
- उत्तराखंड में 2016 से 25 तक प्राकृतिक आपदाओं की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जिसमें हजारों लोगों की जान गई है
- पिछले 11 वर्षों में 27,197 प्राकृतिक घटनाएं हुई हैं, जिनमें अतिवृष्टि और भूस्खलन की घटनाएं प्रमुख हैं
- साल 2025 में सबसे अधिक घटनाएं दर्ज हुईं, जिसमें 720 लोगों की मौत और 1207 लोग घायल हुए थे
उत्तराखंड में मानसून सीजन में हर साल प्राकृतिक आपदाओं से भारी नुकसान होता है. हर बार मानसून का सीजन पहाड़ों को कुछ न कुछ नुकसान पहुंचाता ही है, जिनको भरना बेहद मुश्किल हो जाता है. इंफ्रास्ट्रक्चर को तो दोबारा से बनाया जा सकता है लेकिन इन हादसों से लोगों की गई जान को कभी वापस नहीं लाया जा सकता है. साल 2025 के मानसून सीजन में अबतक उत्तराखंड में रिकॉर्ड बारिश हुई है.
वैसे साल 2015 से वर्तमान तक उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं से भारी नुकसान हुआ है, जिसमें कई लोगों की जान गई है. यहां तक कि हजारों की संख्या में लोग घायल भी हुए हैं. पिछले 11 सालों में 27,197 घटनाएं हुई हैं, जिसमें अतिवृष्टि या त्वरित बाढ़ 14,237 की घटनाएं हुई हैं. इसके अलावा राज्य में बड़ी मात्रा में पिछले 11 सालों में 5830 भूस्खलन भी हुए हैं. 11 सालों में 3839 लोगों की मौत हुई है. 6207 लोग घायल हुए थे. वहीं 312 लोग लापता भी हुए थे. यह सभी आंकड़े उत्तराखंड स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के सचेत डैशबोर्ड पर मौजूद हैं.
हालांकि, पिछले 11 सालों में सिर्फ अतिवृष्टि या तुरंत बाढ़ के अलावा भूस्खलन की घटनाएं ही नहीं हुई हैं बल्कि इसमें आग, आंधी तूफान, डूबना या फिर बह जाना, बाढ़ ,भूकंप, वज्रपात ,सड़क दुर्घटना और हिमस्खलन जैसी घटनाओं के आंकड़े शामिल हैं. अगर प्रत्येक सालों में हुई प्राकृतिक घटनाओं की बात करें तो साल 2015 में 224 घटनाएं हुई, जिसमें अति वृष्टि /त्वरित बाढ़ की 155 घटनाएं हुई थी, 32 भूस्खलन की घटनाएं हुई साल 2015 में 54 लोगों की मौत और 63 घायल हुए थे.
साल 2016 से अबतक की हुई घटनाएं
- साल 2016 में 103 घटनाएं हुई अतिवृष्टि त्वरित बाढ़ की, 18 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी 2016 में 108 लोगों की मौत हुई थी 83 घायल हुए थे.
- 2017 में 63 घटनाएं हुई थी जिसमें 14 घटनाएं अतिवृष्टि या त्वरित बाढ़ की हुई थी 19 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी 2017 में 72 लोगों की मौत हुई थी 38 घायल हुए थे और 21 लापता हुए थे.
- 2018 में 5056 घटनाएं हुई थी, 3706 घटनाएं अतिवृष्टि या त्वरित बाढ़ की हुई थी, 496 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी साल 2018 में 720 लोगों की मौत 1207 घायल हुए थे और पांच लापता.
- 2019 में 2191 घटनाएं हुई थी अतिवृष्टि या त्वरित बाढ़ की 1205 घटनाएं हुई थी 291 भूस्खलन की घटनाएं और 532 लोगों की मौत हुई थी इसके अलावा 980 लोग घायल हुए थे और चार लापता हुए.
- साल 2020 में 3132 घटनाएं हुई थी 1627 अत्यावृष्टि या त्वरित बाढ़ की घटनाएं हुई थी भूस्खलन की 973 घटनाएं हुई थी 2020 में 301 लोगों की मौत 460 लोग घायल हुए थे और 6 लापता हुए.
- 2021 में 2839 घटनाएं हुई अतिवृष्टि या त्वरित बाढ़ की 2121 घटनाएं हुई 356 भूस्खलन की घटनाएं हुई 2021 में 393 लोगों की मौत ,366 लोग घायल हुए थे और 133 लोग लापता हुए.
- 2022 में 3156 घटनाएं हुई 2265 अतिवृष्टि या त्वरित बाढ़ की घटनाएं हुई. 245 भूस्खलन की घटनाएं हुई. साल 2022 में 518 लोगों की मौत 679 लोग घायल और 09 लापाता हुए.
- 2023 में 4990 घटनाएं हुई 2161 अतिवृष्टि या त्वरित बाढ़ की घटनाएं हुई. 2157 भूस्खलन की घटनाएं हुई साल 2023 में 497 लोगों की मौत 956 लोग घायल और 21 लापता हुए थे.
- 2024 में 3244 घटनाएं हुई 2408 अतिवृष्टि या त्वरित कर की घटनाएं हुई 209 पोस्ट की घटना हुई 2024 में 384 लोगों की मौत 809 लोग घायल और 17 लापता लोग हुए थे.
- साल 2025 में सितंबर 20 तक 2199 घटनाएं हो चुकी है जिसमें 700 घटनाएं अतिवृष्टि या त्वरित बाढ़ की हुई है. इसके अलावा 1034 भूस्खलन की घटनाएं भी हो चुकी है वहीं साल 2025 में 20 सितंबर तक 260 लोगों की मौत हो चुकी है 566 लोग घायल हुए है और 96 लोग लापता है.
इन 11 सालों के आंकड़े में केदारनाथ की साल 2013 में 16 और 17 जून को आई प्राकृतिक आपदा के आंकड़े नहीं जोड़े गए हैं. उस दौरान अकेले केदारनाथ में ही 4400 से ज्यादा लोग या तो लापता हो गए थे या फिर मारे गए थे. केदारनाथ की आपदा में भारी नुकसान हुआ था. अब इन प्राकृतिक आपदाओं की बात करें तो उत्तराखंड के सबसे ज्यादा पिथौरागढ़ ,चमोली ,रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, टिहरी,पौड़ी, चंपावत जैसे जिले शामिल है जहां सबसे ज्यादा प्राकृतिक आपदाएं आई है.
अब जानिए कि उत्तराखंड में पिछले 10 सालों में प्राकृतिक आपदाओं का सिलसिला लगातार क्यों बड़ा है और इसकी वजह उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर सड़कों का निर्माण, उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाओं का बना और इंफ्रास्ट्रक्चर का तेजी से बनना होना है. इन सभी बड़े निर्माण के बनने के लिए तेजी से पेड़ों काटा गया और भूमि उपयोग के बदलने का कारण भी है.
जानकारों के मुताबिक तेजी से मौसमी चक्र में बदलाव हुआ है. समय पर ना तो बारिश हो रही है और ना ही बर्फबारी और ना ही गर्मी पड़ रही है. यही वजह है कि मानसून सीजन में बादल फटना अतिवृष्टि होने से ज्यादा पानी, पहाड़ों से बढ़ता है जिससे भारी नुकसान होता है तो वही लगातार सड़क निर्माण और इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण की वजह से भूस्खलन बढ़ते जा रहे हैं.
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