लंदन:
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जेएनयू छात्र संघ के नेता कन्हैया कुमार और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व लेक्चरार एसएआर गिलानी की रिहाई की मांग की है। एमनेस्टी ने दिल्ली पुलिस से इन दोनों के खिलाफ लगाए गए राष्ट्रद्रोह के आरोपों को वापस लेने का आह्वान किया। इसके साथ ही कहा कि सरकार और पुलिस 'असहमति के प्रति घोर असहिष्णुता' दिखा रही है।
एमनेस्टी ने कहा है कि पुलिस को पत्रकारों, छात्रों और अध्यापकों पर हुए कई हमलों की भी जांच करनी चाहिए, जिन्हें कन्हैया कुमार के मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली की अदालत में 15 फरवरी को वकीलों ने पीटा। इसने साथ ही कहा है कि कई प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि बार-बार अपील किए जाने के बावजूद पुलिसकर्मियों ने हस्तक्षेप नहीं किया।
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की कार्यक्रम निदेशक तारा राव ने कहा, 'अदालत परिसरों के भीतर हिंसक हमलों से लोगों को बचाने में पुलिस की विफलता रहस्यमयी है। भारत के प्रधानमंत्री देश और विदेश में बार-बार कह चुके हैं कि उनकी सरकार कानून के शासन के प्रति प्रतिबद्ध है। इन वादों से खोखलेपन की आवाज तेज हो रही है।'
राव ने कहा, 'औपनिवेशकाल के एक कानून के तहत एक छात्र की गिरफ्तारी से लेकर अदालतों के भीतर हमलों को रोकने में नाकाम रहकर, दिल्ली पुलिस ने हाल के दिनों में संवैधानिक रूप से प्रदत्त अधिकारों के प्रति असम्मान दिखाया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति यह स्पष्ट तिरस्कार भ्रमित और खतरनाक है।'
एमनेस्टी ने कहा है कि पुलिस को पत्रकारों, छात्रों और अध्यापकों पर हुए कई हमलों की भी जांच करनी चाहिए, जिन्हें कन्हैया कुमार के मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली की अदालत में 15 फरवरी को वकीलों ने पीटा। इसने साथ ही कहा है कि कई प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि बार-बार अपील किए जाने के बावजूद पुलिसकर्मियों ने हस्तक्षेप नहीं किया।
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की कार्यक्रम निदेशक तारा राव ने कहा, 'अदालत परिसरों के भीतर हिंसक हमलों से लोगों को बचाने में पुलिस की विफलता रहस्यमयी है। भारत के प्रधानमंत्री देश और विदेश में बार-बार कह चुके हैं कि उनकी सरकार कानून के शासन के प्रति प्रतिबद्ध है। इन वादों से खोखलेपन की आवाज तेज हो रही है।'
राव ने कहा, 'औपनिवेशकाल के एक कानून के तहत एक छात्र की गिरफ्तारी से लेकर अदालतों के भीतर हमलों को रोकने में नाकाम रहकर, दिल्ली पुलिस ने हाल के दिनों में संवैधानिक रूप से प्रदत्त अधिकारों के प्रति असम्मान दिखाया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति यह स्पष्ट तिरस्कार भ्रमित और खतरनाक है।'
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