जेद्दा (सऊदी अरब):
सऊदी अरब के मौलानाओं (धर्मगुरुओं) की घनी दाढ़ी के बारे में माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर लिखते वक्त सोआद अल-शैमरी ने सोचा भी नहीं था कि उसके विचार उसे जेलयात्रा करवा सकते हैं, लेकिन हुआ वही...
महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाली तलाकशुदा 42-वर्षीय सोआद अल-शैमरी ने दाढ़ी रखने वाले कई पुरुषों की तस्वीरें पोस्ट कीं, जिनमें एक परम्परावादी यहूदी, एक हिप्पी, एक कम्युनिस्ट, एक तुर्की खलीफ़ा, एक सिख तथा एक मुस्लिम था... सोआद अल-शैमरी ने इन तस्वीरों के साथ लिखा कि सिर्फ दाढ़ी रख लेने से कोई व्यक्ति पवित्र या मुस्लिम नहीं हो जाता... उसने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि पैगंबर मोहम्मद के समय में इस्लाम के सबसे कट्टर आलोचकों में से एक की दाढ़ी पैगंबर से भी लंबी थी...
इस्लामिक कानून में स्नातक की डिग्री हासिल कर चुकी छह बच्चों की मां सोआद अल-शैमरी के लिए इस तरह की बेबाक टिप्पणियां करना कोई नई बात नहीं है... एक बड़े कबीले के धर्मपरायण परिवार में जन्मी सोआद बचपन में भले ही भेड़ें चराती रहीं, लेकिन अब वह महिला अधिकारों की मांग करने वाली उदारवादी कार्यकर्ता हैं, और अक्सर इस्लाम को लेकर दिए अपने तर्कों से सऊदी अरब की शक्तिशाली धार्मिक सत्ता को चुनौती देती रहती हैं...
अपने विचारों की सोआद को कीमत भी चुकानी पड़ी है... वह 'जनभावनाओं को भड़काने के लिए' बिना किसी औपचारिक आरोप के तीन महीने जेल में बिता चुकी हैं... सरकार उनकी विदेश यात्राओं पर पाबंदी लगा चुकी है... उनके ऑनलाइन फोरम 'फ्री सऊदी लिबरल्स नेटवर्क' के सह-संस्थापक और ब्लॉगर रैफ बदावी 10 साल कैद की सज़ा काट रहे हैं, और उन्हें सार्वजनिक रूप से 50 कोड़े भी लगाए गए थे... सोआद के पिता सार्वजनिक रूप से उन्हें बेटी स्वीकार करने से इंकार कर चुके हैं...
लेकिन इतना सब भी सोआद अल-शैमरी की आवाज़ को दबाने के लिए काफी नहीं था...
सोआद अल-शैमरी कहती हैं, "मेरे पास कुछ अधिकार हैं, जो मेरे हिसाब से मेरे धर्म के खिलाफ नहीं हैं... मैं उन अधिकारों को मांगना चाहती हूं, और चाहती हूं कि जो लोग फैसले करते हैं, वे मेरी बात सुनें और फिर कुछ करें..."
अरब देशों में महिला इस्लामिक स्कॉलर और कार्यकर्ता खुदा के सामने पुरुषों और महिलाओं को एक समान दर्जा देने वाले शरिया कानूनों की नए सिरे से व्याख्या करने की लंबे अरसे से मांग करती आ रही हैं... सोआद अल-शैमरी का शुमार सऊदी अरब में सबसे ज़्यादा आवाज़ उठाने वाली तथा सक्रिय धार्मिक तथा महिला अधिकारों की पैरोकारों में किया जाता है...
सोआद के मित्र तथा साथी कार्यकर्ता सहर नासिफ का कहना है, "उन्हें (सोआद अल-शैमरी को) अपनी कही बात पर पूरा भरोसा होता है, और वह कतई हिचकती नहीं हैं... वह अरब पृष्ठभूमि से हैं, रेगिस्तानी माहौल से... उन्हें अपनी पृष्ठभूमि पर फख्र है, लेकिन इसी पृष्ठभूमि की वजह से वह सभी के साथ कुछ रूखी हो जाती हैं, और अपने विचार व्यक्त करते हुए बहुत रूखी..."
हाइल प्रांत में एक किसान के 12 बच्चों में से सबसे बड़ी संतान के रूप में पली-बढ़ी सोआद अल-शैमरी भेड़ों का ध्यान रखती थीं... वह न सिर्फ धार्मिक थीं, बल्कि 'सलाफी' (ऐसा मुसलमान, जो इस्लामिक कानूनों की शाब्दिक व्याख्या को ज्यों का त्यों स्वीकार करता और मानता है) के रूप में रहती थीं...
यूनिवर्सिटी ऑफ हाइल से इस्लामी कानून में स्नातक की डिग्री लेने के बाद सोआद अल-शैमरी पब्लिक स्कूल टीचर बन गईं... 17 साल की उम्र में सोआद ने अपने ही कबीले के अपने से दोगुनी उम्र के पुरुष से शादी की थी, और फिर एक बेटी - यारा - भी हुई... 20 साल की उम्र में सोआद का तलाक हो गया, और उन्होंने फिर शादी कर ली... सोआद की दूसरी शादी हाइल के उसी चीफ जज से हुई, जिसने उनके तलाक के मामले को देखा था...
इसके बाद अधिकारों के लिए सोआद अल-शैमरी की जंग उस दिन शुरू हुई, जिस दिन उनकी बेटी को उनसे छीन लिया गया... जैसे ही यारा सात बरस की हुई, सोआद के पहले पति को उसकी कस्टडी सौंप दी गई... चूंकि सोआद दूसरी शादी कर चुकी थीं, सो, अदालत ने फैसला दिया कि किसी दूसरे पुरुष के साथ रहने की जगह बच्ची को उसके पिता के साथ रहना चाहिए...
सोआद अल-शैमरी कहती हैं, "जब उन्होंने उसे (यारा को) मुझसे लिया, और कहा 'यही अल्लाह की मर्ज़ी है' और 'यही इस्लाम है', ठीक उसी वक्त मेरे अंदर विद्रोह की चिंगारी सुलग उठी... ऐसा हो ही नहीं सकता कि दुनिया में ऐसा कोई खुदा है, जो इस नाइंसाफी और तकलीफ को सिर्फ इसलिए बर्दाश्त कर लेगा, क्योंकि मैं एक औरत हूं..."
वह अपनी बेटी को देख भी नहीं सकती थी, सो, आठ साल तक वह अपने माता-पिता, अपने समुदाय के अलावा अपने व अपनी बेटी यारा के बीच आने वाले हर शख्स से लड़ती रही...
भावहीन चेहरे के साथ हाथ बांधे बात करती हुई सोआद अल-शैमरी कहती हैं, "मैं पागल-सी हो रही थी, लेकिन अपने माता-पिता के सामने, अपने जज पति के सामने, और उनके आसपास मौजूद हमारे समुदाय के लोगों के सामने, मेरे नाम और समुदाय में मेरी जगह की वजह से मुझसे उम्मीद की जाती थी कि मैं चुपचाप बैठी सब कुछ देखती रहूं..."
दूसरी शादी से सोआद अल-शैमरी को पांच संतानें हुईं, लेकिन उसके बाद जल्द ही उसका फिर तलाक हो गया...
जब यारा के पिता बीमार हो गए, और उसकी दादी गुज़र गईं, तब 16 साल की हो चुकी यारा के पिता ने आखिरकार उसे उसकी मां के साथ रहने की इजाज़त दे दी, और सोआद अल-शैमरी अपने सभी छह बच्चों के साथ ज़्यादा उदार कहे जाने वाले शहर जेद्दा आ बसीं...
शरिया कानून की अपनी जानकारी को सोआद ने ज़रूरतमंद औरतों की कानूनी सलाहकार (लीगल एडवाइज़र) के रूप में इस्तेमाल किया... कभी-कभी उनकी दी सलाहें धर्मनिष्ठ कम होती थीं, कपट और निर्लज्जता से भरी ज़्यादा... एक बार उन्होंने अपनी एक मित्र को सलाह दी कि वह पता करे कि उसके केस को कौन-सा जज देख रहा है, फिर कुछ मेकअप करे, और जज के सामने रो-रोकर तारीख आगे बढ़ाने का आग्रह करे... यह तरकीब काम कर गई...
इस्लाम किस तरह महिलाओं सहित सभी लोगों को पैदाइशी आज़ाद और एक समान देखता है, इस बारे में सोआद अपने विचार ऑनलाइन साझा करती हैं... इसके अलावा उदारवाद की राह में उनके दिमाग में आए आइडिया भी... बस, यही कारण रहा शब्दों, और तस्वीरों की भी, जंग शुरू हो गई...
दाढ़ी वाले पुरुषों की तस्वीरें पोस्ट करने के बाद देश में बसे शीर्ष धर्मगुरुओं और अन्य परम्परावादियों ने सोआद अल-शैमरी को पाखंडी, नास्तिक, धूर्त और शैतानी करार दिया... उनका मुंहफट स्वभाव और टीवी टॉक शो में हिजाब के बिना उनका नज़र आना हाइल में उनके परिवार के लिए दिक्कतें पैदा करने लगा... सोआद के छोटे भाई फायेज़ के मुताबिक, समुदाय के एक नेता ने एक बार उसे कहा था, "तुम तो मर्द ही नहीं हो... तुम अपनी बहन को इस तरह का बर्ताव करने की इजाज़त कैसे दे सकते हो..."
फायेज़ ने कहा कि लगभग सात साल के लिए उसने हाइल छोड़ दिया था, क्योंकि ताने-उलाहने बर्दाश्त के बाहर हो गए थे... एक और कबीले से उसके लिए आया रिश्ता भी सिर्फ उसकी बहन की छवि की वजह से टूट गया... छोटे भाई द्वारा सोआद को उसकी 'हरकतों' के लिए कोसे जाने के बाद उसके साथ हुआ फायेज़ का झगड़ा इस कदर बढ़ा कि आखिरकार दोनों भाई अस्पताल पहुंच गए...
फायेज़ बताता है, शुरुआत में तो यारा ने भी सोआद का विरोध किया... स्कूल में बच्चे भी सोआद के बेटों को ताने मारते थे, जिनके बाद वे घर आकर अपनी मां पर अपना गुस्सा निकालते थे...
28 अक्टूबर, 2014 को सोआद अल-शैमरी को हिरासत में लेकर जेद्दा की ब्रिमान जेल के महिला विंग में रखा गया... उस पर जनभावनाओं को भड़काने का आरोप था... लेकिन उस पर कभी मुकदमा नहीं चलाया गया, वह कभी दोषी करार नहीं दी गई...
सलाखों के पीछे रहकर भी सोआद अल-शैमरी ने 'वकालत' बंद नहीं की, और वह महिलाओं को बताती रहीं कि इस्लाम में संगीत की इजाज़त है... इसके अलावा वह महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में भी बताती रहीं... वह बताती हैं कि उसके बाद महिला मुस्लिम मिशनरी पहले के मुकाबले जेलों में ज़्यादा आने लगीं, और वहां बंद महिलाओं को बताने लगीं कि उनका वहां होना खुदा की मर्ज़ी है... जेल में लगा टीवी हमेशा धार्मिक चैनल 'मज्द' (Majd) पर ही चलता रहता है...
हिरासत से उन्हें 29 जनवरी, 2015 को रिहा किया गया... उन्हें अपने सामाजिक गतिविधियों को कम करने के वचन पर दस्तखत करने पड़े, और उनके एक पुरुष संबंधी, उनके भाई फायोज़ से उनकी रिहाई के कागज़ात पर दस्तखत करवाए गए... इसके बाद भी वह ट्विटर पर अपने 207,000 फॉलोअरों के लिए संदेश लिखती रहती हैं, लेकिन उनका कहना है कि अब वह पहले के मुकाबले ज़्यादा सावधानी से अपने शब्द चुनती हैं...
यारा अब अपनी मां की गतिविधियों का समर्थन करती है, हालांकि उसकी ख्वाहिश आज भी यही है कि काश, उसकी मां हिजाब के खिलाफ बहस न करे, और प्रभावशाली धार्मिक नेताओं से बहस न किया करे...
यारा कहती है, "उनसे मुझे बहुत हिम्मत मिलती है... उन्होंने वह सब झेला है, जो आप नहीं झेल सकते..."
महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाली तलाकशुदा 42-वर्षीय सोआद अल-शैमरी ने दाढ़ी रखने वाले कई पुरुषों की तस्वीरें पोस्ट कीं, जिनमें एक परम्परावादी यहूदी, एक हिप्पी, एक कम्युनिस्ट, एक तुर्की खलीफ़ा, एक सिख तथा एक मुस्लिम था... सोआद अल-शैमरी ने इन तस्वीरों के साथ लिखा कि सिर्फ दाढ़ी रख लेने से कोई व्यक्ति पवित्र या मुस्लिम नहीं हो जाता... उसने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि पैगंबर मोहम्मद के समय में इस्लाम के सबसे कट्टर आलोचकों में से एक की दाढ़ी पैगंबर से भी लंबी थी...
इस्लामिक कानून में स्नातक की डिग्री हासिल कर चुकी छह बच्चों की मां सोआद अल-शैमरी के लिए इस तरह की बेबाक टिप्पणियां करना कोई नई बात नहीं है... एक बड़े कबीले के धर्मपरायण परिवार में जन्मी सोआद बचपन में भले ही भेड़ें चराती रहीं, लेकिन अब वह महिला अधिकारों की मांग करने वाली उदारवादी कार्यकर्ता हैं, और अक्सर इस्लाम को लेकर दिए अपने तर्कों से सऊदी अरब की शक्तिशाली धार्मिक सत्ता को चुनौती देती रहती हैं...
अपने विचारों की सोआद को कीमत भी चुकानी पड़ी है... वह 'जनभावनाओं को भड़काने के लिए' बिना किसी औपचारिक आरोप के तीन महीने जेल में बिता चुकी हैं... सरकार उनकी विदेश यात्राओं पर पाबंदी लगा चुकी है... उनके ऑनलाइन फोरम 'फ्री सऊदी लिबरल्स नेटवर्क' के सह-संस्थापक और ब्लॉगर रैफ बदावी 10 साल कैद की सज़ा काट रहे हैं, और उन्हें सार्वजनिक रूप से 50 कोड़े भी लगाए गए थे... सोआद के पिता सार्वजनिक रूप से उन्हें बेटी स्वीकार करने से इंकार कर चुके हैं...
लेकिन इतना सब भी सोआद अल-शैमरी की आवाज़ को दबाने के लिए काफी नहीं था...
सोआद अल-शैमरी कहती हैं, "मेरे पास कुछ अधिकार हैं, जो मेरे हिसाब से मेरे धर्म के खिलाफ नहीं हैं... मैं उन अधिकारों को मांगना चाहती हूं, और चाहती हूं कि जो लोग फैसले करते हैं, वे मेरी बात सुनें और फिर कुछ करें..."
अरब देशों में महिला इस्लामिक स्कॉलर और कार्यकर्ता खुदा के सामने पुरुषों और महिलाओं को एक समान दर्जा देने वाले शरिया कानूनों की नए सिरे से व्याख्या करने की लंबे अरसे से मांग करती आ रही हैं... सोआद अल-शैमरी का शुमार सऊदी अरब में सबसे ज़्यादा आवाज़ उठाने वाली तथा सक्रिय धार्मिक तथा महिला अधिकारों की पैरोकारों में किया जाता है...
सोआद के मित्र तथा साथी कार्यकर्ता सहर नासिफ का कहना है, "उन्हें (सोआद अल-शैमरी को) अपनी कही बात पर पूरा भरोसा होता है, और वह कतई हिचकती नहीं हैं... वह अरब पृष्ठभूमि से हैं, रेगिस्तानी माहौल से... उन्हें अपनी पृष्ठभूमि पर फख्र है, लेकिन इसी पृष्ठभूमि की वजह से वह सभी के साथ कुछ रूखी हो जाती हैं, और अपने विचार व्यक्त करते हुए बहुत रूखी..."
हाइल प्रांत में एक किसान के 12 बच्चों में से सबसे बड़ी संतान के रूप में पली-बढ़ी सोआद अल-शैमरी भेड़ों का ध्यान रखती थीं... वह न सिर्फ धार्मिक थीं, बल्कि 'सलाफी' (ऐसा मुसलमान, जो इस्लामिक कानूनों की शाब्दिक व्याख्या को ज्यों का त्यों स्वीकार करता और मानता है) के रूप में रहती थीं...
यूनिवर्सिटी ऑफ हाइल से इस्लामी कानून में स्नातक की डिग्री लेने के बाद सोआद अल-शैमरी पब्लिक स्कूल टीचर बन गईं... 17 साल की उम्र में सोआद ने अपने ही कबीले के अपने से दोगुनी उम्र के पुरुष से शादी की थी, और फिर एक बेटी - यारा - भी हुई... 20 साल की उम्र में सोआद का तलाक हो गया, और उन्होंने फिर शादी कर ली... सोआद की दूसरी शादी हाइल के उसी चीफ जज से हुई, जिसने उनके तलाक के मामले को देखा था...
इसके बाद अधिकारों के लिए सोआद अल-शैमरी की जंग उस दिन शुरू हुई, जिस दिन उनकी बेटी को उनसे छीन लिया गया... जैसे ही यारा सात बरस की हुई, सोआद के पहले पति को उसकी कस्टडी सौंप दी गई... चूंकि सोआद दूसरी शादी कर चुकी थीं, सो, अदालत ने फैसला दिया कि किसी दूसरे पुरुष के साथ रहने की जगह बच्ची को उसके पिता के साथ रहना चाहिए...
सोआद अल-शैमरी कहती हैं, "जब उन्होंने उसे (यारा को) मुझसे लिया, और कहा 'यही अल्लाह की मर्ज़ी है' और 'यही इस्लाम है', ठीक उसी वक्त मेरे अंदर विद्रोह की चिंगारी सुलग उठी... ऐसा हो ही नहीं सकता कि दुनिया में ऐसा कोई खुदा है, जो इस नाइंसाफी और तकलीफ को सिर्फ इसलिए बर्दाश्त कर लेगा, क्योंकि मैं एक औरत हूं..."
वह अपनी बेटी को देख भी नहीं सकती थी, सो, आठ साल तक वह अपने माता-पिता, अपने समुदाय के अलावा अपने व अपनी बेटी यारा के बीच आने वाले हर शख्स से लड़ती रही...
भावहीन चेहरे के साथ हाथ बांधे बात करती हुई सोआद अल-शैमरी कहती हैं, "मैं पागल-सी हो रही थी, लेकिन अपने माता-पिता के सामने, अपने जज पति के सामने, और उनके आसपास मौजूद हमारे समुदाय के लोगों के सामने, मेरे नाम और समुदाय में मेरी जगह की वजह से मुझसे उम्मीद की जाती थी कि मैं चुपचाप बैठी सब कुछ देखती रहूं..."
दूसरी शादी से सोआद अल-शैमरी को पांच संतानें हुईं, लेकिन उसके बाद जल्द ही उसका फिर तलाक हो गया...
जब यारा के पिता बीमार हो गए, और उसकी दादी गुज़र गईं, तब 16 साल की हो चुकी यारा के पिता ने आखिरकार उसे उसकी मां के साथ रहने की इजाज़त दे दी, और सोआद अल-शैमरी अपने सभी छह बच्चों के साथ ज़्यादा उदार कहे जाने वाले शहर जेद्दा आ बसीं...
शरिया कानून की अपनी जानकारी को सोआद ने ज़रूरतमंद औरतों की कानूनी सलाहकार (लीगल एडवाइज़र) के रूप में इस्तेमाल किया... कभी-कभी उनकी दी सलाहें धर्मनिष्ठ कम होती थीं, कपट और निर्लज्जता से भरी ज़्यादा... एक बार उन्होंने अपनी एक मित्र को सलाह दी कि वह पता करे कि उसके केस को कौन-सा जज देख रहा है, फिर कुछ मेकअप करे, और जज के सामने रो-रोकर तारीख आगे बढ़ाने का आग्रह करे... यह तरकीब काम कर गई...
इस्लाम किस तरह महिलाओं सहित सभी लोगों को पैदाइशी आज़ाद और एक समान देखता है, इस बारे में सोआद अपने विचार ऑनलाइन साझा करती हैं... इसके अलावा उदारवाद की राह में उनके दिमाग में आए आइडिया भी... बस, यही कारण रहा शब्दों, और तस्वीरों की भी, जंग शुरू हो गई...
दाढ़ी वाले पुरुषों की तस्वीरें पोस्ट करने के बाद देश में बसे शीर्ष धर्मगुरुओं और अन्य परम्परावादियों ने सोआद अल-शैमरी को पाखंडी, नास्तिक, धूर्त और शैतानी करार दिया... उनका मुंहफट स्वभाव और टीवी टॉक शो में हिजाब के बिना उनका नज़र आना हाइल में उनके परिवार के लिए दिक्कतें पैदा करने लगा... सोआद के छोटे भाई फायेज़ के मुताबिक, समुदाय के एक नेता ने एक बार उसे कहा था, "तुम तो मर्द ही नहीं हो... तुम अपनी बहन को इस तरह का बर्ताव करने की इजाज़त कैसे दे सकते हो..."
फायेज़ ने कहा कि लगभग सात साल के लिए उसने हाइल छोड़ दिया था, क्योंकि ताने-उलाहने बर्दाश्त के बाहर हो गए थे... एक और कबीले से उसके लिए आया रिश्ता भी सिर्फ उसकी बहन की छवि की वजह से टूट गया... छोटे भाई द्वारा सोआद को उसकी 'हरकतों' के लिए कोसे जाने के बाद उसके साथ हुआ फायेज़ का झगड़ा इस कदर बढ़ा कि आखिरकार दोनों भाई अस्पताल पहुंच गए...
फायेज़ बताता है, शुरुआत में तो यारा ने भी सोआद का विरोध किया... स्कूल में बच्चे भी सोआद के बेटों को ताने मारते थे, जिनके बाद वे घर आकर अपनी मां पर अपना गुस्सा निकालते थे...
28 अक्टूबर, 2014 को सोआद अल-शैमरी को हिरासत में लेकर जेद्दा की ब्रिमान जेल के महिला विंग में रखा गया... उस पर जनभावनाओं को भड़काने का आरोप था... लेकिन उस पर कभी मुकदमा नहीं चलाया गया, वह कभी दोषी करार नहीं दी गई...
सलाखों के पीछे रहकर भी सोआद अल-शैमरी ने 'वकालत' बंद नहीं की, और वह महिलाओं को बताती रहीं कि इस्लाम में संगीत की इजाज़त है... इसके अलावा वह महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में भी बताती रहीं... वह बताती हैं कि उसके बाद महिला मुस्लिम मिशनरी पहले के मुकाबले जेलों में ज़्यादा आने लगीं, और वहां बंद महिलाओं को बताने लगीं कि उनका वहां होना खुदा की मर्ज़ी है... जेल में लगा टीवी हमेशा धार्मिक चैनल 'मज्द' (Majd) पर ही चलता रहता है...
हिरासत से उन्हें 29 जनवरी, 2015 को रिहा किया गया... उन्हें अपने सामाजिक गतिविधियों को कम करने के वचन पर दस्तखत करने पड़े, और उनके एक पुरुष संबंधी, उनके भाई फायोज़ से उनकी रिहाई के कागज़ात पर दस्तखत करवाए गए... इसके बाद भी वह ट्विटर पर अपने 207,000 फॉलोअरों के लिए संदेश लिखती रहती हैं, लेकिन उनका कहना है कि अब वह पहले के मुकाबले ज़्यादा सावधानी से अपने शब्द चुनती हैं...
यारा अब अपनी मां की गतिविधियों का समर्थन करती है, हालांकि उसकी ख्वाहिश आज भी यही है कि काश, उसकी मां हिजाब के खिलाफ बहस न करे, और प्रभावशाली धार्मिक नेताओं से बहस न किया करे...
यारा कहती है, "उनसे मुझे बहुत हिम्मत मिलती है... उन्होंने वह सब झेला है, जो आप नहीं झेल सकते..."
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