अमेरिका ने गुरुवार को नए क्लाइमेट एक्शन प्लान का ऐलान किया. इसमें 2035 तक कार्बन उत्सर्जन को 2005 के स्तर से 61-66 प्रतिशत कम करने का टारगेट रखा गया है. अमेरिका दुनिया में ग्रीन हाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक है. नए क्लाइमेट एक्शन प्लान से ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन पर बड़ा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है.
बाइडेन प्रशासन ने इस महत्वाकांक्षी क्लाइमेट एक्शन प्लान की शुरुआत की. नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पेरिस समझौते से अमेरिका को बाहर निकालने का इरादा जताते रहे हैं. पेरिस समझौता क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए ग्लोबल डील है.
अगर ट्रंप इस पर अमल करते हैं, तो इसका मतलब यह होगा कि वह राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के तहत किसी भी प्रतिबद्धता से पीछे हट जायेंगे.
विकासशील और गरीब देशों ने COP29 में नए जलवायु वित्त समझौते को न चाहते हुए भी स्वीकार कर लिया था, क्योंकि उन्हें ऐसी आशंका थी कि अगर चर्चा अगले वर्ष ब्राजील में होने वाले सीओपी30 तक टाल दी गई तो परिणाम और भी खराब हो सकते हैं.
एक पूर्व भारतीय वार्ताकार ने बताया, ‘‘कई देश इस निर्णय को टालना चाहते थे. लेकिन उन्हें चिंता थी कि अगले दौर की वार्ता और भी कठिन होगी, खासकर तब जब ट्रंप के शासन में अमेरिका के पीछे हटने का अनुमान है.''
अमेरिकी विशेष जलवायु दूत जॉन पोडेस्टा ने संवाददाता सम्मेलन में राजनीतिक चुनौतियों के बावजूद लक्ष्य को पूरा करने की देश की क्षमता पर विश्वास व्यक्त किया.
उन्होंने कहा, ‘‘बाइडेन-हैरिस प्रशासन भले ही अपना कार्यकाल समाप्त करने वाला हो, लेकिन हमें इस नए जलवायु लक्ष्य को प्राप्त करने के संबंध में अमेरिका की क्षमता पर पूरा भरोसा है.''
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