगा। सूत्रों का कहना है कि जरदारी ने अपनी बहन का पक्ष लिया। उनकी बहन फारयाल पार्टी के मामलों में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
एक सूत्र ने बताया, ‘‘जब जरदारी ने बिलावल से कहा कि वह राजनीतिक रूप से परिपक्व हो जाएंगे तो पार्टी की कमान उन्हें सौंप देंगे तो बिलावल नाराज हो गए और दुबई चले गए।’’ सूत्रों के अनुसार एक बार मामला काफी गरमा गया और बिलावल ने कहा, ‘‘अगर मुझे वोट देना हो तो मैं पीपीपी को वोट नहीं दूंगा।’’
बिलावल के पिछले सप्ताह अचानक दुबई चले जाने से पीपीपी के भीतर बेचैनी बढ़ गई है क्योंकि पार्टी चुनाव में उन्हें आगे रखकर उन मतदाताओं को लुभाना चाहती थी तो भुट्टो परिवार के लिए पारंपरिक मतदाता रहे हैं।
पीपीपी के एक नेता ने कहा, ‘‘बिलावल को पीपीपी के स्टार प्रचारक के रूप में पेश किया गया क्योंकि राष्ट्रपति होने के कारण जरदारी चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हो सकते।’’ उन्होंने कहा, ‘‘बिलावल के बिना पार्टी लोगों, खासकर पीपीपी के घोर समर्थकों के की भावनाओं को स्पर्श नहीं किया जा सकेगा।’’ इस नेता ने कहा कि उन्हें डर है कि बिलावल के चुनाव प्रचार में भाग नहीं लेने से पीपीपी को ‘भुट्टो वोट’ नहीं मिल सकेंगे।
पीपीपी नेताओं ने स्वीकार किया है कि आगामी चार अप्रैल को गढ़ी खुदा बख्स से पीपीपी के चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत के मौके पर बिलावल मौजूद नहीं हो पाएंगे।
इन नेताओं का कहना है कि बिलावल सुरक्षा कारणों से इस मौके पर मौजूद नहीं होंगे और टेलीफोन के जरिेये अपना संबोधन देंगे।
हाल ही में पीपीपी के महासचिव चुने गए लतीफ खोसा ने पीटीआई से कहा, ‘‘शायद सुरक्षा कारणों से बिलावल चुनावी सभाओं में शामिल नहीं हो सके और उनके टेलीफोन के जरिये इन सभाओं को संबोधित करने की उम्मीद है।
पीपीपी प्रवक्ता कमर जमां कायरा ने भी कहा कि सुरक्षा संबंधी खतरों के कारण बिलावल 4 अप्रैल की सभा में शामिल नहीं हो पाएंगे।
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