Arrow 3 : हमास से जंग में इजरायल ने पहली बार किया इस्तेमाल, अमेरिका के साथ मिलकर बनाया है ये हथियार

इजरायल ने अपने दुश्मनों से बचने के लिए ऐसा एयर डिफेंस ढाल तैयार किया है कि लंबी दूरी के लिए ऐरो 3 तो कम दूरी के लिए आयरन डॉम को भेदना किसी के लिए आसान नहीं होगा.

Arrow 3 : हमास से जंग में इजरायल ने पहली बार किया इस्तेमाल, अमेरिका के साथ मिलकर बनाया है ये हथियार

नई दिल्ली:

हमास के साथ युद्ध में इजरायल ने पहली बार एक नए हथियार का प्रयोग किया है. इसे अमेरिका और इजरायल ने मिलकर बनाया है. इस हथियार का नाम ऐरो 3 है. ये  इंटरसेप्टर हाइपर सोनिक बैलिस्टिक मिसाइल है. इजरायल ने यमन में हूती विद्रोहियों की ओर से दागी गई बैलिस्टिक मिसाइल को विफल किया है.  

ऐरो 3, ऐरो 2 से अधिक ऊंचाई और तेजी से काम करता है. इसका प्रिंसिपल है ट्रैक और हिट टू किल. इसे खासतौर से बैलिस्टिक मिसाइल को मार गिराने के लिए डिजाइन किया गया है. 90 डिग्री ऊपर प्रक्षेपण करे तो ये 100 किलोमीटर टारगेट को हिट कर सकता है.

इसका रेंज 2400 किलोमीटर तक है. लंबी दूरी के मिसाइल में अगर रासायनिक, जैविक और परमाणु हमला करे तो उसे भी ये डाइवर्ट कर सकता है.

वहीं अगर कोई दुश्मन देश इजरायल पर लंबी दूरी के मिसाइल से हमला करता है तो अब वो दस बार सोचेगा. 

इजरायल ने अपने दुश्मनों से बचने के लिए ऐसा एयर डिफेंस ढाल तैयार किया है कि लंबी दूरी के लिए ऐरो 3 तो कम दूरी के लिए आयरन डॉम को भेदना किसी के लिए आसान नहीं होगा.

बता दें कि इजराइल पर सात अक्टूबर को अचानक किए गए हमास के भयावह हमले के बाद गाजा को लेकर दुनिया के देशों में विभाजन गहरा हो गया है. हमास ने सात अक्टूबर को इजराइली भूभाग में घुसकर बड़ी संख्या में लोगों को मार डाला और 200 से अधिक लोगों को बंधक बना लिया. इस हमले को लेकर इजराइल हक्का-बक्का हो गया. साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी स्तब्ध रह गया.

कई पश्चिमी देशों ने इजराइल का समर्थन किया. इजराइल की जवाबी कार्रवाई में गाजा से दस लाख से अधिक नागरिक विस्थापित हो गए, क्षेत्र की घेराबंदी की गई और बिजली, पानी की आपूर्ति बंद करने के साथ-साथ मानवीय सहायता भी रोक दी गई. रूस और चीन ने अपने बयानों में संतुलन बनाने की कोशिश की, जिसमें इजराइल की प्रतिक्रिया की आलोचना शामिल थी.

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संयुक्त राष्ट्र ने की संघर्ष रोकने की कोशिश
इजराइल और हमास के बीच युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को लड़ाई रोकने के लिए आम सहमति तक पहुंचने में संघर्ष करना पड़ा. एक तरफ अमेरिका और दूसरी तरफ रूस और कभी-कभी चीन के वीटो के कारण प्रस्तावों का मसौदा तैयार करने के चार प्रयास विफल रहे.