एमिटी का जून 2017 में अमेरिका में अपनी पहली शाखा खोलने का इरादा है (फाइल फोटो)
न्यूयॉर्क:
भारत के सबसे बड़े कॉलेजों में से एक एमिटी यूनिवर्सिटी अब अपने पैर अमेरिका में भी पसार रहा है जहां न्यूयॉर्क में उसने एक कैंपस भी खरीद लिया है. यही नहीं, इस यूनिवर्सिटी का इरादा दो और कैंपस खरीदने का भी है. हालांकि इसके लिए एमिटी को अमेरिकी अधिकारियों से काफी आलोचना झेलनी पड़ रही है जिन्हें चिंता है कि इस कॉलेज के आने से शिक्षा का स्तर क्या रह जाएगा. बता दें कि कई अमेरिकी कॉलेजों ने दुनिया भर में अपने कैंपस स्थापित किए हैं लेकिन ऐसे कम ही विदेशी स्कूल हैं जो अमेरिका में अपनी शाखा खोल पाए हैं. इसकी एक वजह यूएस में लगने वाली लागत और कड़े नियम हैं.
2003 में दिल्ली से शुरूआत करने वाले निजी कॉलेजों की एक श्रृंखला एमिटी यूनिवर्सिटी ने अमेरिकी से पहले आठ और देशों में कैंपस खोल रखा है. इसमें इंग्लैंड, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल है. एमिटी ने पिछले महीने दो करोड़ बीस लाख डॉलर की रकम पर न्यूयॉर्क सिटी के सेंट जॉन यूनिवर्सिटी की लॉन्ग आयलैंड ब्रांच खरीद ली. जून 2017 में एमिटी को इसका मालिकाना हक़ मिल जाएगा जिसके बाद वह 170 एकड़ के इस सौ साल पुराने कैंपस में अपनी पहली अमेरिकी शाखा खोलेगा.
यही नहीं मैसाचुसेट्स में दायर किए गए दस्तावेंज़ों के मुताबिक एमिटी ने न्यू इंग्लैंड इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट और उससे संबंधित एक और स्कूल दी आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूयॉर्क सिटी को भी खरीदने का करार कर लिया है. लेकिन इस डील को तभी अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है जब अमेरिकी राज्य के शिक्षा अधिकारी इस पर हामी भरें. मैसाचुसेट्स के एटर्नी जनरल मौरा हेली की मांग है कि इस बिक्री पर रोक लगा दी जाए. उनका कहना है 'हमें इस पर बहुत बहुत ज्यादा संदेह है. हमें समझ नहीं आ रहा कि एक बाहर सी आई हुई यह संस्था जिसने आज से पहले कभी भी इस देश में शिक्षा से संबंधित कोई काम नहीं किया, वह कैसे यहां के छात्रों को अच्छी शिक्षा मुहैया करवा पाएगी.'
एक गैर लाभकारी कंपनी द्वारा संचालित यह चैन अलग अलग क्षेत्रों में स्नातक डिग्रीयां उपलब्ध करवाती है. इसके एक दर्जन से ज्यादा कैंपस हैं जिसमें सवा लाख से ज्यादा छात्र भर्ती हैं और भारत में उच्च शिक्षा की बढ़ती मांग के साथ यह तेज़ी से अपने पैर पसार रही है.
एमिटी के चांसलर असीम चौहान का कहना है कि 'शिक्षा को लेकर हमारा एक वैश्विक नज़रिया है, शिक्षा का एक ऐसा ढांचा जो छात्रों को गतिशीलता दे, फैक्लटी और रिसर्च में सहयोग को बढ़ाए.' इस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष अशोक चौहान पर 90 के दशक में जर्मनी ने धोखाधड़ी का आरोप लगा था जहां वह कंपनियों का एक नेटवर्क चलाया करते थे. उसके बाद वह भारत लौट आए और फिर कभी उनका प्रत्यर्पण नहीं हुआ. यही नहीं, अमेरिकी की एक प्लास्टिक कंपनी ने भी 1995 में 2 करोड़ डॉलर की कर्ज़ अदायगी का एक मामला चौहान पर चलाया था जो अभी तक भारत की कोर्ट में जारी है. इस वक्त यूनिवर्सिटी को चौहान के बेटे असीम और अतुल चौहान चला रहे हैं.
अमेरिका में कुछ जानकारों का कहना कै कि यह स्कूल चार साल के कोर्स करवाने वाली पारंपरिक यूनिवर्सिटी से अलग लाभ के लिए चलने वाले निजी कॉलेज जैसा है. अमेरिका की कॉलेज और यूनिवर्सिटी से संबंधित एसोसिएशन के निदेशक बरमक नसीरियन का कहना है कि 'यह तो कंपनियों के समूह की एक सहायक कंपनी है. मुझसे पूछे तो यह बिल्कुल भी राहत देने वाली बात नहीं है.' वहीं असीम चौहान का दावा है कि बच्चों की सफलता को लेकर एमिटी का ट्रैक रिकॉर्ड 'शानदार और बेमिसाल' रहा है. हालांकि अपनी बात को साबित करने के लिए आंकड़े दिखाने से उन्होंने इंकार कर दिया.
यह कहना गलत नहीं होगा कि अनुमति मिलने के बावजूद एमिटी के लिए अमेरिका में राह आसान नहीं होने वाली है. डिग्री देने के लिए उसे अमेरिकी मान्यता लेनी होगी जो कि आसान काम नहीं है. साथ ही छात्रों को सरकार की ओर से आर्थिक मदद मुहैया करवाने के लिए एमिटी को अमेरिका का शिक्षा विभाग परखेगा.
2003 में दिल्ली से शुरूआत करने वाले निजी कॉलेजों की एक श्रृंखला एमिटी यूनिवर्सिटी ने अमेरिकी से पहले आठ और देशों में कैंपस खोल रखा है. इसमें इंग्लैंड, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल है. एमिटी ने पिछले महीने दो करोड़ बीस लाख डॉलर की रकम पर न्यूयॉर्क सिटी के सेंट जॉन यूनिवर्सिटी की लॉन्ग आयलैंड ब्रांच खरीद ली. जून 2017 में एमिटी को इसका मालिकाना हक़ मिल जाएगा जिसके बाद वह 170 एकड़ के इस सौ साल पुराने कैंपस में अपनी पहली अमेरिकी शाखा खोलेगा.
यही नहीं मैसाचुसेट्स में दायर किए गए दस्तावेंज़ों के मुताबिक एमिटी ने न्यू इंग्लैंड इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट और उससे संबंधित एक और स्कूल दी आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूयॉर्क सिटी को भी खरीदने का करार कर लिया है. लेकिन इस डील को तभी अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है जब अमेरिकी राज्य के शिक्षा अधिकारी इस पर हामी भरें. मैसाचुसेट्स के एटर्नी जनरल मौरा हेली की मांग है कि इस बिक्री पर रोक लगा दी जाए. उनका कहना है 'हमें इस पर बहुत बहुत ज्यादा संदेह है. हमें समझ नहीं आ रहा कि एक बाहर सी आई हुई यह संस्था जिसने आज से पहले कभी भी इस देश में शिक्षा से संबंधित कोई काम नहीं किया, वह कैसे यहां के छात्रों को अच्छी शिक्षा मुहैया करवा पाएगी.'
एमिटी के संस्थापक अध्यक्ष अशोक चौहान
एक गैर लाभकारी कंपनी द्वारा संचालित यह चैन अलग अलग क्षेत्रों में स्नातक डिग्रीयां उपलब्ध करवाती है. इसके एक दर्जन से ज्यादा कैंपस हैं जिसमें सवा लाख से ज्यादा छात्र भर्ती हैं और भारत में उच्च शिक्षा की बढ़ती मांग के साथ यह तेज़ी से अपने पैर पसार रही है.
एमिटी के चांसलर असीम चौहान का कहना है कि 'शिक्षा को लेकर हमारा एक वैश्विक नज़रिया है, शिक्षा का एक ऐसा ढांचा जो छात्रों को गतिशीलता दे, फैक्लटी और रिसर्च में सहयोग को बढ़ाए.' इस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष अशोक चौहान पर 90 के दशक में जर्मनी ने धोखाधड़ी का आरोप लगा था जहां वह कंपनियों का एक नेटवर्क चलाया करते थे. उसके बाद वह भारत लौट आए और फिर कभी उनका प्रत्यर्पण नहीं हुआ. यही नहीं, अमेरिकी की एक प्लास्टिक कंपनी ने भी 1995 में 2 करोड़ डॉलर की कर्ज़ अदायगी का एक मामला चौहान पर चलाया था जो अभी तक भारत की कोर्ट में जारी है. इस वक्त यूनिवर्सिटी को चौहान के बेटे असीम और अतुल चौहान चला रहे हैं.
अमेरिका में कुछ जानकारों का कहना कै कि यह स्कूल चार साल के कोर्स करवाने वाली पारंपरिक यूनिवर्सिटी से अलग लाभ के लिए चलने वाले निजी कॉलेज जैसा है. अमेरिका की कॉलेज और यूनिवर्सिटी से संबंधित एसोसिएशन के निदेशक बरमक नसीरियन का कहना है कि 'यह तो कंपनियों के समूह की एक सहायक कंपनी है. मुझसे पूछे तो यह बिल्कुल भी राहत देने वाली बात नहीं है.' वहीं असीम चौहान का दावा है कि बच्चों की सफलता को लेकर एमिटी का ट्रैक रिकॉर्ड 'शानदार और बेमिसाल' रहा है. हालांकि अपनी बात को साबित करने के लिए आंकड़े दिखाने से उन्होंने इंकार कर दिया.
यह कहना गलत नहीं होगा कि अनुमति मिलने के बावजूद एमिटी के लिए अमेरिका में राह आसान नहीं होने वाली है. डिग्री देने के लिए उसे अमेरिकी मान्यता लेनी होगी जो कि आसान काम नहीं है. साथ ही छात्रों को सरकार की ओर से आर्थिक मदद मुहैया करवाने के लिए एमिटी को अमेरिका का शिक्षा विभाग परखेगा.
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