तुर्की के नागिरक सेना की टुकड़ी के खिलाफ सड़कों पर उतर आए
शनिवार को तुर्की में 'तख्तापलट' की कोशिश नाकाम रही, लेकिन 24 घंटे से भी कम समय तक चले इस 'ड्रामे' ने सिर्फ यूरोप-एशिया के बीच की इस अहम कड़ी को ही नहीं, पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया। इस दौरान सेना की इस विरोधी टुकड़ी ने सबसे पहले इस्तांबुल में तुर्की के सरकारी टीवी स्टेशन टीआरटी वर्ल्ड पर कब्ज़ा जमाया। इस संस्था में करीब एक साल पहले भारत से इस्तांबुल गईं आकांक्षा सक्सेना भी बतौर एडिटर काम करती हैं। उनके मंगेतर सौरव भी यहीं कार्यरत हैं और उस रात सैन्य कब्ज़े के दौरान वह टीवी स्टेशन में मौजूद थे।
वह रात इस्तांबुल, अंकारा समेत पूरी तुर्की के लिए कितनी भयावह थी, इसका अंदाज़ा आकांक्षा की इस फेसबुक पोस्ट से लगाया जा सकता है जो उन्होंने रविवार को पोस्ट की थी। तख्तापलट की खबरें पढ़ना और उसे सामने होते देखने में काफी फर्क है और यही महसूस होता है आकांक्षा की इस पोस्ट से। नीचे पढ़िए उसका हिंदी अनुवाद -
'तुर्की में हमारी अब तक की जिंदगी का बेहद अहम पल था। कल शाम मैं सौरव के साथ डिनर करने के लिए ऑफिस गई थी। उस दिन मेरी छुट्टी थी और मैंने पहली बार चिकन करी बनाई थी, मैं चाहती थी कि सौरव इसे ट्राई करें। रात को करीब साढ़े 8 बजे जब मैं लौट रही थी, उस समय दफ्तर के बाहर कई पुलिसवाले खड़े थे (जाहिर है, इसका हमें बाद में पता चला कि दरअसल पुलिस के वेश में वह सेना की एक टुकड़ी थी)
हमें बताया गया कि यह एक सामान्य ड्रिल है जो सुनने में अजीब तो लगा, लेकिन हमने यकीन कर लिया। मैं घर पहुंची, लेकिन मैंने देखा कि हमारे ठिकाने के पास यूरोप और एशिया को कनेक्ट करती बोसपोरस नदी के ऊपर चॉपर की तादाद बढ़ गई है। काफी शोर था, लेकिन किसी तरह की गड़बड़ी जैसा कुछ नहीं लग रहा था।
घर लौटकर मैं ट्विटर को खंगाल रही थी कि अंकारा में F16 विमानों के काफी कम ऊंचाई पर उड़ने की खबर दिखी। मैं ज़रा ठिठक गई...मैंने ट्विटर को और खंगाला। लगा कुछ तो गड़बड़ चल रही है। दो बातें हो सकती हैं - या तो कोई आतंकवादी हमला या फिर तख़्तापलट!!
रात साढ़े दस बजे मैंने सौरव को कॉल किया, लेकिन उसने फोन नहीं उठाया। मैंने फिर ट्राई किया। उसने फोन उठाया, कहा 'अभी नहीं' और रख दिया। इसके बाद उसका फोन पहुंच से बाहर हो गया।
अब तक ट्विटर पर खबर आ चुकी थी कि टीआरटी दफ्तर में सेना घुस आई है। मैं डर गई...सौरव वहीं हैं। शुक्र है सौरव ने थोड़ी ही देर में अपनी खैरियत का एक मैसेज भेज दिया। मैंने राहत की सांस ली। उसने यह भी लिखा कि सेना आई थी, हमें बाहर धकेला, हमारे फोन छीन लिए, डराया, धमकाया और वहां से चले जाने के लिए कहा। तब तक सौरव एक साथी के घर पर पहुंच चुका था और सुरक्षित था। उसने लिखा कि वह घर नहीं आ सकता, क्योंकि सड़कों पर ‘टैंक’ चल रहे हैं। मेरे होश उड़ गए??
इसके बाद मैंने जो देखा उसे मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी। एक टैंक ने बोसपोरस पुल के एक तरफ के रास्ते को ब्लॉक कर दिया था। मैं अपनी बालकनी से यह सब देख रही थी। एक बड़ा सा टैंक...रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे।
काफी तेज़ आवाज़ में F16 मेरे घर के ऊपर से निकला और हमारी ऑफिस की बिल्डिंग की तरफ गया। मैंने F16 को इतने नीचे उड़ान भरते कभी नहीं देखा था। मैंने जल्दी से अपने मम्मी-पापा को फोन किया, उन्हें बताया कि हो सकता है मेरा फोन न लग पाए, क्योंकि आगे मामला गड़बड़ होता लग रहा है। इस्तांबुल की सड़कें कुछ और ही कहानी बयां कर रही थीं। हो सकता है ब्लैकआउट हो जाए।
धीरे-धीरे परतें और खुलने लगीं-
मीडिया के 'लोकतंत्र बचाओ' के संदेश, एर्दोग़ान का फेसटाइम मैसेज, संसद पर हमला, मीडिया का कभी तख्तापलट की कोशिश को सफल बताना, फिर नाकाम, फिर सफल बताना। लेकिन इन सबके लिए जिम्मेदार कौन है - यह अभी तक साफ नहीं हुआ था।
रात बारह बजे गोलियों की आवाज़ और तेज़ी से आने लगीं। चॉपर्स आसमान में चक्कर लगा रहे थे। मैं ट्विटर से मानो चिपकी हुई थी। साफ नहीं हो रहा था कि इस साज़िश को अंजाम में लाने वाले किस तरफ बढ़ रहे थे।
सुबह 2:45 बजे- एक तेज़ धमाके ने ब्रिज को जैसे हिला दिया। सन्नाटा पसर गया..दर्दनाक सन्नाटा। इसके बाद अज़ान देने वाले मुअज्जिनों ने कुछ गाना शुरू कर दिया, वे सबकुछ कह रहे थे, लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा था। तुर्किश दोस्तों ने हमें बताया कि वह जनता से सड़कों पर आकर विरोधियों के खिलाफ खड़े होने की अपील कर रहे थे। मैं काफी डर चुकी थी, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है। क्या यह नागरिक बनाम सेना के बीच की लड़ाई है?
बंदूक और टैंकों से गोलियां बरसाई जा रहीं थीं। नारे लग रहे थे। बाइक पर सवार लोग तुर्की के झंडे लहरा रहे थे। सायरन की आवाज़ें। मुअज्जिन की अपील। फिर सायरन और गोलियों की आवाज़ें।
सुबह 3:50 बजे – मैंने अपना पासपोर्ट और वॉलेट अपने पास रख लिया और मैं आंखें बंद करके लेट गई। सारी लाइटें बंद थीं। चॉपर अभी भी मेरी छत के ऊपर चक्कर लगा रहा था। एक और ज़ोरदार धमाका हुआ, इतना बड़ा कि उसने मेरे पूरे घर को हिला दिया। धमाका इतना तेज़ था कि कार के सायरन और कांच टूटने की आवाज़ें मेरे कानों में गूंजने लगी थी। यह तेज़ धमाका हमारी ऑफिस बिल्डिंग के पास हुआ था जिसने मुझे भीतर तक हिला दिया था, दिमाग एकदम सन्न हो चुका था।
नारे और शोर की आवाज़ें बढ़ती जा रहीं थीं और ऐसा लग रहा था कि एक पक्ष जीत की तरफ बढ़ता जा रहा है। यह लोगों की जीत थी। मैंने ट्विटर पर देखा कि यहां के नागरिकों ने किस तरह अद्भुत साहस का परिचय दिया। मुझे ब्रिज पर भीड़ दिखाई दे रही थी। धीरे-धीरे मुझे यह एहसास होने लगा कि विरोधियों की कोशिश नाकाम होती जा रही है।
सुबह 4:25 बजे – चॉपर अभी भी चक्कर लगा रहे थे। मैंने अपनी आंखें बंद कर ली। मम्मी-पापा ने फिर फोन किया। मैं बेहतर महसूस कर रही थी और सौरव की सलामती की दुआ कर रही थी।
सुबह 04:35 बजे – एक और धमाका और गोलियों की आवाज़ें
सुबह 04:45 – मैं बाथरूम में हूं और फिर धमाके जैसा लगता है। सबकुछ हिल रहा है। मेरे कानों को फाड़ देने वाली आवाज़ें। अकेले रहना कितना डरावना हो सकता है।
सबेरा हो रहा है – गोलियों और चिड़ियों की आवाज़ें साथ-साथ।
सुबह – दोस्तों के फोन आने शुरू हो गए। अच्छा लगा कि उन्हें हमारा ख्याल है, उन्होंने हमें दुआओं में याद रखा।
दोपहर 3:30 बजे, अभी चौबीस घंटे भी नहीं बीते थे – सौरव घर आ गया और एक बार फिर ऑफिस जाने की तैयारी कर रहा है। लौटने के बाद से वह मुझे तुर्की के लोगों की बहादुरी के असाधारण किस्से बयां कर रहा है जो वैचारिक मतभेदों के बावजूद तख्तापलट की इस कोशिश को नाकाम करने के लिए एक साथ खड़े थे। इस देश के लिए मेरा प्यार और बढ़ गया है। इसके साथ ही मैं इतिहास के एक ऐसे पल का हिस्सा बन गई, जिसके बारे में सोचकर ही मेरे रोंगेटे खड़े हो जाएंगे।
अब सबकुछ शांत और सुकूनभरा है। हम सलामत हैं।'
वह रात इस्तांबुल, अंकारा समेत पूरी तुर्की के लिए कितनी भयावह थी, इसका अंदाज़ा आकांक्षा की इस फेसबुक पोस्ट से लगाया जा सकता है जो उन्होंने रविवार को पोस्ट की थी। तख्तापलट की खबरें पढ़ना और उसे सामने होते देखने में काफी फर्क है और यही महसूस होता है आकांक्षा की इस पोस्ट से। नीचे पढ़िए उसका हिंदी अनुवाद -
'तुर्की में हमारी अब तक की जिंदगी का बेहद अहम पल था। कल शाम मैं सौरव के साथ डिनर करने के लिए ऑफिस गई थी। उस दिन मेरी छुट्टी थी और मैंने पहली बार चिकन करी बनाई थी, मैं चाहती थी कि सौरव इसे ट्राई करें। रात को करीब साढ़े 8 बजे जब मैं लौट रही थी, उस समय दफ्तर के बाहर कई पुलिसवाले खड़े थे (जाहिर है, इसका हमें बाद में पता चला कि दरअसल पुलिस के वेश में वह सेना की एक टुकड़ी थी)
हमें बताया गया कि यह एक सामान्य ड्रिल है जो सुनने में अजीब तो लगा, लेकिन हमने यकीन कर लिया। मैं घर पहुंची, लेकिन मैंने देखा कि हमारे ठिकाने के पास यूरोप और एशिया को कनेक्ट करती बोसपोरस नदी के ऊपर चॉपर की तादाद बढ़ गई है। काफी शोर था, लेकिन किसी तरह की गड़बड़ी जैसा कुछ नहीं लग रहा था।
घर लौटकर मैं ट्विटर को खंगाल रही थी कि अंकारा में F16 विमानों के काफी कम ऊंचाई पर उड़ने की खबर दिखी। मैं ज़रा ठिठक गई...मैंने ट्विटर को और खंगाला। लगा कुछ तो गड़बड़ चल रही है। दो बातें हो सकती हैं - या तो कोई आतंकवादी हमला या फिर तख़्तापलट!!
रात साढ़े दस बजे मैंने सौरव को कॉल किया, लेकिन उसने फोन नहीं उठाया। मैंने फिर ट्राई किया। उसने फोन उठाया, कहा 'अभी नहीं' और रख दिया। इसके बाद उसका फोन पहुंच से बाहर हो गया।
अब तक ट्विटर पर खबर आ चुकी थी कि टीआरटी दफ्तर में सेना घुस आई है। मैं डर गई...सौरव वहीं हैं। शुक्र है सौरव ने थोड़ी ही देर में अपनी खैरियत का एक मैसेज भेज दिया। मैंने राहत की सांस ली। उसने यह भी लिखा कि सेना आई थी, हमें बाहर धकेला, हमारे फोन छीन लिए, डराया, धमकाया और वहां से चले जाने के लिए कहा। तब तक सौरव एक साथी के घर पर पहुंच चुका था और सुरक्षित था। उसने लिखा कि वह घर नहीं आ सकता, क्योंकि सड़कों पर ‘टैंक’ चल रहे हैं। मेरे होश उड़ गए??
इसके बाद मैंने जो देखा उसे मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी। एक टैंक ने बोसपोरस पुल के एक तरफ के रास्ते को ब्लॉक कर दिया था। मैं अपनी बालकनी से यह सब देख रही थी। एक बड़ा सा टैंक...रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे।
काफी तेज़ आवाज़ में F16 मेरे घर के ऊपर से निकला और हमारी ऑफिस की बिल्डिंग की तरफ गया। मैंने F16 को इतने नीचे उड़ान भरते कभी नहीं देखा था। मैंने जल्दी से अपने मम्मी-पापा को फोन किया, उन्हें बताया कि हो सकता है मेरा फोन न लग पाए, क्योंकि आगे मामला गड़बड़ होता लग रहा है। इस्तांबुल की सड़कें कुछ और ही कहानी बयां कर रही थीं। हो सकता है ब्लैकआउट हो जाए।
धीरे-धीरे परतें और खुलने लगीं-
मीडिया के 'लोकतंत्र बचाओ' के संदेश, एर्दोग़ान का फेसटाइम मैसेज, संसद पर हमला, मीडिया का कभी तख्तापलट की कोशिश को सफल बताना, फिर नाकाम, फिर सफल बताना। लेकिन इन सबके लिए जिम्मेदार कौन है - यह अभी तक साफ नहीं हुआ था।
रात बारह बजे गोलियों की आवाज़ और तेज़ी से आने लगीं। चॉपर्स आसमान में चक्कर लगा रहे थे। मैं ट्विटर से मानो चिपकी हुई थी। साफ नहीं हो रहा था कि इस साज़िश को अंजाम में लाने वाले किस तरफ बढ़ रहे थे।
सुबह 2:45 बजे- एक तेज़ धमाके ने ब्रिज को जैसे हिला दिया। सन्नाटा पसर गया..दर्दनाक सन्नाटा। इसके बाद अज़ान देने वाले मुअज्जिनों ने कुछ गाना शुरू कर दिया, वे सबकुछ कह रहे थे, लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा था। तुर्किश दोस्तों ने हमें बताया कि वह जनता से सड़कों पर आकर विरोधियों के खिलाफ खड़े होने की अपील कर रहे थे। मैं काफी डर चुकी थी, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है। क्या यह नागरिक बनाम सेना के बीच की लड़ाई है?
बंदूक और टैंकों से गोलियां बरसाई जा रहीं थीं। नारे लग रहे थे। बाइक पर सवार लोग तुर्की के झंडे लहरा रहे थे। सायरन की आवाज़ें। मुअज्जिन की अपील। फिर सायरन और गोलियों की आवाज़ें।
सुबह 3:50 बजे – मैंने अपना पासपोर्ट और वॉलेट अपने पास रख लिया और मैं आंखें बंद करके लेट गई। सारी लाइटें बंद थीं। चॉपर अभी भी मेरी छत के ऊपर चक्कर लगा रहा था। एक और ज़ोरदार धमाका हुआ, इतना बड़ा कि उसने मेरे पूरे घर को हिला दिया। धमाका इतना तेज़ था कि कार के सायरन और कांच टूटने की आवाज़ें मेरे कानों में गूंजने लगी थी। यह तेज़ धमाका हमारी ऑफिस बिल्डिंग के पास हुआ था जिसने मुझे भीतर तक हिला दिया था, दिमाग एकदम सन्न हो चुका था।
नारे और शोर की आवाज़ें बढ़ती जा रहीं थीं और ऐसा लग रहा था कि एक पक्ष जीत की तरफ बढ़ता जा रहा है। यह लोगों की जीत थी। मैंने ट्विटर पर देखा कि यहां के नागरिकों ने किस तरह अद्भुत साहस का परिचय दिया। मुझे ब्रिज पर भीड़ दिखाई दे रही थी। धीरे-धीरे मुझे यह एहसास होने लगा कि विरोधियों की कोशिश नाकाम होती जा रही है।
सुबह 4:25 बजे – चॉपर अभी भी चक्कर लगा रहे थे। मैंने अपनी आंखें बंद कर ली। मम्मी-पापा ने फिर फोन किया। मैं बेहतर महसूस कर रही थी और सौरव की सलामती की दुआ कर रही थी।
सुबह 04:35 बजे – एक और धमाका और गोलियों की आवाज़ें
सुबह 04:45 – मैं बाथरूम में हूं और फिर धमाके जैसा लगता है। सबकुछ हिल रहा है। मेरे कानों को फाड़ देने वाली आवाज़ें। अकेले रहना कितना डरावना हो सकता है।
सबेरा हो रहा है – गोलियों और चिड़ियों की आवाज़ें साथ-साथ।
सुबह – दोस्तों के फोन आने शुरू हो गए। अच्छा लगा कि उन्हें हमारा ख्याल है, उन्होंने हमें दुआओं में याद रखा।
दोपहर 3:30 बजे, अभी चौबीस घंटे भी नहीं बीते थे – सौरव घर आ गया और एक बार फिर ऑफिस जाने की तैयारी कर रहा है। लौटने के बाद से वह मुझे तुर्की के लोगों की बहादुरी के असाधारण किस्से बयां कर रहा है जो वैचारिक मतभेदों के बावजूद तख्तापलट की इस कोशिश को नाकाम करने के लिए एक साथ खड़े थे। इस देश के लिए मेरा प्यार और बढ़ गया है। इसके साथ ही मैं इतिहास के एक ऐसे पल का हिस्सा बन गई, जिसके बारे में सोचकर ही मेरे रोंगेटे खड़े हो जाएंगे।
अब सबकुछ शांत और सुकूनभरा है। हम सलामत हैं।'
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