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This Article is From Jan 21, 2022

UttaraKhand polls: 'मौसम विज्ञानी' हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी, बीजेपी और बसपा सहित कई पार्टियों का रहे हैं हिस्‍सा

उत्‍तराखंड में पुष्कर सिंह धामी सरकार में मंत्री रहे हरक सिंह को कुछ दिन पूर्व ही  भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से निष्कासित किया गया था.

हरक सिंह बसपा से लेकर भाजपा और कांग्रेस तक सभी पार्टियों में रह चुके हैं

नई दिल्‍ली:

हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी हो गई है.  उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से कुछ दिनों पहले, पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत शुक्रवार को कांग्रेस में शामिल हो गए. उत्‍तराखंड में पुष्कर सिंह धामी सरकार में मंत्री रहे हरक सिंह को कुछ दिन पूर्व ही  भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से निष्कासित किया गया था.कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, प्रदेश स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अविनाश पांडे, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गणेश गोदियाल, प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव, विधायक दल के नेता प्रीतम सिंह और कुछ अन्य नेताओं की मौजूदगी में हरक सिंह, पार्टी में शामिल हुए. हरक सिंह के साथ उनकी पुत्रवधू अनुकृति ने भी कांग्रेस की सदस्‍यता ग्रहण की. पहाड़ी प्रदेश उत्‍तराखंड में हरक सिंह रावत की पहचान मौसम विज्ञानी के तौर पर हैं. माना जाता है कि वह चुनाव से पहले ​जिस पार्टी से नाता जोड़ते हैं, उसी की सरकार बन जाती है. 'दबंग और विवादित' छवि होने के बावजूद उनके चुनाव जीतने की क्षमता और पार्टी के सत्ता में आने की संभावना के चलते विभिन्न राजनीतिक दल उन्हें अपने साथ जोड़कर रखना चाहते हैं.

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31 साल के सियासी सफर की बात करें तो हरक सिंह बसपा से लेकर भाजपा और कांग्रेस तक सभी पार्टियों में रह चुके हैं. उन्‍होंने अपना राजनीतिक कैरियर उत्तराखंड बनने से पहले अविभाजित उत्तर प्रदेश से शुरू किया जब उन्होंने 1991 में पौडी सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक बने.तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार में पर्यटन राज्य मंत्री बने हरक सिंह, सरकार के सबसे कम उम्र के मंत्री थे. वर्ष 1993 का चुनाव भी वह पौडी से ही जीते. वर्ष 1996 में उन्‍होंने बीजेपी को छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया. उस दौरान वह उत्तर प्रदेश बसपा में महामंत्री रहे. हालांकि, 1998 में बसपा के टिकट पर वह पौडी सीट से नहीं जीत पाए जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया. उत्तराखंड बनने के बाद 2002 में उन्होंने लैंसडौन से जीत दर्ज की और नारायण दत्त तिवारी की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने. अगले चुनाव में भी उन्हें लैंसडौन से जीत मिली लेकिन कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के बावजूद वह पांच साल नेता प्रतिपक्ष रहे.

वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने रूद्रप्रयाग सीट से चुनावी ताल ठोकी और वहां भी जीत दर्ज की. पहले विजय बहुगुणा और फिर हरीश रावत के नेतृत्व में बनी सरकार में वह कैबिनेट मंत्री रहे. हालांकि, मार्च 2016 में नौ अन्य विधायकों के साथ रावत सरकार से उन्होंने बगावत कर दी और बाद में भाजपा में शामिल हो गए.पिछला 2017 का चुनाव उन्होंने भाजपा के टिकट पर कोटद्वार से लड़ा और वहां से भी विजयी होकर पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत और फिर पुष्कर सिंह धामी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री रहे. हालांकि, रविवार को धामी ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया.वैसे हरक सिंह के साथ यह तथ्य भी जुड़ा है कि वह कभी भी मंत्री पद पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. हरक सिंह को अपने कैरियर में कई बार विवादों का भी सामना करना पड़ा । तिवारी सरकार में राजस्व मंत्री रहने के दौरान असम की एक युवती ने उन पर 'दुष्कर्म और उनके बच्चे का पिता होने' का गंभीर आरोप लगाया जिसके चलते उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. हालांकि, बाद में मामले की केंद्रीय जांच ब्यूरो से हुई जांच में उन्हें क्लीन चिट मिल गई.
 

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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