सिंगापुर एयरलाइन्स की बोइंग 777-300ER फ्लाइट ने लंदन से भारतीय समय के मुताबिक सोमवार देर रात 2:45 बजे उड़ान भरी थी. फ्लाइट दोपहर 3:40 बजे सिंगापुर लैंड होने वाली थी, लेकिन टेकऑफ के 11 घंटे बाद ये म्यांमार के एयरस्पेस में 37 हजार फीट पर टर्बुलेंस में फंस गई. लेकिन फिर जो हुआ वो रोंगटे खड़े करने वाला था. एयरक्राफ्ट महज 5 मिनट के अंदर 6 हजार फीट नीचे आ गया. विमान के अंदर बैठे लोगों को ऐसा टर्बुलेंस महसूस हुआ होगा कि जैसे मानों उनका विमान बरमूडा ट्राएंगल के ऊपर से निकल रहा हो. और अब उनके विमान को सुरक्षित लैंड कर पाना असंभव सा है.
बरमूडा ट्राएंगल का नाम सामने आते ही आपको लग रहा होगा आखिर ये कौन सी जगह है. इसे लेकर कई तरह की कहानियां प्रसिद्ध है. आप और हम इसके बारे में बचपन से ही सुनते आ रहे हैं लेकिन जब भी इसके बारे में जानने या समझने की कोशिश की तो हमेशा साइंस के इतने भारी भरकम कॉन्सेप्ट सामने रख दिए गए जिनकी मदद से इसे जानने समझने की जगह हम इससे दूरी बनाते रहे. हमे हमेशा लगता था कि काश कभी ऐसा हो कि कोई इसके बारे में हमें आसान भाषा में ही समझा दे. चलिए आज हम आपके लिए ये करते हैं...आज हम आपको बरमूडा ट्राएंगल और इससे जुड़ी तमाम उन बातों से रूबरू कराएंगे जो आजतक कई लोगों के लिए रहस्य की तरह है...
आखिर बरमूडा ट्रायंगल है क्या ?
आसान भाषा में समझना चाहें तो ये अटलाटिंक महासागर में करीब पांच लाख स्क्वायर किलोमीटर का एक ऐसा इलाका है. जो फ्लोरिडा के पास से शुरू होकर प्यूटोरिको और बरमूडा द्वीप तक जाता है. ऐसे में ये समुद्र के अंदर एक काल्पनिक सा ट्रायंगल क्रिएट करता है. इसी पूरे इलाके को हम बरमूडा ट्रायंगल के नाम से जानते हैं.
क्रिस्टोफर कोलंबस ने इसे लेकर क्या कहा था
जहां तक बात इस ट्राएंगल के खोज की है तो इसका श्रेय जाता है क्रिस्टोफर कोलंबस को. ऐसा माना जाता है कि इस रास्ते (इस ट्रायंगल के रास्ते) से सबसे पहले कोलंबस ही गुजरा था. कोलंबस ने इसका जिक्र अपनी किताब में भी किया है. उन्होंने इस ट्रायंगल का जिक्र करते हुए कहा है कि
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बरमूडा ट्रायंगल आखिर क्यों है डेविल ट्रायंगल ?
बरमूडा ट्रायंगल में आजतक इतनी अधिक घटनाएं हो चुकी हैं कि कई लोग इसे डेविल ट्राएंगल भी कहकर बुलाते हैं. इसे यह नाम सबसे पहले 1964 में विनसेंट गैडिज ने दिया था.
यहां से गुजरते ही होने लगती है अप्रिय घटनाएं
कहा जाता है कि इस इलाके में जाने के बाद कई तरह की अप्रिय घटना खुद-ब-खुद होने लगती हैं. जैसे कि कभी जहाज का इंजन अपने आप काम करना बंद कर देता है. जहाज खुद पानी के अंदर धंसने लगता है, अगर कोई पानी में तैरना चाहे तो उसे तैरने में दिक्कत होती है. यहां हुई सबसे बड़ी घटनाओं की अगर बात करें तो अगस्त 1942 में अमेरिकी नौसेना के जहाज इसी बरमूडा ट्राएंगल के ऊपर से लौट रहे थे, तभी अचानक उनका संपर्क रेडियो स्टेशन से टूट जाता है. और उनका नेविगेशन सिस्टम फेल हो जाता है. इस जहाज को ढूंढने जब रेस्क्यू टीम रवाना की गई तो उनका भी आज तक कुछ पता नहीं चल सका है.
इसी तरह 1942 में ही दिसंबर के महीने में जब अमेरिका का एक और लड़ाकू विमान इस ट्राएंगल के ऊपर से गुजरने की कोशिश करता है तो इसके साथ भी वही होता है जो पहले वाले जहाज के साथ हुआ था. इसका पायलट बताता है कि उसका नेविगेशन काम नहीं कर रहा है.
क्यों गायब हो जाते थे जहाज ?
बरमूडा ट्रायंगल के इतने खतरनाक होने और यहां से गुजरने वाले जहाजों के गायब होने के कारणों का पता लगाने के लिए कई शोध किए गए हैं. लेकिन किसी भी शोध में आज तक यह साफ नहीं हो पाया है कि इस ट्राएंगल में प्रवेश करते ही ऐसा कैसे और क्यों होता है. और जो जहाज आज तक यहां से गायब हुए हैं वो आखिर गए कहां ? हालांकि, कई अलग-अलग वैज्ञानिक इस ट्राएंगल को लेकर अलग-अलग तर्क देते हैं. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि जहाजों के साथ होने वाली अप्रिय घटना यहां मौसम में एकाएक हुए बदलाव की वजह से होता है.
पहले क्या इस वजह से होती थी ज्यादा घटनाएं ?
कुछ लोगों को कहना है कि पहले के मुकाबले अब बरमूडा ट्राएंगल में होने वाली घटनाओं की संख्या में काफी कम हुई है. इसकी एक वजह उन्नत तकनीक का इस्तेमाल भी है. तकनीक के इस्तेमाल से आज ऐसे रडार औऱ सोनार तैयार किए गए हैं जो यात्रा के दौरान समुद्री जहाजों को पानी के नीचे मौजूद खतरों के बारे पहले ही बता देते हैं. लेकिन आज से 50 साल से पहले उस समय के पानी के जहाजों के पास इस तरह का तकनीक नहीं था. ऐसे में मौसम में बदलाव से लेकर पानी के नीचे मौजूद बड़े पत्थर के खतरों के बारे में उन्हें पहले मालूम नहीं चल पाता था.
तो ये हैं बरमूडा ट्रायंगल में हादसों की कुछ प्रमुख वजहें ?
अलग-अलग समय पर विभिन्न वैज्ञानिकों ने बरमूडा ट्राएंगल से गुजरने वाले जहाजों के साथ हादसे की वजह को अलग-अलग बताया है. इन तमाम वैज्ञानिकों द्वारा दी गई थ्योरी को मिलाकर अगर ये आकंलन करने की कोशिश करें कि आखिर यहां होने वाली घटनाओं के पीछे की वजह क्या रही होगी तो हम दो से तीन निष्कर्ष पर पहुंचेंगे....
1- समुद्र के नीचे होने वाले ज्वालामुखी विस्फोट के कारण
वैज्ञानिकों की एक थ्योरी ये कहती है कि बरमूडा ट्राएंगल जिस जगह है वहां समय-समय पर ज्वालामुखी विस्फोट होते रहते हैं. ऐसे में समुद्र के नीचे जब ज्वालामुखी विस्फोट होता है इसकी वजह से धरती के अंदर से कई तरह की गैस बाहर निकलती है. इनमें मिथेन गैस भी शामिल है. ऐसे में ज्वालामुखी विस्फोट के बाद जब मिथेन गैस समुद्र के पानी से मिलता है तो वह समुद्र की डेंसिटी यानी उसके घनत्व को कम कर देता है. चुकी इन जहाजों को समुद्र की ज्यादा डेंसिटी के हिसाब से डिजाइन किया जाता है.
2- इस वजह से चलती हैं तेज हवाएं
इस ट्राएंगल के शोध के दौरान वैज्ञानिकों को पता चला कि बरमूडा के आसपास के इलाकों में छोटे-छोटे समुद्री पहाड़ हैं. अब ऐसे में जब हवाएं इन पहाड़ियों से टकराती हैं तो उनमें एक हलचल शुरू हो जाती है. औऱ ये देखते ही समुद्र के पानी के अंदर भी एक बड़ा सा चक्रवात बना देती हैं. और ये हवा बादलों औऱ समुद्र के पानी को एक बड़े लहर में तबदील कर देते हैं. ऐसे में अगर वहां से गुजर रहा कोई हवाई जहाज या पानी का जहाज इन लहरों की चपेट में आता है वो अपना संतुलन खो देता है. इस दौरान यहां हवा की गति भी काफी तेज पाई जाती है.
3- समुद्र के अंदर के चट्टानों के कारण भी होते हैं हादसे
बरमूडा ट्राएंगल के अंदर कई जगहों पर समुद्र के अंदर बड़े-बड़े चट्टान पाए जाते हैं. कई बार बड़े पानी के जहाज पानी के नीचे इन चट्टानों का अंदाजा नहीं लगा पाती हैं. इस वजह से कई बार इनसे टकराने से जहाज को बड़ी क्षति पहुंचती हैं और वो डूब सकते हैं. हालांकि, बीते कुछ समय से नई तकनीक के इस्तेमाल से इस तरह की घटनाओं में काफी कमी आई है.
विमानों पर भी पड़ता है इस वजह से असर
समुद्र के पास जब हवा का बड़ा बवंडर या चक्रवात बनता है तो इसका असर समुद्र के ठीक ऊपर वायुमंडल में भी देखने को मिलता है. कई बार चक्रवात की वजह से वायुमंडल में भी हवा इतनी तेज गति से चल रही होती है कि उस दौरान अगर उल्टी दिशा से आ रहा कोई विमान उसकी चपेट में आ जाए तो वो टूट भी सकता है. वहीं अगर विमान हवा की दिशा में ही जा रहा हो तो उसकी गति कई गुणा बढ़ जाता है.
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